बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने बुधवार को नवी मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी की प्रबंध समिति की सदस्य विनीता श्रीनंदन को कोर्ट की अवमानना (क्रिमिनल कॉन्टेम्प्ट) का दोषी ठहराया, क्योंकि उन्होंने ईमेल के जरिए न्यायालय को ‘डॉग माफिया’ कहकर अपमानित किया था। न्यायाधीश गिरीश कुलकर्णी और अद्वैत सेठना की बेंच ने कहा कि यह टिप्पणी ‘जानबूझकर की गई थी और तीखी’ थी और पढ़े लिखे लोगों से ऐसी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती। कोर्ट ने विनीता को एक सप्ताह की साधारण जेल की सजा सुनाई और ₹20,000 का जुर्माना भी लगाया।
यह मामला जनवरी 2025 में शुरू हुए एक विवाद से जुड़ा है, जब सोसायटी की एक निवासी लीला वर्मा ने खुदाई की शिकायत करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया। वर्मा का आरोप था कि मैनेजमेंट कमेटी उनके और अन्य सदस्यों के खिलाफ इसलिए सख्ती कर रही है क्योंकि वे सोसायटी की जगह पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाते हैं। कोर्ट ने 21 जनवरी को अपना आदेश सुनाया, जिसमें कहा गया कि यदि सोसायटी को कुत्तों को खाना खिलाने या फीडिंग एरिया तय करने में कोई आपत्ति है, तो उन्हें नगर निगम के पास जाना चाहिए, न कि निवासियों को परेशान करना चाहिए।
क्या बोला कोर्ट
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सोसायटी को नगरपालिका अधिकारियों के काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए और लोगों को निश्चित जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाने से रोकना गैरकानूनी है।
लीला वर्मा ने बताया कि कानून के मुताबिक RWAs (रिजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन्स) और AOAs (अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन्स) को आवारा जानवरों को खाना खिलाने की अनुमति देनी ही चाहिए, और स्थानीय प्रशासन को फीडिंग जोन बनाने और उनकी देखभाल का प्रबंध करना होता है।
कोर्ट को कहा- डॉग माफिया
आदेश आने के बाद विनीता श्रीनंदन ने एक से अधिक ईमेल भेजकर अदालत की आलोचना की और उसके लिए “डॉग माफिया” जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। जब बेंच को इन ईमेल की जानकारी मिली, तो उसने विनीता के खिलाफ कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी।
कोर्ट ने कहा कि विनीता का माफीनामा स्वीकार नहीं किया जाएगा। बेंच ने कड़े शब्दों में कहा, ‘हम किसी के घड़ियाली आंसू और माफ़ी की रट स्वीकार नहीं करेंगे, जैसा अक्सर अवमानना करने वालों से सुनने को मिलता है।’
यह विवाद आवारा कुत्तों को खाना खिलाने को लेकर शहरों में लंबे समय से चल रहे मोर्चेबंदी का ही हिस्सा है। कई नगरपालिकाएं फीडिंग जोन बनाकर इस मामले को संभालने की कोशिश करती हैं, लेकिन सतत मॉनीटरिंग और रख-रखाव में कमी होने से लोग अक्सर असहज होते हैं।