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नागालैंड में एक सरकारी आदेश पर बवाल क्यों मचा है? सड़कों पर छात्र

नागालैंड सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान नियुक्त 280 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों को नौकरी पर रखा था। यह नौकरी नियमित नहीं थी। अब सरकार इन 280 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों को परमानेंनट नौकरी पर रखने जा रही है।

Nagaland Medical Students Association

प्रदर्शन करते हुए छात्र। Photo Credit- Social Media

नागालैंड की राजधानी कोहिमा की सड़कों पर इन दिनों विरोध-प्रदर्शन चल रहा है। यह विरोध-प्रदर्शन रविवार से छात्र कर रहे हैं। छात्रों का विरोध अनिश्चितकालीन है, जो सोमवार को दूसरे दिन भी जारी रही। नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन (NMSA) के बैनर तले छात्र इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं। राज्य सरकार इस प्रदर्शन पर करीब से नजर रख रही है। मगर, छात्र यह कर क्यों रहे हैं?

 

दरअसल, नागालैंड सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान नियुक्त 280 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों को नौकरी पर रखा थायह नौकरी नियमित नहीं थी। अब सरकार इन 280 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों को परमानेंनट नौकरी पर रखने जा रही है। नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन सरकार के इसी फैसले का विरोध कर रही है। साथ ही फैसले को वापस लेने की भी मांग कर रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या है?

 

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18 को जारी हुई अधिसूचना

नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ 1 सितंबर को अपना शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करेगा। यह विरोध प्रदर्शन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा 18 अगस्त को जारी एक अधिसूचना के विरोध में किया जा रहा है। छात्रों का तर्क है कि यह कदम सरकारी भर्ती में निष्पक्षता और पारदर्शिता को कमजोर करता है।

 

नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन के मताबिक, प्रदर्शनकारी कोहिमा के सचिवालय बस स्टैंड से लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तक जुलूस निकालेंगेसभी छात्र मिलकर यहां प्रदर्शन करेंगेएसोसिएशन ने सभी छात्र संगठनों, नागरिक समाज संगठनों और नागालैंड के जागरूक नागरिकों से छात्रों की इस एकजुटता में शामिल होने की अपील की हैसंगठनों को विरोध स्थल पर एकजुटता भाषण देने के लिए प्रतिनिधि भेजने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है

अपनी अपील में, एनएमएसए ने दो प्रमुख मांगें रखीं:

  • अधिसूचना संख्या HFW(ए)10/34/2024/145 को तत्काल रद्द किया जाए।
  • सभी स्वीकृत पदों को एनपीएससी/एनएसएसबी को तत्काल भगने की प्रक्रिया शुरू की जाए। साथ ही सरकारी सेवा नियमों के अनुसार खुले विज्ञापन, लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा के जरिए भरा जाए।
  • सरकार के फैसले को अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण बताते हुए, एसोसिएशन ने कहा कि विरोध केवल उनके अधिकारों के लिए ही नहीं, बल्कि नागालैंड की भर्ती प्रक्रिया में निष्पक्षता, योग्यता और समान अवसर की रक्षा के लिए भी है।
  • नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने अपनी अपील में कहा, 'अभी या कभी नहीं। आइए हम इस अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ मिलकर आवाज उठाएं।'

मेडिकल ऑफिसर्स का केस हाई कोर्ट में

वहीं, इसके अलावा नागालैंड सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान अस्थायी रूप से नियुक्त 98 मेडिकल ऑफिसर्स को परमानेंनट करने का फैसला किया था लेकिन नागालैंड मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने इसके खिलाफ भी अपने आंदोलन में अपनी स्थिति स्पष्ट की है। दरअसल, एसोसिएशन ने इसके खिलाफ भी गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी।

 

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राज्य स्वास्थ्य विभाग के मुाबिक, गुवाहाटी हाई कोर्ट की कोहिमा पीठ ने 1 अगस्त, 2025 के अपने आदेश में एनएमएसए द्वारा दायर रिट याचिकाएँ WP(C)/239/2024 और WP(C)/187/2024 खारिज कर दीं। एसोसिएशन ने महामारी के दौरान सेवाएं देने वाले चिकित्सा अधिकारियों के लिए विशेष भर्ती अभियान (Special Recruitment Drive) आयोजित करने के सरकार के नीतिगत फैसले को चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

हाई कोर्ट ने अपने फैसला में कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास राज्य के फैसले को चुनौती देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्हें 'पीड़ित व्यक्ति' नहीं माना गया था। कोर्ट ने आगे कहा कि एनएमएसए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक हस्तक्षेप का कारण बनने वाला कोई मामला स्थापित करने में नाकाम रहा।

 

कोर्ट के निर्देश के बाद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने अपने 18 अगस्त के आदेश के मुतािक, विशेष भर्ती अभियान के अंतर्गत एकमुश्त छूट के रूप में 98 कोविड-19 नियुक्त मेडिकल ऑफिसर्स को परमनेंनट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मगर, राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही हाई कोर्ट में अपील दायर कर दी है, इसलिए मामला अभी भी विचाराधीन है।

 

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