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जिस प्लास्टिक से दुनिया परेशान उससे वैज्ञानिकों ने बनाया पैरासिटामोल

वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक से पैरासिटामोल दवाई बनाने में सफलता हासिल की है। जानते हैं कैसा हो पाया यह संभव।

Image of paracetamol tablet

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Canva Image)

आज दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। खासतौर से PET (पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट) — जैसे पानी की बोतलें और फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक- हर साल अनुमान से 350 मिलियन टन से भी ज्यादा फेंका जाता है। दूसरी तरफ, पैरासिटामोल (जिसे एसीटामिनोफेन भी कहते हैं) एक आम दर्द–बुखार की दवा है लेकिन इसका निर्माण आज भी फसिल  (तेल, कोयला) से बन रहे कैमिकल्स से होता है।

 

स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग (University of Edinburgh) के प्रमुख शोधकर्ता Stephen Wallace सहित कई वैज्ञानिकों की टीम ने तय किया कि ‘क्यों न प्लास्टिक के कचरे को ही एक उपयोगी दवा में बदल दिया जाए?’।

 

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यह कैसे संभव हुआ?

PET को तोड़कर प्रारंभिक रसायन बनाना सबसे पहले PET को पारंपरिक रासायनिक तरीकों से तोड़ा गया और एक केमिकल (Lossen rearrangement precursor) तैयार किया गया। इस केमिकल मिश्रण को जींजीनियर्ड E. coli (‘ई-कोलाई’) नाम के बैक्टीरिया में डाला गया। इन बैक्टीरिया में दो खास अलग-अलग क्षमताएं जोड़ी गईं।

 

Lossen rearrangement को जीवित सेल में संभव बनाना (आज तक यह सिर्फ फ्लास्क-केमिस्ट्री में होता था)। फिर इसके बाद बनने वाले PABA (para-aminobenzoic acid) को पैरासिटामोल में बदलना, जो एक प्राकृतिक पदार्थ होता है। इसके लिए दो एंजाइम- PANAT और ABH60- जो कवक और मिट्टी के जंतुओं से लिए गए थे, E. coli में जोड़े गए। चौंकाने वाली बात यह थी कि बैक्टीरिया के अंदर मौजूद सामान्य फॉस्फेट आयन (जो हर सेल में होता है) Lossen rearrangement को उत्प्रेरित करने में मदद करता है ।

क्या रहा रिजल्ट?

यह प्रक्रिया कमरे के तापमान पर (आमतौर पर 24 घंटे के भीतर) पूरी होती है। PET प्लास्टिक का लगभग 92% हिस्सा पैरासिटामोल में बदल गया। इस पूरे तरीके में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम से कम है- ‘कुल मिलाकर जीरो कार्बन इमीशन’ वाली प्रक्रिया।

 

इस खोज की खास बात यह है कि केमिस्ट्री और बायोलॉजी को एक साथ काम में लाया गया। Lossen rearrangement अब तक सिर्फ फ्लास्क या टेस्ट ट्यूब में होता था। पर अब यह बैक्टीरिया के अंदर ऐसे हो रहा है कि वह जीवत तौर से काम कर जाता है। इस गठजोड़ ने बायोरिएक्टर और केमिकल प्रयोग को एक नया रूप दिया।

प्रक्रिया का वैज्ञानिक आधार

बैक्टीरिया को पहले ऐसे बनाया गया कि वह PABA ना बना पाए- ऐसे बैक्टीरिया auxotroph कहलाते हैं। जब Lossen precursor मिला, तो बैक्टीरिया इस रसायन को PABA में बदलकर बढ़ने लगे जिससे साबित हुआ कि केमिकल रिएक्शन जीवित सेल्स में भी हो सकती है। PABA बनने के बाद, दो खास एंजाइम बैक्टीरिया को पैरासिटामोल बनाने में मदद देते हैं।

 

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यह तरीका पारंपरिक कैमिकल प्रोसेस से ज्यादा टिकाऊ है और फॉसिल फ्यूल्स पर निर्भरता को कम करता है। साथ ही, PET कचरे को खास एंटरप्राइज में बदलता है। हालांकि यह अभी सिर्फ प्रयोगशाला स्तर पर (proof‑of‑principle) सफलता मिली है लेकिन इसका औद्योगिक स्तर पर उत्पादन भविष्य में बढ़ सकती है ।

आने वाली चुनौतियां और संभावनाएं

  • स्केल‑अप: PET से शुरू करके बड़ी मात्रा में स्थिर रूप से पैरासिटामोल बनाने के लिए प्रक्रिया को आसान या चरण दर चरण करने की जरूरत है।
  • सुरक्षा और GMP: दवा मानकों (safety, quality) को सुनिश्चित करने के लिए क्लीन प्रोडक्शन व मानकीकरण(Standardization) जरूरी होगा।
  • अन्य प्लास्टिक और दवाएं: इस प्रक्रिया को अन्य प्लास्टिक (जैसे polyolefins) और अन्य अमीनो–कूल डार्गी में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में भी बढ़ाया जा सकता है।

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