भारतीय मूल के खगोल वैज्ञानिक डॉ. निक्कु मधुसूदन और उनकी टीम ने एक ऐसी खोज की है, जो पृथ्वी के साथ साथ-साथ ब्रह्मांड के दूर हिस्से में भी जीवन की खोज के क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। डॉ. मधुसूदन और उनकी टीम ने पृथ्वी से लगभग 120 लाइट ईयर दूर मौजूद ग्रह K2-18b के वातावरण की जांच की है। इस स्टडी में उन्होंने एक खास कणों की मौजूदगी पाई है, जिसे आमतौर पर पृथ्वी पर जीवन से जोड़ा जाता है, जिसका नाम है डाइमेथिल सल्फाइड (DMS)।
K2-18b पर जीवन के संकेत?
डॉ. मधुसूदन और उनकी टीम ने यह स्टडी जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से किया। उन्होंने बताया कि DMS कण पृथ्वी पर खास तौर से समुद्री काई (marine algae) से पैदा होती है। जब उन्होंने K2-18b के वातावरण में इसका स्पष्ट संकेत पाया, तो वैज्ञानिकों ने इस इस ग्रह पर जीवन होने के संकेत दिए।
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हालांकि, डॉ. मधुसूदन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ किया, जल्दबाजी में दावा कर देना किसी के हित में नहीं हैं। फिर भी उन्होंने यह कहा कि अब तक की जानकारी में पता चला कि, K2-18b एक ऐसा ग्रह हो सकता है जो गर्म महासागर से ढका हुआ हो और वहां जीवन की मौजूदगी हो सकती है।
K2-18b कैसा ग्रह है?
K2-18b एक ‘हाइसीयन’ (Hycean) ग्रह माना जा रहा है, जिसका आकार पृथ्वी और नेपच्यून के बीच है। इसे सबसे पहले 2017 में कनाडाई खगोल वैज्ञानिकों ने खोजा था। यह ग्रह पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों से बड़ा है लेकिन नेपच्यून जितना विशाल नहीं है। डॉ. मधुसूदन की टीम पहले ही यह अनुमान लगा चुकी थी कि ऐसे ग्रहों पर मोटी हाइड्रोजन गैस की परत के नीचे पानी से भरे महासागर हो सकते हैं।
K2-18b के वातावरण में DMS की मात्रा ज्यादा
डॉ. मधुसूदन ने कहा, ‘हमने कई बार यह सोचा कि शायद यह (DMS का मिलना) कोई गड़बड़ी है लेकिन हर बार वही संकेत मिला।’ इस वजह से अब वैज्ञानिक मान रहे हैं कि K2-18b के वातावरण में DMS की मात्रा काफी ज्यादा हो सकती है, जो पृथ्वी की तुलना में भी ज्यादा है।
हालांकि, कई वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी इस ग्रह पर जीवन जीने लायक वातावरण है, ऐसा कह देना जल्दबाजी होगी। क्रिस्टोफर ग्लीन जैसे कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्रह एक चट्टानी पिंड भी हो सकता है, जिसके ऊपर सिर्फ गर्म हाइड्रोजन गैस की मोटी परत हो, न कि कोई महासागर।
डॉ. निक्कु मधुसूदन कौन हैं?
डॉ. निक्कु मधुसूदन एक भारतीय मूल के प्रोफेसर हैं, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी में कार्यरत हैं। वे एक्सोप्लैनेट्स (सौरमंडल के बाहर के ग्रहों) पर किए गए अपने स्टडी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। उनका मानना है कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हो सकते और आने वाले सालों में नई-नई खोज देखने को मिल सकती है।
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डॉ. मधुसूदन वर्तमान में यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज में एस्ट्रोफिजिक्स और एक्सोप्लैनेट साइंस के प्रोफेसर हैं। उन्होंने बी.टेक. की पढ़ाई आईआईटी (बीएचयू) वाराणसी से की, इसके बाद एम.एस. और पीएच.डी. मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से पूरी की। MIT में उन्होंने खगोल वैज्ञानिक सारा सीगर के निर्देशन में एक्सोप्लैनेट के वातावरण की स्टडी की।
डॉ. मधुसूदन की स्टडी खासतौर से ऐसे ग्रहों के वातावरण की रचना को समझने पर केंद्रित है जो हमारे सौरमंडल से बाहर हैं। उन्होंने ‘हाइसीयन ग्रह’ (Hycean Planet) शब्द गढ़ा, जो ऐसे ग्रहों को दर्शाता है जिनमें हाइड्रोजन से भरा वातावरण और उसके नीचे गहरे महासागर होते हैं- यह जीवन के लिए अनुकूल हो सकते हैं।