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ISS पर जानें से पहले क्यों क्वारंटीन किए जाते हैं अंतरिक्ष यात्री

भारतीय वायु सेना में कार्यरत ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ लॉन्च से पहले क्वारंटीन में हैं। जानें क्या है वजह।

Image of Space Astronauts

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: NASA/ X)

भारतीय वायु सेना में कार्यरत ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ISS की यात्रा से पहले अपने तीन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ लॉन्च से पहले क्वारंटीन में हैं। वह Axiom Mission-4 (Ax-4) के तहत 8 जून 2025 को NASA के कैनेडी स्पेस सेंटर से SpaceX के ड्रैगन यान से रवाना होंगे।

 

इस मिशन में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला पायलट होंगे और ISS पहुंचने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनेंगे। उनके साथ इस मिशन की कमांड NASA की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के हाथों में होगी, जो Axiom Space की मानव अंतरिक्ष उड़ान की निदेशक भी हैं।

 

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टीम में दो और सदस्य शामिल हैं जिनमें से एक पोलैंड से ESA के प्रोजेक्ट अंतरिक्ष यात्री और दूसरा हंगरी से, जिनके लिए यह पहला अंतरिक्ष अभियान होगा। Axiom Space ने क्वारंटीन में जाने से पहले एक विशेष विदाई समारोह आयोजित किया, जिसमें शुभांशु ने कहा, 'मुझे पूरा विश्वास है कि यह मिशन सफल रहेगा।'

क्यों जरूरी है क्वारंटीन?

अंतरिक्ष जाने से पहले क्वारंटीन बहुत जरूरी होता है, ऐसा इसलिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी अंतरिक्ष यात्री किसी संक्रमण से पीड़ित न हो।

 

ISS का वातावरण सीमित और बंद होता है, इसलिए अगर कोई सदस्य बीमार होता है, तो वह बाकी सदस्यों को भी संक्रमित कर सकता है। इसके अलावा, अंतरिक्ष में शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है।

क्वारंटीन के दौरान क्या होता है?

अंतरिक्ष यात्री लॉन्च से पहले लगभग 14 दिन के क्वारंटीन में रहते हैं। इस दौरान उन्हें साफ-सफाई के सख्त नियमों का पालन होता है। साथ ही रोजाना सेहत की जांच की जाती है। किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर उस सदस्य को अलग किया जाता है। इसके साथ इस दौरान अंतिम ट्रेनिंग और मिशन से जुड़ी सभी तैयारियां भी की जाती हैं।

 

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ISS पर क्या करेंगे शुभांशु?

ISS पर पहुंचने के बाद Ax-4 की टीम वहां 14 दिन बिताएगी। इस दौरान वे माइक्रोग्रैविटी में वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, साथ ही नई तकनीकों की जांच करेंगे।

 

यह मिशन भारत के लिए बेहद खास है, क्योंकि 1984 में राकेश शर्मा के बाद यह पहला मौका है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री किसी अंतरराष्ट्रीय अभियान के तहत अंतरिक्ष में जा रहा है। इसके साथ यह सिर्फ भारत ही नहीं, यह मिशन पोलैंड और हंगरी के लिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि उनके नागरिक भी पहली बार ISS जा रहे हैं।

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