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चुनाव प्रचार में AI का रेगुलेशन जरूरी, FSL की रिसर्च ने बताई अहमियत

फ्यूचर शिफ्ट लैब्स की ओर से प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में इस बात पर जोर दिया गया है कि चुनाव प्रचार में हो रहे AI के इस्तेमाल को सरकार की ओर से रेगुलेट किया जाना जरूरी हो गया है।

sagar vishnoi

IPE 2025 को संबोधित करते FSL के को-फाउंडर सागर विश्वोई, Photo Credit: FSL

तेजी से बदलती दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दखल तेजी से बढ़ा है। लिखने-पढ़ने और रिसर्च करने से जुड़े कई कामों में AI का इस्तेमाल किया जा रहा है। हर साल दुनियाभर में हो रहे चुनावों में भी AI का जोरदार इस्तेमाल हो रहा है। भारत में मौजूदा समय में चल रहे दिल्ली चुनाव में भी AI का इस्तेमाल सभी प्रमुख पार्टियां कर रही हैं। इसी से संबंधित एक रिसर्च पेपर 'द परवेसिव इन्फ्लुएंस ऑफ AI ऑन ग्लोबल पॉलिटिकल कैंपेन 2024' में इसके इस्तेमाल से जुड़े फायदों और चुनौतियों पर विस्तार से बातचीत की गई है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि भविष्य में AI के इस्तेमाल पर सरकारी रेगुलेशन तैयार करने की जरूरत है ताकि इसके जरिए फैलने वाली गलत जानकारी को रोका जा सके।

 

इस रिसर्च पेपर 'The Pervasive Influence of AI on Global Political Campaigns 2024' के मुताबिक, AI आधारित टेक्नोलॉजी जैसे कि जेनेरेटिव AI की मदद से मतदाताओं के इंगेजमेंट को बढ़ाने में मदद मिली है। हालांकि, जेनरेटिव AI एक तरह से दोधारी तलवार की तरह भी सामने आ रहा है। जहां प्रचार में इसका अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है तो गलत सूचनाएं फैलाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर लोगों के भरोसे को कमजोर करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। 

AI वाले चुनाव प्रचार को रेगुलेट करने की जरूरत

 

उदाहरण के लिए, ध्रुवीकरण के मामले पर 28 देशों की लिस्ट बनी तो उसमें अमेरिका तीसरा सबसे ज्यादा ध्रुवीकृत (Polraized) देश बनकर सामने आया। यह दिखाता है कि AI जेनेरेटेड प्रोपेगेंडा किस तरह से सामाजिक बंटवारे को और बढ़ा सकता है। इसी तरह सोशल मीडिया पर कम भरोसा होने के मामले में अमेरिका नंबर 1 पर रहा। जेनरेटिव AI पर काम करने वाले प्लेटफॉर्म जैसे कि 'Doppleganger' का इस्तेमाल बार-बार गलत जानकारी फैलाने के लिए और लोगों का भरोसा तोड़ने के लिए किया गया है। इस स्टडी में इस बात पर जोर दिया गया है कि चुनावों में AI के इस्तेमाल को सरकार की ओर से रेगुलेट किए जाने की सख्त जरूरत है ताकि भविष्य में इसके गलत इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सके और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके।

 

इस रिसर्च पेपर को अलीशा बुटाला, डॉ क्रिस्टोफर नेहरिंग और माटेउस्ज लाबुज ने मिलकर लिखा है और AI और गर्वनेंस पर काम करने वाले वैश्विक थिंक टैंक फ्यूचर शिफ्ट लैब्स ने इसे तैयार किया है। इस रिसर्च पेपर को आधिकारिक तौर पर साउथ अफ्रीका के केपटाउन में आयोजित 'IPE कैंपेन एक्सपो 2025' में 23 जनवरी को जारी किया गया। इस रिसर्च पेपर में कई केस स्टडी और इनसाइट को शामिल किया गया है। इन सबके जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किए जाने वाले AI के लिए स्पष्ट रेगुलेशन, एथिकल स्टैंडर्ड और निवेश की कितनी ज्यादा जरूरत है।

 

क्या है फ्यूचर शिफ्ट लैब्स का काम?

 

फ्यूचर शिफ्ट लैब्स के संस्थापक नितिन नारंग ने इस प्रोजेक्ट के लिए अहम भूमिका निभाई है। इसके बारे में निति नारंग कहते हैं, 'यह रिसर्च लोगों के बारे में है। मतदाता, नागरिक और समाज इसके केंद्र में है। हमारे टीम का काम साझा समर्पण पर आधारित है ताकि हम यह समझ सकें कि AI किस तरह से हमारे लोकतांत्रिक परिदृश्य को बदल रहा है। इन अहम मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए हम कोशिश कर रहे हैं कि इस मुद्दे पर ज्यादा विस्तृत और जानकारी से भरी चर्चा हो सके।'

 

इस पेपर को जारी करते समय IPE 2025 के आयोजक ग्लेन म्पानी और फ्यूचर शिफ्ट लैब्स के को-फाउंडर सागर विश्नोई भी मौजूद थे। इस मौके पर सागर विश्नोई ने कहा, 'भविष्य में पॉलिटिकल कैंपेन के अन्य ऐप का आधार ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ही बनेगी और AI की मौजूद भूमिका की तरह ही यह भी ईकोसिस्टम का हिस्सा बन जाएगी।'

बता दें कि फ्यूचर शिफ्ट लैब्स एक ग्लोबल थिंक टैंक है जो AI से जुड़ी नीतियों, टेक्नॉलजी और अन्य डिजिटल स्टेटक्राफ्ट पर काम करता है।

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