logo

ट्रेंडिंग:

ISS पर अंतरिक्ष यात्रियों को कैसे मिलता है पीने का पानी, जानिए प्रोसेस

ISS पर अंतरिक्ष यात्रियों को पानी कैसे मिलता है, यह सबसे बड़ा सवाल है। आइए जानते हैं इसके पीछे का साइंस और प्रोसेस।

Image of ISS

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: NASA)

अंतरिक्ष में जीवन संभव हो सकता है, लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है – पानी। पृथ्वी से दूर, जहां न तो नदियां हैं और न वर्षा, पानी को सहेजना और बार-बार इस्तेमाल करना ही एकमात्र उपाय है। आज जब भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर Axiom-4 मिशन के तहत पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं, तब उनके लिए सबसे मूल्यवान संसाधन पानी ही है।

 

पानी सिर्फ प्यास बुझाने तक सीमित नहीं होता। अंतरिक्ष में यह एक बहुत जरूरी संसाधन है। यह न सिर्फ पीने और खाना पकाने के लिए जरूरी है, बल्कि यह शरीर की सफाई, हवा में नमी बनाए रखने और तापमान को बैलेंस रखने में भी मदद करता है। इतना ही नहीं, अंतरिक्ष में यह रेडिएशन से सुरक्षा देने वाली परत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है।

पानी को दोबारा इस्तेमाल करने की तकनीक

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन-ISS पर एक अत्याधुनिक प्रणाली काम कर रही है, जिसे ECLSS (Environmental Control and Life Support System) कहा जाता है। यह सिस्टम पसीने, सांस से निकलने वाली नमी, वॉश पानी और यहां तक कि पेशाब को भी दोबारा साफ करके इस्तेमाल लायक पानी में बदल देता है। NASA की जल प्रणाली प्रबंधक जिल विलियमसन के अनुसार, "जब पृथ्वी से आपूर्ति असंभव हो, तब हमें हर एक बूंद को बचाने की जरूरत होती है।"

 

यह भी पढ़ें: धरती से अंतरिक्ष तक, कैसे Ham रेडियो से होती है बात? एक-एक बात जानिए

 

NASA के जॉनसन स्पेस सेंटर के क्रिस्टोफर ब्राउन बताते हैं, 'अगर अंतरिक्ष स्टेशन पर आप 100 पाउंड पानी जमा करते हैं, तो उसमें से सिर्फ 2 पाउंड नष्ट होता है, बाकी 98 प्रतिशत फिर से इस्तेमाल में आता है। यह तकनीकी रूप से बड़ी उपलब्धि है।'

 

पेशाब से पीने का पानी बनाने की प्रक्रिया

इस वाटर रीसाइक्लिंग सिस्टम में एक जरूरी मशीन है – यूरिन प्रोसेसर असेंबली (UPA)। यह मशीन पेशाब से पानी को रिकवर करने के लिए खास तकनीक, वैक्यूम डिस्टिलेशन का इस्तेमाल करती है। इससे जो ब्राइन बचता है, उसमें भी कुछ नमी होती है। इस बची हुई नमी को निकालने के लिए अब ब्राइन प्रोसेसर असेंबली (BPA) का इस्तेमाल किया जा रहा है।

 

इस तकनीक के इस्तेमाल से पहले कुल पानी वापस मिलने की क्षमता 93 से 94 प्रतिशत तक थी लेकिन BPA के आने से यह बढ़कर लगभग 98 प्रतिशत तक हो चुकी है।

घर के पानी से भी अधिक शुद्ध

लोगों को यह जानकर अजीब लग सकता है कि अंतरिक्ष यात्री वही पानी पीते हैं। कनाडा के अंतरिक्ष यात्री क्रिस हेडफील्ड ने 2013 में यह स्पष्ट किया कि ‘जिस पानी को अंतरिक्ष में रिसाइकल करके पिया जाता है, वह हमारे घरों में मिलने वाले पानी से भी अधिक शुद्ध होता है।’

 

यह भी पढ़ें: Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला का ड्रैगन शिप से देश के नाम संदेश

 

इस तकनीक ने अंतरिक्ष स्टेशन को एक पूरी तरह से आत्मनिर्भर वातावरण बना दिया है, जहां पानी का एक-एक कतरा बार-बार इस्तेमाल में लाया जाता है। यह आत्मनिर्भरता भविष्य में पृथ्वी के बाहर लम्बे समय तक रहने की तैयारी का एक बड़ा कदम है।

भविष्य की यात्राओं के लिए एक बड़ा कदम

ECLSS जैसी तकनीकों की वजह से ही वैज्ञानिक अब मंगल और चंद्रमा पर लंबी अवधि तक मानव मिशन की योजना बना पा रहे हैं। इन मिशनों में बार-बार सप्लाई भेजना असंभव है, इसलिए ऐसी तकनीक की सफलता ही इन मिशनों की नींव है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला जैसे वैज्ञानिकों के अनुभव और ट्रेनिंग, इन तकनीक को और बेहतर बनाने में मदद करेंगे। इनका अनुभव भविष्य में भारतीय स्पेस मिशन या दूसरे लंबे अंतरिक्ष मिशन्स में कारगर साबित हो सकता है।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap