अपनी कमाई राज्यों में क्यों और कैसे बांटती है केंद्र सरकार? समझिए गणित
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• NEW DELHI 06 Jun 2025, (अपडेटेड 06 Jun 2025, 2:33 PM IST)
16वें वित्त आयोग से 28 में से 22 राज्यों ने केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में हिस्सेदारी को बढ़ाकर 50% करने की मांग की है। ऐसे में जानते हैं कि केंद्र क्यों राज्यों को अपना टैक्स रेवेन्यू साझा करती है? और यह सबकुछ तय कैसे होता है?

16वें वित्त आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया। (Photo Credit: PTI)
मान लीजिए कि एक परिवार में 5 लोग है। इस परिवार का एक मुखिया है, जिसकी कमाई 100 रुपये है। बाकी 4 लोग जो हैं, उनमें से कोई 50 रुपये तो कोई 70 रुपये कमा रहा है। अब सभी चारों समान रूप से आगे बढ़ते रहे, इसलिए परिवार का मुखिया उन्हें अपनी कमाई से कुछ हिस्सा बांट देता है। कुछ इसी तरह का काम केंद्र सरकार का होता है। केंद्र सरकार अपनी कमाई का कुछ हिस्सा राज्यों को बांटती है। अब यह कैसे बंटेगा और कितना बंटेगा? इसे तय करने का काम वित्त आयोग का होता है। वित्त आयोग का गठन 1950 में अनुच्छेद 280 के तहत हुआ था। तब से हर पांच साल में वित्त आयोग का गठन होता है, जो केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स के बंटवारे पर अपनी सिफारिश देता है। वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर ही केंद्र सरकार अपने रेवेन्यू से कुछ हिस्सा राज्यों को देती है।
अभी तक केंद्र सरकार अपने रेवेन्यू में से 41% राज्यों को देती है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर केंद्र सरकार को सालभर में 100 रुपये का रेवेन्यू मिला है तो उसमें से 41 रुपया सभी राज्यों में बांटा जाएगा। हालांकि, अब राज्य सरकारों ने मांग की है इस बंटवारे को 41% से बढ़ाकर 50% किया जाए। यानी केंद्र और राज्यों में रेवेन्यू का बराबरी से बंटवारा हो।
किस-किसने की यह मांग? 16वें वित्त आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने बताया कि 28 में से 22 से ज्यादा राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने हिस्सेदारी को बढ़ाकर 50% करने की मांग की है। उन्होंने कहा, 'पिछले वित्त आयोग ने टैक्स रेवेन्यू का 41% शेयर राज्यों और 59% केंद्र को देने की मांग की थी। अब उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने मांग की है कि राज्यों का शेयर मौजूदा 41% से बढ़ाकर 50% कर दिया जाए।'
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मगर यह वित्त आयोग है क्या?
अनुच्छेद 280 के तहत हर 5 साल में वित्त आयोग का गठन किया जाता है। पहली बार 1950 में वित्त आयोग का गठन किया गया था। तब से अब तक 16 वित्त आयोग का गठन हो चुका है।
वित्त आयोग स्वतंत्र रूप से काम करता है। इसका काम केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स रेवेन्यू का बंटवारा करना होता है। 1951 से 1980 तक टैक्स रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा केंद्र के पास ही रहता था। 10वें वित्त आयोग (1995 से 2000) ने राज्यों के कर्ज और राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सुझाव दिए। साथ ही स्थानीय निकायों को अनुदान देने की सिफारिश भी की।
2015 तक टैक्स रेवेन्यू में राज्यों की हिस्सेदारी 32% थी। 14वें वित्त आयोग ने इस हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने की सिफारिश की। इसके बाद 15वें वित्त आयोग ने इस शेयर को 1% कम कर 41% कर दिया।
Government of India constitutes Sixteenth Finance Commission with Dr. Arvind Panagariya as its Chairman
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) December 31, 2023
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31 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार ने 16वें वित्त आयोग का गठन किया था। यह अक्टूबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। इसके आधार पर 2026-27 से 2030-31 तक टैक्स रेवेन्यू का बंटवारा किया जाएगा। राज्यों की तरफ से 50% की मांग पर अरविंद पनगढ़िया ने कहा, 'मुझे नहीं पता कि आयोग क्या तय करेगा। हालांकि, मैं इतना जरूर अनुमान लगा सकता हूं कि यह 50% नहीं होगा, क्योंकि यह बहुत बड़ी जंप होगी और इतनी बड़ी छलांग लगाने के लिए बगुत कुछ बदलना होगा।'
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आखिर कैसे तय होता है बंटवारा?
केंद्र को मिलने वाले टैक्स रेवेन्यू का बंटवारा कैसे होगा? वित्त आयोग इसे 6 पैमानों पर तय करता है। पहला- किसी राज्य की प्रति व्यक्ति आय में कितनी गैर-बराबरी है? दूसरा- किसी राज्य का एरिया कितना बड़ा या छोटा है? तीसरा- किसी राज्य की आबादी कितनी है? चौथा- किसी राज्य ने आबादी नियंत्रित करने के लिए क्या किया? पांचवां- किस राज्य में जंगल कितने हैं या वहां की इकोलॉजी कैसी है? और छठा- किसी राज्य का टैक्स कलेक्शन कितना है?
इन्हीं 6 पैमानों को अलग-अलग वेटेज दिया जाता है, जो प्रतिशत में होता है। इसका कुल 100 प्रतिशत होता है। 15वें वित्त आयोग ने सबके लिए अलग-अलग वेटेज तय किए थे।
मसलन, प्रति व्यक्ति आय में गैर-बराबरी का वेटेज 45% था। एरिया और आबादी का 15-15%, डेमोग्राफिक परफॉर्मेंस यानी आबादी नियंत्रण का 12.5%, जंगल या इकोलॉजी का 10% और टैक्स कलेक्शन का 2.5% था।
इसी हिसाब से तय होता है कि किस राज्य को टैक्स रेवेन्यू में कितना शेयर मिलेगा। उदाहरण के लिए अगर किसी राज्य की प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत से कम है तो उसे ज्यादा हिस्सा मिलेगा। किसी राज्य का एरिया बड़ा है तो उसे भी ज्यादा हिस्सा मिलेगा। इसी तरह अगर किसी राज्य ने आबादी नियंत्रण में अच्छा काम किया है तो उसको भी ज्यादा हिस्सा मिलता है। जिन राज्यों में जंगल ज्यादा होते हैं, वे अपनी जमीन का आर्थिक उपयोग नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें ज्यादा हिस्सा मिलता है।
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किस राज्य को कितना मिलता है हिस्सा?
मान लीजिए कि केंद्र सरकार का टैक्स रेवेन्यू एक साल में 100 रुपये रहा। अब इस 100 रुपये में से 59 रुपये तो केंद्र अपने पास रखेगी लेकिन बाकी बचा 41 रुपया सभी राज्यों में बांटेगी।
अब केंद्र यह 41 रुपया जो राज्यों में बांटती है, वह सबमें बराबर नहीं बंटता है। किसी राज्य को तो 17% से ज्यादा शेयर मिल जाता है लेकिन किसी को 0.3% शेयर भी मिलता है। सबसे ज्यादा 17.93% उत्तर प्रदेश को मिलता है। यूपी के बाद बिहार को 10.05% शेयर मिलता है। इसके बाद, मध्य प्रदेश को 7.85%, पश्चिम बंगाल को 7.52% और महाराष्ट्र को 6.31% शेयर दिया जाता है। इसी तरह, गोवा को 0.38%, सिक्किम को भी 0.38%, मिजोरम को 0.50%, नागालैंड को 0.56% और त्रिपुरा को 0.70% शेयर मिलता है।
बजट दस्तावेज के मुताबिक, 2023-24 में केंद्र सरकार ने 11.22 लाख करोड़ रुपये का टैक्स रेवेन्यू राज्यों से साझा किया था। इसमें 2.01 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का रेवेन्यू सिर्फ उत्तर प्रदेश को दिया गया था। बिहार को 1.12 लाख करोड़ रुपये का शेयर मिला था।
केंद्र सरकार अपना टैक्स रेवेन्यू 28 राज्यों से साझा करती है। पहले जम्मू-कश्मीर को भी इसमें हिस्सा मिलता था। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। इसी कारण 15वें वित्त आयोग ने राज्यों को मिलने वाले 42% शेयर को घटाकर 41% कर दिया था।
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