बिहार के नालंदा जिले में स्थित प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार यह विश्वविद्यालय प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल के बयान से चर्चा में आया है। इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने 'नालंदा: हाउ इट चेंज्ड द वर्ल्ड' विषय पर बात करते हुए, नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों और खुदाई को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भी बिहार में इस ऐतिहासिक स्थल के पुरातात्विक खंडहरों पर खुदाई और शोध कार्य में ज्यादा खर्च नहीं किया जा रहा है, अभी केवल 10 प्रतिशत हिस्से की ही खुदाई की गई है। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना की बात कही जो भारतीय सभ्यता का विशाल और भव्य स्मारक हो।
विलियम डेलरिम्पल ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार को आयोजित एक संवाद के दौरान कहा, 'यह चौंकाने वाली बात है कि 21वीं सदी में, बिहार में इस स्थल के पुरातात्विक खंडहरों पर उत्खनन कार्य में अधिक खर्च नहीं किया गया। डेलरिम्पल ने कहा, ‘नालंदा का केवल 10 प्रतिशत ही उत्खनन किया गया है जबकि 90 प्रतिशत की खोज होनी बाकी है। उन्होंने कहा कि नालंदा के अकैडमिक कैंपस का डिज़ाइन आधुनिक ऑक्सब्रिज कॉलेज (ब्रिटेन) में देखा जा सकता है।
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'सरकार नहीं दे रही पैसा'
करीब 23 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले नालंदा विश्वविद्यालय के संरक्षण, रखरखाव और प्रबंधन का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) करता है, जो भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करता है। विलियम डेलरिम्पल ने इस बात पर भी हैरानी जताई की सरकार नालंदा की खुदाई और शोध के लिए पैसा नहीं दे रही है। उन्होंने कहा, 'यह असाधारण बात है कि अपनी प्राचीन सभ्यता को महत्व देने वाली सरकार ने और अधिक खुदाई के लिए धन उपलब्ध नहीं कराया।’
बिहार में वर्तमान में पटना सर्कल के तहत 70 ASI संरक्षित विरासत स्मारक और स्थल हैं। मार्च 2023 में केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में केंद्र द्वारा संरक्षित स्थलों के संरक्षण और रखरखाव पर 435.39 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2020-21 में 260.83 करोड़ रुपये; 2021-22 में 269.57 करोड़ रुपये और 2022-23 में एक मार्च 2023 तक 340.92 करोड़ रुपये संरक्षित स्थलों के संरक्षण और रखरखाव पर खर्च किए गए।
नालंदा में बने संग्रहालय
विलियम डेलरिम्पल ने नालंदा में एक संग्राहलय स्थापित करने पर जोर दिया, जो भारतीय सभ्यता का एक विशाल और भव्य स्मारक होगा। उन्होंने कहा, 'यह तो भारतीय सभ्यता का एक विशाल, भव्य स्मारक होना चाहिए।' वर्तमान में, नालंदा खंडहरों में एक साधारण ढांचे में एक स्थल संग्रहालय है, जो इसकी गरिमा के अनुरूप नहीं है।
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नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इसकी स्थापना 427 ईस्वी में हुई थी और यह प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों में से एक था। यह विश्वविद्यालय लगभग 800 वर्षों तक शिक्षा प्रदान करता रहा और इसकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई थी। नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों को 2016 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी थी।
यूनेस्को की वेबसाइट के अनुसार, नालंदा महाविहार स्थल में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 13वीं शताब्दी तक के मठ और शैक्षणिक संस्थान के पुरातात्विक अवशेष शामिल हैं। इसमें स्तूप, मंदिर, आवासीय और शैक्षणिक भवन और धातु से बनी महत्वपूर्ण कलाकृतियां शामिल हैं।