5 दशक का इतिहास, कब-कब और क्यों फेल हुआ ISRO? पूरी कहानी
साइंस-टेक
• TIRUPATI 18 May 2025, (अपडेटेड 18 May 2025, 12:43 PM IST)
इसरो अपने 101वें मिशन में नाकाम रहा। साल 1969 में इसरो की स्थापना हुई, तब से लेकर अब तक इसरो के कई मिशन असफल रहे लेकिन दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में इसरो का प्रदर्शन ज्यादा बेहतर रहा। पढ़ें रिपोर्ट।

ISRO का EOS-09 लॉन्चिंग असफल। (Photo Credit: PTI)
दुनिया की सबसे सफल अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक इसरो, अपने 101वें मिशन में असफल हो गई। अर्थ ऑब्जर्वेटरी सैटेलाइट EOS-09 ने तय समय 5 बजकर 59 मिनट पर उड़ान भरी थी, प्रक्षेपण के 2 स्टेज सफल भी रहे लेकिन तीसरे स्टेज में यह मिशन फेल हो गया। इसरो ने अपने सैटेलाइट और रॉकेट को नष्ट कर दिया। इसरो का भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल PSLV C61 रॉकेट को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से EOS-09 के साथ प्रक्षेपित किया गया। यह सैटेलाइट बेहद खास था, रक्षा, कृषि, मौसम, सर्विलांस से जुड़े कई काम देश के लिए आसान कर सकता था। तकनीकी खराबी की वजह से यह प्रक्षेपण असफल रहा। क्या आपको पता है कि इसरो के पहले भी कई अहम मिशन असफल हो चुके हैं।
ऐसा पहली बार नहीं है, जब इसरो का कोई मिशन फेल हुआ हो। 5 दशक के स्थापना इतिहास में कई बार इसरो के महत्वाकांक्षी मिशन असफल हुए लेकिन दूसरी स्पेस एजेंसियों की तुलना में इन आंकड़ों को नगण्य कहा जा सकता है। EOS-09 के असफल होने के बाद ISRO की ओर से आधिकारिक तौर पर कहा गया, '18 मई 2025 को, 101वें प्रक्षेपण का प्रयास किया गया, पीएसएलवी-सी61 का प्रदर्शन दूसरे चरण तक सामान्य था। तीसरे चरण में तकनीकी खामी की वजह से मिशन पूरा नहीं हो सका।'
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आइए इसरो के उन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के बारे में जानते हैं, जो तकनीकी खामियों की वजह से असफल रहा-
- रोहिणी टेक्नोलॉजी पेलोड: इसरो के 4 लॉन्च सफल हो चुके थे। SLV-3 के जरिए रोहिणी टेक्नोलॉजी पेलोड को स्थापित किया जाना था। 10 अगस्त 1979 लॉन्च यह मिशन फेल हो गया।
मकसद: भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल SLV-3 टेस्ट और रोहिणी टेक्नोलॉजी पेलोड को ऑर्बिट में स्थापित करना था। इसका मकसद SLV-3 की क्षमताओं को परखना था, जिससे भविष्य के उपग्रह इससे भेजे जा सकें। जो सैटेलाइज इसके जरिए भेजी जा रही थी, उसका काम धरती की तस्वीरें लेना और साइंटिफिक डेटा कलेक्ट करना था।
असफल होने की वजह: वॉल्व में दिक्कत आई थी, प्रक्षेपण के महज 371 सेकेंड के बाद बंगाल की खाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त।
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- ASLV SROSS-1: 24 मार्च 1987 को इसरो ने ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) का प्रक्षेपण किया। इसका मकसद स्ट्रेच्ड रोहिणी सैटेलाइट सीरीज (SROSS-1) को कक्षा में स्थापित करना था। ऐसा नहीं हो सका।
मकसद: ASLV की क्षमताओं का परीक्षण, वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए SROSS-1 को अंतरिक्ष में स्थापित करना था। सैटेलाइट को गामा किरणों और विस्फोटों का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके जरिए भी धरती की निगरानी की जानी थी।
असफल होने की वजह: पहला स्टेज असफल रहा, रॉकेट दिशा भटक गया था।
Photo Credit: PTI - ASLV SROSS-2: इसरो ने एक साल का वक्त लिया। जिस मिशन को अधूरा छोड़ा था, उसे पूरा करने के लिए वैज्ञानिक जुटे। 13 जुलाई 1988 को ASLV का दूसरा टेस्ट हुआ। SROSS-2 को कक्षा में स्थापित करने की कोशिश की गई। मिशन असफल रहा।
मकसद: इसरो ने प्रक्षेपण तकनीक में सुधार लाने के लिए यह प्रयोग किया था। साइंटिफिक रिसर्च को बढ़ावा देने के मकसद से इसे लॉन्च के लिए तैयार किया गया। सैटेलाइट SROSS-2 को अंतरिक्ष के पर्यावरण के अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया था।
असफल होने की वजह: ऑर्बिट तक ASLV नहीं पहुंचा सका। रॉकेट का पहला चरण प्रोपल्शन के बाद नियंत्रण खो बैठा, जिसकी वजह से गाइडेंस सिस्टम फेल हुआ। रॉकेट क्रैश हो गया।
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Photo Credit: PTI - PSLV IRS-1E: इसरो ने 20 सितंबर 1993 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) का पहला प्रक्षेपण किया। इसके जरिए इंडियन रिमोट सेंसिंग (IRS-1E) उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। यह प्रयोग असफल रहा।
मकसद: अगर यह मिशन सफल रहता तो जमीन, वन और जल संसाधनों के लिए सरकार को रिमोट सेंसिंसग डेटा मिलता।
असफल होने की वजह: दूसरे स्टेज में तकनीकी खामी आई, मिशन को अबॉर्ट करना पड़ा। - GSLV-D1 GSAT-1: PSLV के बाद अब इसरो जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का परीक्षण कर रहा था। तारीख तय हुई 28 अप्रैल 1993। इसके जरिए GSAT-1 को जियो-सेंक्रोनाइज्ड ऑर्बिट में स्थापित करना था।
मकसद: कम्युनिकेशन सैटेलाइट के प्रक्षेपण में इसरो स्वाधीनता हासिल करना चाहता था। इसका काम टेलीविजन प्रसारण, टेलीकॉम, और डेटा कम्युनिकेशन सर्विस मुहैया कराना था।
असफल होने की वजह: रॉकेट का क्रायोजेनिक अपर स्टेज में ही फेल हो गया और लॉन्चिंग व्हीकल को थ्रस्ट नहीं कर सका, जिसकी वजह से क्रैश हो गया।
Photo Credit: PTI - GSLV-F02 INSAT-4C: भारत अपनी कम्युनिकेशन और ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं को सुधारना चाहता था। इसरो इस पर एक अरसे से काम कर रहा था। 10 जुलाई 2006 को INSAT-4C कम्युनिकेशन सैटेाइट को जियो सैंक्रोनाइज्ड ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए लॉन्च किया गया।
मकसद: डायरेक्ट-टू-होम टेलीविजन, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और डेटा ट्रांसमिशन को नया आकार देना।
असफल होने की वजह: GSLV-F02 का लिक्विड स्ट्रैप-ऑन स्टेज के थ्रस्ट में प्रेशर कम था। रॉकेड महज 50 सेकेंड बाद समुद्र में जा गिरा। - GSLV-D3 GSAT-4: इसरो ने स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज का पहला टेस्ट किया, 15 अप्रैल 2010 तारीख चुनी गई। GSAT-4 को कक्षा में GSLV-D3 स्थापित नहीं कर पाया।
मकसद: कम्युनिकेशन और नेविगेशन
असफलता की वजह: क्रायोजेनिक स्टेज में ही खामी आ गई, रॉकेट समुद्र में जा गिरा। - GSLV-F06 GSAT-5P: 25 दिसंबर 2010 को इसरो ने GSAT-5P कम्युनिकेशन सैटेलाइट लॉन्च की। कैरियर व्हीकल GSLV-F06 था। अफसोस, इसरो का यह मिशन भी फेल रहा।
मकसद: टेलीकॉम और प्रसारण सेवाओं की क्षमता को बढ़ाना था। C-बैंड और Ku-बैंड ट्रांसपोंडर के साथ कम्युनिकेशन सर्विस पर जोर देना था।
असफलता असफल होने की वजह: रूसी क्रायोजेनिक इंजन खराब हो गया। रॉकेट समुद्र में जा गिरा।
Photo Credit: PTI - चंद्रयान-2: देश के सबसे महत्वाकांक्षी मिशन को 7 सितबंर 2019 को सबसे बड़ा झटका लगा। रातभर लोग इसे देखने के लिए टीवी स्क्रीन पर, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के बाहर हजारों लोग बैठे थे। सब देश के सबसे अहम मिशन पर नजरें गड़ाए थे, अफसोस कि यह मिशन अपने आखिरी दौर में फेल हो गया। GSLV Mk III-M1 रॉकेट से इसे लॉन्च किया गया था। यह लॉन्च 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुआ था। हर स्टेजर सफल हो रहा था। इसे चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराया जा रहा था। चंद्रयान-2 का लैंडर 'विक्रम' चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में असफल रहा।
मकसद: चंद्रमा की सतह की संरचना, खनिज, और जल की खोज। प्रज्ञान रोवर के साथ सतह का विश्लेषण।
असफलता की वजह: 7 सितंबर 2019 को लैंडिंग के दौरान, विक्रम लैंडर नियंत्रण से बाहर हुआ और क्रैश हो गया। नेविगेशन सॉफ्टवेयर में खामी थी, स्पीड पर नियंत्रण नहीं हो सका था। लैंडर का संचार ISRO के ग्राउंड स्टेशन से टूट गया। - GSLV-F10 EOS-03: 12 अगस्त 2021 को यह मिशन लॉन्च हुआ। EOS-03 को जियो सेंक्रोनाइल्ड ऑर्बिट में स्थापित करने में GSLV फेल रहा।
मकसद: आपदा और पर्यावरण निगरानी के लिए रियल-टाइम डेटा जुटाना, मौसम निगरानी, बाढ़, चक्रवात ट्रैकिंग और कृषि सर्वेक्षण करना।
असफलता की वजह: क्रायोजेनिक स्टेज में ही रॉकेट दिशा भटक गया।
Photo Credit: PTI - SSLV-D1: 7 अगस्त 2022 को इसरो ने स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का पहला लॉन्च किया। इसका मकसद छोटे सैटेलाइट को उपग्रहों में कम खर्च पर स्थापित करना था।
मकसद: धरती की निगरानी और साइंटिफिक टेस्ट।
असफलता की वजह: SSLV में खामी की वजह से उपग्रह अस्थिर कक्षाओं में पहुंच गए। - PSLV-C39 IRNSS-1H: 31 अगस्त 2017 को इसरो ने इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS-1H) को लॉन्च किया। असफल रहा।
मकसद: नेविगेशन सिस्टम को दुरुस्त करना।
असफल होने की वजह: सही समय पर हीट शील्ड ही अलग नहीं हो पाया। उपग्रह ऑर्बिट तक नहीं पहुंच सका।

जियो-सेंक्रोनाइज्ड ऑर्बिट क्या है?
यह एक ऐसी कक्षा (ऑर्बिट) है, जिसमें सैटेलाइट पृथ्वी के चारों ओर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है, जितना समय पृथ्वी को अपनी धुरी पर एक बार घूमने में लगता है। इससे उपग्रह पृथ्वी के एक ही स्थान के ऊपर स्थिर दिखाई देता है। यह कक्षा पृथ्वी से लगभग 35,786 किलोमीटर ऊपर होती है। इसे कम्युनिकेशन, निगरानी और टीवी प्रसारण के मकसद से लॉन्च किया जाता है।
ISRO की सफलता दर क्या है?
पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर के मुताबिक इसरो ने लगभग 200 प्रक्षेपण किए हैं, जिनमें से असफलता दर सिर्फ 5 प्रतिशत रही। पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल की असफलता दर बहुत कम है। 53 प्रक्षेपणों में केवल 2 परीक्षण असफल रहे हैं।

इसरो के 10 साल के कामकाज का लेखा-जोखा
जनवरी 2015 से दिसंबर 2024 तक के पिछले 10 वर्षों में, इसरो के पीएसएलवी, एलवीएम3 और एसएसएलवी प्रक्षेपण यान के माध्यम से कुल 393 विदेशी उपग्रहों और 3 भारतीय ग्राहक उपग्रहों को वाणिज्यिक आधार पर प्रक्षेपित किया गया है। यह आंकड़े अंतरिक्ष विभाग की ओर से जारी किए गए हैं।
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