मद्रास हाईकोर्ट ने जिंदा नेताओं के नाम पर सरकारी योजनाओं का नाम रखने पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही स्कीम से जुड़े पोस्टरों पर किसी भी पार्टी के झंडे, चिन्ह या नेता की तस्वीर का इस्तेमाल न करने की हिदायत दी है। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंद्रा मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस सुंदर मोहन की बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
यह याचिका तमिलनाडु की विपक्षी पार्टी AIADMK के सांसद सी शनमुगम ने दायर की थी। इसमें राज्य सरकार की स्कीम में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के नाम के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि वह किसी सरकारी योजना के लॉन्च या उसके लागू होने पर रोक नहीं लगा रहे हैं। उनका मकसद कल्याणकारी योजनाओं का राजनीति के लिए होने वाले प्रचार पर रोक लगाना है।
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योजनाओं का राजनीतिकरण सरकारी पैसे का दुरुपयोग
कोर्ट ने कहा स्कीमों के राजनीतकरण से न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग होता है, बल्कि इससे मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास भी होता है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों के कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई दिशानिर्देश जारी कर चुका है।
2015 के ‘कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि सरकारी विज्ञापनों में केवल प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री की तस्वीर हो सकती है, वह भी सीमित उद्देश्य के लिए। किसी पूर्व नेता या वैचारिक व्यक्ति की तस्वीर का उपयोग अनुचित होगा।
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13 अगस्त को अगली सुनवाई
मद्रास हाई कोर्ट ने मामले पर सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि फिलहाल वह तमिलनाडु सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन को नहीं रोक रहा है, लेकिन यह स्पष्ट कर रहा है कि नियमों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन होना अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि यदि चुनाव आयोग या अन्य संस्था चाहे तो वह इस मामले पर कार्रवाई कर सकती है। इस याचिका पर अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।
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विपक्ष को कौनसी योजना में स्टालिन की फोटो पर ऐतराज?
तमिलनाडू सरकार एक कार्यक्रम शुरू करने जा रही है, जिसका नाम “उंगलुडन स्टालिन” यानी स्टालिन, आपके साथ रखा गया है। विपक्ष ने याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने दलील दी कि राज्य सरकार ने 'उंगलुडन स्टालिन' को लेकर मुख्यमंत्री के नाम, पार्टी के चुनाव चिह्न और वैचारिक नेताओं की तस्वीरों वाला विज्ञापन जारी किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है जो सरकारी खर्च पर राजनीतिक प्रचार को नियंत्रित करते हैं।