दो बार हुई क्लाउड सीडिंग, फिर भी दिल्ली में क्यों नहीं बरसे बादल? समझिए पूरी वजह
दिल्ली में मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के दो ट्रायल किए गए। इसके बावजूद दिल्ली में बारिश नहीं हुई। ऐसा क्यों हुआ? समझते हैं।

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग। (Photo Credit: PTI)
दिल्ली की खराब होती हवा को सुधारने के मकसद से आर्टफिशियल रेन के लिए मंगलवार को क्लाउड सीडिंग का ट्रायल किया गया, लेकिन फिर भी बारिश नहीं हुई। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर की मदद से बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार और बादली समेत कुछ हिस्सों में ये ट्रायल किए गए। उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में ऐसे और भी ट्रायल किए जाएंगे।
राजधानी दिल्ली में 53 साल बाद क्लाउड सीडिंग हुई थी। दिल्ली में मंगलवार को दो बार क्लाउड सीडिंग का ट्रायल हुआ था। पहला ट्रायल दोपहर 2 बजे पूरा हुआ, जबकि दूसरा ट्रायल लगभग 5 बजे पूरा हुआ।
जब पहला ट्रायल पूरा हुआ तो IIT कानपुर की टीम ने 15 मिनट से 4 घंटे के बीच बारिश होने का अनुमान लगाया था। मगर मौसम विभाग का डेटा बताता है कि क्लाउड सीडिंग के बावजूद दिल्ली में बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई। इसे लेकर विपक्ष हमलावर हो गया है। आम आदमी पार्टी ने इसका मजाक उड़ाया और इसे इंद्र देवता का क्रेडिट चुराने की रणनीति बताया। वहीं, बीजेपी ने प्रदूषण से निपटने के लिए इस कदम की सराहना की।
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कब-कब हुए क्लाउड सीडिंग के ट्रायल?
दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर की मदद से क्लाउड सीडिंग का ट्रायल किया था। 5 घंटे के अंतराल में दिल्ली में दो बार क्लाउड सीडिंग हुई।
जानकारी के मुताबिक, मंगलवार दोपहर 12:13 बजे IIT कानपुर के स्पेशल विमान 'सेसना' ने उड़ान भरी थी। इसने खेखड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार, सादकपुर और भोजपुर में क्लाउड सीडिंग की।
उसके बाद दूसरी सीडिंग उड़ान मेरठ से उड़ी। सीडिंग दोपहर करीब 3:45 बजे शुरू हुई। पहला सीडिंग पॉइंट खेखड़ा था। इसके बाद बुराड़ी, मयूर विहार, पावी सादकपुर, नोएडा, भोजपुर और मोदीनगर होते मेरठ के आसपास शाम 4:45 बजे वापस उतर गई।
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दिल्ली सरकार ने बताया कि पहले राउंड में 4 हजार फीट की ऊंचाई पर क्लाउड सीडिंग हुई। दूसरे राउंड में 5 से 6 हजार फीट की भंचाई पर क्लाउड सीडिंग की गई। पहले राउंड में 6 तो दूसरे में 8 केमिकल फ्लेयर छोड़े गए थे। क्लाउड सीडिंग के दौरान सोडियम क्लोराइड और सोडियम आयोडाइड छोड़ा गया था।
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि 17-18 मिनट तक केमिकल छोड़े गए थे। दोनों ट्रायल लगभग एक-एक घंटे तक चले। सरकार ने बताया कि केमिकल फ्लेयर 2 से 2.5 मिनट तक ऐक्टिव रहे थे। हर बार 2 से 2.5 किलो केमिकल छोड़ा गया था।
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फिर भी क्यों नहीं हुई बारिश?
जब पहला ट्रायल पूरा हुआ तो IIT कानपुर की टीम ने 15 मिनट से 4 घंटे के बीच बारिश होने का अनुमान लगाया था।
हालांकि, मौसम विभाग का डेटा बताता है कि दिल्ली में देर रात तक कहीं भी बारिश नहीं हुई। ऐसा क्यों हुआ? इसकी वजह नमी का स्तर है। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि बादलों में नमी का स्तर सिर्फ 15 से 20% था।
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दरअसल, क्लाउड सीडिंग के जरिए आर्टिफिशियल बारिश करवाने के लिए नमी का स्तर कम से कम 50% होना चाहिए। मगर हवा में नमी सिर्फ 15-20% ही थी। इसका मतलब हुआ कि हवा इतनी सूखी थी कि बादल ही नहीं बन सके। बादल नहीं बनने के कारण बारिश ही नहीं हो सकी।
IIT कानपुर के डायरेक्टर मनिंदर अग्रवाल ने NDTV से बात करते हुए बताया, 'बारिश नहीं हुई, इसलिए इसे पूरी तरह सफल नहीं माना जा सकता। दुर्भाग्य से बादलों में नमी की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं है। बादलों में नमी सिर्फ 15-20% तक ही थी। इसलिए इतनी कम नमी के साथ बारिश होने की संभावना बहुत ज्यादा नहीं है।'
तो क्या कहीं नहीं हुई बारिश?
नहीं। कम से कम दिल्ली में तो नहीं। मौसम विभाग ने देर रात तक दिल्ली में कहीं भी बारिश दर्ज नहीं की। हालांकि, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जरूर बारिश हुई लेकिन वह भी सिर्फ नाममात्र की। नोएडा में शाम 4 बजे 0.1 मिलीमीटर और ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी।
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क्या प्रदूषण में कुछ कमी आई?
यह सारी कवायद प्रदूषण को कम करने के लिए की गई थी। दिल्ली सरकार ने शाम को एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि जिन इलाकों में क्लाउड सीडिंग हुई थी, वहां प्रदूषण में कमी आई है।
सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि क्लाउड सीडिंग से पहले मयूर विहार में PM2.5 का स्तर 221, करोल बाग में 230 और बुराड़ी में 229 था। पहले ट्रायल के बाद यह थोड़ा कम हो गया। पहले ट्रायल के बाद PM2.5 का स्तर मयूर विहार में 207, करोल बाग में 206 और बुराड़ी में 203 रह गया। इसी तरह PM10 का स्तर भी घट गया। क्लाउड सीडिंग के बाद PM10 का स्तर मयूर विहा में 177, करोल बाग में 163 और बुराड़ी में 177 पर आ गया, जो पहले मयूर विहार में 207, करोल बाग में 206 और बुराड़ी में 209 था।
हालांकि, जानकारों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग के जरिए आर्टिफिशियल बारिश करवाने पर प्रदूषण से कुछ वक्त के लिए तो राहत मिल सकती है लेकिन यह स्थायी उपाय नहीं है।
1972 में आखिरी बार हुई थी क्लाउड सीडिंग
यह तीसरा मौका था जब दिल्ली में क्लाउड सीडिंग हुई थी। सबसे पहले 1957 में क्लाउड सीडिंग की गई थी। इसके बाद 1972 की सर्दियों में भी क्लाउड सीडिंग हुई थी। तब जमीन से ही बादलों में केमिकल छोड़े गए थे।
अब 53 साल बाद दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की गई। अब मंगलवार को दो ट्रायल किए गए थे और अभी और किए जाएंगे। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि आने वाले दिनों में क्लाउड सीडिंग के 9-10 ट्रायल और किए जाएंगे।
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