पंजाब के तरनतारन में 1993 को हुए फेक एनकाउंटर के मामले में मोहाली की सीबीआई कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। अदालत ने इस मामले में पांच पुलिस अफसरों को फेक एनकाउंटर का दोषी पाया है। हालांकि, यह पांचों अधिकारी अब रिटायर हो चुके हैं। इन पांचो को सीबीआई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। साथ ही हर एक पर 3.5 लाख का जुर्माना भी लगाया है।
फर्जी मुठभेड़ मामले में पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, पूर्व डीएसपी देविंदर सिंह, पूर्व एएसआई गुलबर्ग सिंह, रघुबीर सिंह और पूर्व इंस्पेक्टर सूबा सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने इन सभी को आपराधिक साजिश, हत्या, सबूत मिटाने और फर्जी दस्तावेज तैयार करने जैसे गंभीर अपराधों में दोषी ठहराया है। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद इन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
यह भी पढ़ेंः हथियार तस्करी में पंजाब का रिटायर आर्मी जवान गिरफ्तार, जांच तेज
क्या है पूरा मामला?
27 जून से 28 जुलाई 1993 के बीच तरनतारन जिले में सात लोगों को पुलिस ने अगवा किया और फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। इनमें तीन लोग विशेष पुलिस अधिकारी भी थे। इस घटना के बाद पुलिस ने दावा किया था कि ये विशेष पुलिस अधिकारी सरकारी हथियार लेकर फरार हो गए थे। इसके बाद पुलिस मुठभेड़ में इन्हें मार गिराया गया। इतना ही नहीं, कुछ लाशों को गुमनाम बताकर अंतिम संस्कार कर दिया गया था जबकि इनकी पहले ही पहचान हो चुकी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपा था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर 1996 को परमजीत कौर बनाम पंजाब राज्य के तहत जांच का आदेश दिया। इसके बाद यह मामला 30 जून 1999 को CBI को सौंपा गया था। CBI की जांच में खुलासा हुआ कि 27 जून 1993 को इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह की अगुआई में पुलिस ने तरनतारन के सरहाली से पंजाब पुलिस के SPO शिंदर सिंह, सुखदेव सिंह, देसा सिंह और बलकार सिंह उर्फ काला का अपहरण किया था। इसके अलावा, जुलाई 1993 में SHO सूबा सिंह ने सरबजीत सिंह उर्फ साबा और हरविंदर सिंह का अपहरण किया।
यह भी पढ़ें: सड़क के गड्ढे में गद्दा-तकिया लेकर लेट गया कानपुर का यह मजबूर पिता
इसके बाद उस समय के डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और थाना सिरहाली के अधिकारियों के नेतृत्व में पुलिस टीम ने फर्जी मुठभेड़ में 12 जुलाई 1993 को शिंदर सिंह, देसा सिंह, बलकार सिंह और मंगल सिंह नामक व्यक्ति को मार गिराया। इसी पुलिस टीम ने 28 जुलाई 1993 को सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह उर्फ साबा और हरविंदर सिंह का भी एनकाउंटर किया। सीबीआई ने इस मामले में 31 मई 2002 को 10 आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। इन 10 आरोपियों में से पांच आरोपियों की मुकदमे के दौरान ही मौत हो गई।
तीन दशक बाद मिला न्याय
इस मामले में पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने में 32 साल का लंबा समय लग गया। पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद में इंतजार कर रहे थे। कोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा कि फर्जी एनकाउंटर ने कई निर्दोषों की जान ली और पुलिस की शक्ति का दुरूपयोग किया गया। पीड़ितों का पक्ष रखने वाले वकील सरबजीत सिंह ने कहा, 'तीन दशकों तक चली लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट का यह फैसला आया है। न्याय मिलने में देर जरूर लगी लेकिन अंत में न्याय मिल गया। पीड़ित परिवार 32 साल से इस दिन का इंतजार कर रहे थे।'
यह भी पढ़ें-- मजबूरी या जरूरत! रूस का तेल भारत के लिए फायदे का सौदा क्यों?
मौत की सजा की मांग
कोर्ट के इस फैसले के बाद इस फेक एनकाउंटर के पीड़ित परिवार के एक सदस्य ने कहा, 'हमारे लिए यह पल बहुत खास है। हमें लगा था कि हमें कभी न्याय नहीं मिलेगा।' पीड़ित परिवार ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि दोषियों को मौत की सजा सुनाई जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, उन्होंने कहा कि वह कोर्ट के इस फैसले से खुश हैं। इस एनकाउंटर में कई महिलाएं विधवा हो गई थी। उन्होंने मांग की कि उन्हें उनके पति की सैलरी के हिसाब से मुआवजा दिया जाए और उनके बच्चों को सरकारी नौकरी दी जाए।