धरती का अंदरूनी हिस्सा जिसे पृथ्वी का ‘कोर’ कहा जाता है, हमेशा से वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य का विषय बना हुआ है लेकिन हाल ही में हुई एक नई खोज ने सबको हैरान कर दिया है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि हमारी पृथ्वी के अंदर मौजूद ठोस Inner Core का आकार पिछले दो दशकों में काफी बदला है। पहले माना जाता था कि यह कोर पूरी तरह गोल है, लेकिन अब यह साबित हुआ है कि इसका आकार अलग हो सकता है और यह कुछ जगहों पर 100 मीटर या उससे ज्यादा तक बदल गया है।
धरती के रहस्यमयी हिस्से की खोज
पृथ्वी चार मुख्य परतों से बनी होती है – बाहरी सतह (क्रस्ट), फिर मेंटल, पिघला हुआ बाहरी कोर और ठोस इनर कोर।इनर कोर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बनाए रखने में सबसे जरूरी भूमिका निभाता है, जो हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह चुंबकीय क्षेत्र न होता, तो पृथ्वी भी मंगल ग्रह की तरह निर्जीव हो जाती।
इस शोध का नेतृत्व प्रोफेसर जॉन विडाले और उनकी टीम ने किया। उन्होंने बताया कि इनर कोर का आकार अलग तब होता है जब यह बाहरी पिघले हुए कोर के संपर्क में आता है। उनका कहना है, ‘बाहरी कोर की गति इनर कोर पर असर डाल रही है और उसे हल्का सा हिला रही है।’
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भूकंपों के झटकों से हुई खोज
धरती का इनर कोर लगभग 4000 मील यानी 6400 किलोमीटर गहराई में मौजूद है, जिसे सीधे देख पाना संभव नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक इसे समझने के लिए भूकंप से पैदा होने वाली तरंगों पर स्टडी करते हैं। जब ये तरंगें धरती के भीतर यात्रा करती हैं, तो वे अलग-अलग परतों से होकर गुजरती हैं और उनका व्यवहार बदल जाता है।
1991 से 2023 के बीच बार-बार एक ही स्थान पर आए भूकंप के आंकड़ों की जांच करने के बाद वैज्ञानिकों को यह बदलाव देखने को मिला। प्रोफेसर विडाले ने बताया कि 2010 के आसपास पृथ्वी का इनर कोर धीमा पड़ने लगा और अब न केवल इसकी गति बदली है, बल्कि इसका आकार भी बदल रहा है।
क्या इस बदलाव का असर हम पर होगा?
इस खोज को लेकर वैज्ञानिकों में काफी उत्साह है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ह्र्वोजे टकलसिक ने इसे एक महत्वपूर्ण खोज बताया है। उनका मानना है कि इस स्टडी से वैज्ञानिकों को कोर की चिपचिपाहट (viscosity) और उसके अन्य गुणों के बारे में अधिक जानकारी मिल सकेगी, जो अभी तक विज्ञान की सबसे बड़ी पहेलियों में से एक हैं। हालांकि, प्रोफेसर विडाले ने स्पष्ट किया कि ‘इस बदलाव का हमारे दैनिक जीवन पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह धरती के चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ा हो सकता है।’