छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के घने जंगलों में 21 मई को हुए 50 घंटे से अधिक समय तक चले एक व्यापक नक्सल विरोधी अभियान में भारतीय सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठन सीपीआई के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार गिराया। इस ऑपरेशन में 27 माओवादियों के मारे जाने की पुष्टि हुई, जिसमें बसवराजू का खात्मा माओवादी आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशकों में सबसे बड़ी सफलता करार दिया।
50 घंटे का ऑपरेशन
यह ऑपरेशन नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और कोंडागांव जिलों के ट्राइ-जंक्शन क्षेत्र में अबूझमाड़ के बोटेर क्षेत्र में हुआ। यह क्षेत्र माओवादियों का गढ़ माना जाता है। ऑपरेशन 17 अप्रैल से 8 मई तक चला लेकिन मुख्य मुठभेड़ 21 मई को खत्म हुई। जिला रिजर्व गार्ड, विशेष कार्य बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की संयुक्त टीमों ने इस अभियान को अंजाम दिया।
गुप्त सूचना के आधार पर शुरू हुए इस ऑपरेशन में माओवादियों ने अंधाधुध गोलीबारी की, जिसका सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई में मुंहतोड़ जवाब दिया। इस मुठभेड़ में 27 माओवादियों के शव बरामद किए गए, जिनमें बसवराजू और कई वरिष्ठ कैडर शामिल थे। इसके अलावा, 400 से अधिक बारूदी सुरंगें, भारी मात्रा में विस्फोटक और 12 हजार किलो खाद्य सामग्री बरामद की गई है। एक DRG जवान शहीद हुआ और कुछ अन्य घायल हुए है।
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बसवराजू: माओवादी आंदोलन का मास्टरमाइंड
नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियन्नापेटा का निवासी था। 70 वर्षीय बसवराजू ने वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.टेक की डिग्री हासिल की थी। 1970 के दशक में वह माओवादी आंदोलन से जुड़ा और 2018 में सीपीआई का महासचिव बना। बसवराजू ने श्रीलंका के LTTE (लिट्टे) से गुरिल्ला युद्ध, बम निर्माण और बारूदी सुरंग बिछाने की ट्रेनिंग ली थी। वह AK-47 राइफल का शौकीन था और जंगल युद्ध में माहिर था। उसे 2003 के अलीपीरी बम हमले और 2010 के दंतेवाड़ा नरसंहार जैसे घातक हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता था। उस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था और वह राष्ट्रीय जांच एजेंसी की सबसे वॉन्टेड लिस्ट में शामिल था
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लाल आतंक का प्रभाव
बसवराजू की मौत को माओवादी संगठन की रीढ़ तोड़ने वाला माना जा रहा है। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, संगठन में अब कोई अनुभवी और रणनीतिक नेता नहीं बचा है जो उसके जैसा नेतृत्व कर सके। हाल के आंकड़े बताते हैं कि माओवादी आंदोलन 1970 के बाद, अपने सबसे कमजोर दौर में है। 2025 के पहले 4 महीनों में 700 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है।
हाल के ऑपरेशनों, जैसे ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट (31 माओवादी मारे गए) और कररेगुट्टा ऑपरेशन ने माओवादियों को गहरी चोट पहुंचाई है। बसवराजू का खात्मा जरूरी था क्योंकि यह सुरक्षा बलों की क्षमता को दर्शाता है। साल 2024 और 2025 में हुए अभियानों और बसवराजू जैसे टॉप नेताओं का खात्मा माओवादी आंदोलन को कमजोर कर रहा है। हालांकि, माओवादी अभी भी कुछ क्षेत्रों में एक्टिव हैं।