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टारगेट तक कैसे पहुंचती हैं मिसाइलें? पूरी तकनीक समझिए

युद्ध के समय देश की सुरक्षा के लिए मिसाइल एक अहम भूमिका निभाते हैं। आइए जानते हैं, कौसे मिसाइल लक्ष्य निर्धारित करते हैं और इनका तकनीक आदि।

Image of Agni V missile

भारत का अग्नि-V मिसाइल।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

युद्ध के समय सैनिकों के साथ-साथ मिसाइलें भी एक अहम भूमिका निभाती हैं। यह किसी भी देश के लिए आधुनिक हथियार है जो दुश्मन के टारगेट को सटीकता से नष्ट करने के लिए डिजाइन की जाती है। यह डिफेन्स सिस्टम एडवांस टेक्नोलॉजी से तैयार होती है जो इसे बहुत ही घातक बनाती है। आइए, मिसाइल के काम करने का तरीका, इसकी रेंज, चिप तकनीक का इस्तेमाल, और टारगेट पर सटीकता से प्रहार करने की क्षमता को समझते हैं।

मिसाइल कैसे काम करती है?

मिसाइल एक सेल्फ प्रोपेल्ड हथियार सिस्टम है जो अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए कई तकनीकी चीजों का इस्तेमाल करती है। जिसमें-

  • प्रोपल्शन सिस्टम: यह सिस्टम मिसाइल को गति देती है। इसमें रॉकेट मोटर या जेट इंजन हो सकते हैं, जो ईंधन जलाकर मिसाइल को आगे बढ़ाते हैं।
  • नेविगेशन सिस्टम (Navigation System): यह सिस्टम मिसाइल को उसके टारगेट की दिशा की ओर ले जाती है। इसमें GPS, इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) और दूसरे सेंसर शामिल होते हैं।
  • गाइडेंस सिस्टम (Guidance System): यह सिस्टम मिसाइल को उड़ान के दौरान सही दिशा में बनाए रखती है और आखिर में टारगेट की ओर ले जाती है।
  • वारहेड (Warhead): यह मिसाइल का वह भाग है जो टारगेट पर पहुंचकर विस्फोट करता है। यह विस्फोटक, परमाणु या दूसरे प्रकार का हो सकता है।

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मिसाइल की रेंज कैसे तय होती है?

मिसाइल की रेंज, यानी उसकी ज्यादातम दूरी जो वह तय कर सकती है, कई चीजों पर निर्भर करती है। इसमें-

  • ईंधन की मात्रा और प्रकार: ज्यादा ईंधन और अच्छी ऊर्जा वाले ईंधन मिसाइल को लंबी दूरी तक ले जा सकते हैं।
  • मिसाइल का वजन और आकार: हल्के और एयरोडायनामिक आकर से बने मिसाइलें ज्यादा दूरी तय कर सकते हैं।
  • प्रोपल्शन सिस्टम की क्षमता: शक्तिशाली इंजन मिसाइल को ज्यादा गति और दूरी देते हैं। इसके साथ मिसाइल की उड़ान का रास्ता, जैसे बैलिस्टिक या क्रूज, उसकी रेंज को प्रभावित  करता है।

उदाहरण के लिए, भारत की अग्नि-5 मिसाइल की रेंज लगभग 5,000 किलोमीटर है, जबकि ब्रह्मोस मिसाइल की रेंज लगभग 300 से 500 किलोमीटर है।

चिप तकनीक का इस्तेमाल कैसे होता है?

मिसाइलों में चिप टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल उनके नेविगेशन, गाइडेंस, और नियंत्रण सिस्टम्स में होता है। ये माइक्रोचिप्स उड़ान के दौरान डेटा को तेजी से प्रोसेस करता है। इसके बाद GPS और INS डेटा का इस्तेमाल करके मिसाइल की स्थिति और दिशा निर्धारित करता है। टारगेट की स्थिति के हिसाब से मिसाइल की दिशा में सुधार कर सकता है। साथ ही यह कंट्रोल रूम से मिले कमांड को प्रोसेस करता है और प्रतिक्रिया भेजता है। इन चिप्स के जरिए मिसाइलें स्वचालित रूप से निर्णय ले सकती हैं और उड़ान के दौरान जरूरी बदलाव कर सकती हैं।

 

मिसाइल टारगेट पर सटीकता से कैसे प्रहार करती है?

मिसाइल की सटीकता, जिसे ‘सर्कुलर एरर प्रॉबेबिलिटी’ (CEP) कहा जाता है, यह दर्शाती है कि वह अपने टारगेट के कितने करीब पहुंच सकती है। सटीकता बढ़ाने के लिए INS, GPS और गुइडेन्स जैसे तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

  • इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS): यह सिस्टम इनर्शियल सेंसर का इस्तेमाल करके मिसाइल की गति और दिशा को मापती है।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS): यह सिस्टम सैटेलाइट से मिले डेटा के जरिए मिसाइल की स्थिति को सटीकता से निर्धारित करती है।
  • टर्मिनल गाइडेंस: उड़ान के आखिरी स्टेज में, मिसाइल अपने टारगेट को पहचानने और उस पर सटीक प्रहार करने के लिए रडार, इन्फ्रारेड या लेजर सेंसर का इस्तेमाल करती है।
  • ऑटोमैटिक कंट्रोल सिस्टम: यह सिस्टम उड़ान के दौरान मिसाइल की दिशा और ऊंचाई को नियंत्रित करती है, जिससे वह अपने टारगेट की ओर सटीक रूप से बढ़ सके।

मिसाइलों के प्रकार

मिसाइलों को उनके इस्तेमाल और रेंज के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है:

 

  • बैलिस्टिक मिसाइलें: ये मिसाइलें एक ऊंचाई तक जाकर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से अपने टारगेट की ओर गिरती हैं। उदाहरण: अग्नि सीरीज मिसाइल।
  • क्रूज मिसाइलें: ये मिसाइलें विमान की तरह उड़ती हैं और जमीन के करीब रहकर टारगेट तक पहुंचती हैं। उदाहरण: ब्रह्मोस।
  • सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAM): ये मिसाइलें हवाई टारगेट्स को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। उदाहरण: आकाश मिसाइल।
  • हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें: ये मिसाइलें एक विमान से दागी जाती हैं और दूसरे विमान को निशाना बनाती हैं। उदाहरण: अस्त्र मिसाइल।

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मिसाइल बनाने में कितना होता है खर्च

मिसाइल बनाने का खर्च कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे मिसाइल की रेंज, तकनीक, इस्तेमाल का उद्देश्य और किस तरह की मिसाइल बनाई जा रही है- जैसे कि सतह से हवा में मार करने वाली, क्रूज मिसाइल या बैलिस्टिक मिसाइल। साधारण कम दूरी की मिसाइल बनाने में जहां कुछ लाख रुपये से लेकर करोड़ रुपये तक खर्च आता है, वहीं लंबी दूरी की अत्याधुनिक मिसाइलें करोड़ों रुपए में बनती हैं।

 

उदाहरण के लिए, भारत की आकाश मिसाइल की कीमत लगभग 2.5 करोड़ रुपये प्रति यूनिट है, जो मध्यम दूरी तक हवाई खतरे को टारगेट करती है। वहीं ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल की लागत लगभग 30–35 करोड़ रुपये प्रति यूनिट तक जाती है। अगर हम अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल जैसे अग्नि-V की बात करें, तो इसकी पूरी परियोजना पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होते हैं।

 

इसके पीछे का खर्च रिसर्च, रॉ मटेरियल, सटीक नेविगेशन सिस्टम, एडवांस चिप टेक्नोलॉजी और परीक्षण प्रक्रिया पर होता है। कुल मिलाकर, मिसाइल बनाना एक महंगा और मुश्किल काम होता है लेकिन यह देश की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी होता है।

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