जन्नत इसी दुनिया में है और अगर आप इसे देखना चाहते हैं को बनाइए प्लान और पहुंच जाइए तमिलनाडु के ऊटी शहर में। यह शहर, जन्नत से कम नजर नहीं आएगा। यहां के लोग तो इसे पहाड़ों की रानी मसूरी से ज्यादा खूबसूरत बताते हैं। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में बसा ये शहर इतना खूबसूरत है कि यहां कई फिल्मों को शूट किया गया है।
जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने इस शहर को अपना पसंदीदा समर स्टेशन चुन लिया। अंग्रेज अधिकारी, गर्मी की छुट्टियां इस शहर में बिताने आते थे। यही वजह है कि यहां आज भी ब्रिटिश कालीन कई इमारतें नजर आती हैं, जिन्हें देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।
यह शहर ऐतिहासिक भी है और आधुनिक भी। यहां आपको खूबसूरत नजारे वाले रिसॉर्ट भी मिलेंगे तो छोटी-छोटी गुमटियां भी। अगर आप उनमें से हैं जो बिना मौसम देखे घूमने निकल पड़ते हैं तो ये शहर आपके लिए ही है।
समझिए इस शहर का इतिहास-भूगोल
इस शहर में टोडा समुदाय का एक जमाने में ददबा था। जब ईस्ट इंडिया कंपनी, यहां 18वीं शताब्दी में आई तो अंग्रेज अधिकारियों को ये लोकेशन भा गई। मद्रास प्रेजिडेंसी की उन्होंने ग्रीष्मकालीन राजधानी ऊटी को ही बना दी। अंग्रेज गए तो यहां पर्यटन को बढ़ावा मिला। इस शहर की अर्थव्यवस्था, पर्यटन पर टिकी है। यहां के लोग समृद्ध हैं क्योंकि यहां व्यापार के अच्छे संसाधन हैं।
यह शहर मैदानी हिस्सों से नीलगिरी घाट रोड और नीलगिरी माउंटेन रेलवे के साथ जुड़ा है। पहले यह शहर ओटकल मंडू के नाम से जाना जाता था। इसका मतलब पत्थर होता है। टोडा समुदाय के लोग मंडू पत्थर को पवित्र मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं। इसे बाद में उदागमंडलम के नाम से भी जाना गया। इसका एक नाम ओटाकामुंड भी पड़ा लेकिन साल 1821 के बाद से लोग इसे ऊटी बुलाने लगे।
किन जनजातियों का रहा है बोलबाला?
उटी का जिक्र सिलापथ्थिकरम ग्रंथ में भी मिलता है, जिसे 5वीं या 6वीं शताब्दी में लिखा गया था। यहां बदगास, टोड, कोटास, इरुला, कुरुंब जैसी जनजातियों का दबदबा था। इस इलाके पर तमिल साम्राज्य के चेर, चोल और पांड्य साम्राज्य का शासन रहा है।
ये है ऊटी के बनने की कहानी
टीपू सुल्तान ने भी इस पर कब्जा जमाया था लेकिन इसे 1799 में अंग्रेजों ने छीन लिया था। 1866 में ऊटी महानगर बना। अब यह शहर पूरी तरह विकसित है, यहां बड़े-बड़े पार्क हैं, पोलो, गोल्फ और क्रिकेट के स्टेडियम हैं। दिलचस्प बात ये है कि ऊटी में एक झील बनाई जो कृत्रिम है, जिसे देखने हजारों लोग आते हैं।
वन्य जीवों के लिए भी मशहूर है ये जगह
ऊटी में ही नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व है। यह सबसे बड़े संरक्षित इलाकों में से एक हैं। साल 1986 में इसे संरक्षित इलाका बनाया गया, यूनेस्को मैन एंड द बायोस्फियर प्रोग्राम के तहत भी इसे संरक्षित बताया गया है। यहां घने जंगल हैं और कई दुर्लभ प्रजातियों का घर भी यहां है।
नीलगिरी के लंगूर, विलुप्तप्राय लंगूरों की एक किस्म है, जो यहां पाई जाती है। यहां के मुदुमलाई नेशनल पार्क में बंगाल टाइगर भी मिलता है। यहां कपियों की दुर्लभ प्रजातियां मिलती हैं। जंगली बिल्ली, लेपर्ड कैट, ढोल, स्वर्ण सियार, उदबिलाव, नीलगिरी मार्टन जैसे कई दुर्लभ जीव पाए जाते हैं जो भारत के किसी अन्य जंगल में नहीं दिखते हैं।
कहां घूमें?
नीलगिरी में आप सरकार की ओर से बनाए गए बॉटैनिकल गार्डन घूम सकते हैं। ऊटी लेक, चीड़-देवदार के घने जंगल, डीयर पार्क, एवलॉन्च झील, डोडाबेट्टा, टॉय ट्रेन का लुत्फ ले सकते हैं। इसके अलावा यहां आप ट्रेक्किंग, टीटीडीसी बोट हाउस, लेक पार्क, गवर्नमेंट म्युजियम भी घूमने जा सकते हैं।
कैसे यहां आएं?
यहां आप सड़क और हवाई दोनों मार्ग से पहुंच सकते हैं। अगर हवाई जहाज से आ रहे हैं तो कोयंबटूर एयरपोर्ट पर आपको उतरना होगा। अगर ट्रेन से आ रहे हैं तो आप नीलगिरी जिले में उतर सकते हैं। वहां से ऊटी के लिए भी आप बस या ट्रेन से जा सकते हैं।