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ऑस्ट्रेलिया में मिला 3.5 अरब साल पुराना उल्कापिंड क्रेटर! स्टडी

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे पुराने उल्कापिंड क्रेटर खोजा, लगभग 3.5 अरब साल पुराना हो सकता है। जानिए इससे जुड़ी खास बातें।

Image of Crater

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Freepik)

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी खोज की है। उन्होंने दुनिया का सबसे पुराने उल्कापिंड क्रेटर को खोज निकाला है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग 3.5 अरब साल पहले एक विशाल उल्कापिंड ने पृथ्वी से टकराया था, जिससे ऑस्ट्रेलिया के पिलबारा क्षेत्र में स्थित नॉर्थ पोल डोम साइट बनी।

 

यह खोज पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के Geological Survey of Western Australia और कर्टिन यूनिवर्सिटी के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने की है। इस स्टडी के जरिए पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती चरणों के बारे में नई जानकारियां मिलने की उम्मीद है। इस क्षेत्र में ज्यादा पेड़-पौधे नहीं पाए जाते हैं, यह एक विशाल, लाल चट्टानों से घिरा हुआ सूखा इलाका है।

 

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यह स्टडी नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस पृथ्वी से टकराए उल्कापिंड के प्रभाव ने पृथ्वी की सतह को बहुत हद तक बदल दिया होगा और संभावना है कि जीवन के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाई होंगी।

 

कर्टिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टिम जॉनसन ने इस खोज को पृथ्वी के प्राचीन इतिहास को लेकर पहले से चली आ रही धारणाओं को चुनौती देने वाली बताया।

उन्होंने कहा, 'इससे पहले खोजा गया सबसे पुराना क्रेटर 2.2 अरब वर्ष पुराना था लेकिन यह खोज उससे भी कहीं अधिक पुरानी है, जो इसे पृथ्वी पर अब तक का सबसे पुराना ज्ञात क्रेटर बनाती है।'

कैसे हुआ इस क्रेटर का पता?

शोधकर्ताओं को इस क्रेटर की पहचान ‘शैटर कोन्स’ नाम के चट्टानों की विशेष संरचना के आधार पर हुई। ये शैटर कोन्स सिर्फ तब बनते हैं जब किसी जगह पर अत्यधिक दबाव में उल्कापिंड टकराता है। यह जगह मार्बल बार से लगभग 40 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।

 

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शोधकर्ताओं का मानना है कि जब उल्कापिंड 36,000 किमी प्रति घंटे की गति से टकराया, तो इसने 100 किमी से भी अधिक चौड़ा क्रेटर बनाया होगा, जिससे भारी मात्रा में मलबा पूरी पृथ्वी पर फैल गया होगा। प्रोफेसर जॉनसन ने कहा, 'हमें यह पता है कि हमारे सौरमंडल के शुरुआती दौर में बड़े उल्कापिंडों की टक्कर सामान्य बात थी। इसका प्रमाण हमें चंद्रमा की सतह पर भी देखने को मिलता है।'

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