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औरंगाबाद: 'बिहार का चित्तौड़गढ़' कहे जाने वाले जिले में क्या सेंध लगा पाएगा NDA?

बिहार के औरंगाबाद जिले में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। सभी सीटों पर इस वक्त महागठबंधन का कब्जा है। 6 में से 4 पर आरजेडी तो 2 पर कांग्रेस का कब्जा है।

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औरंगाबाद जिला, Photo Credit: Khabargaon

बिहार के औरंगाबाद जिले को 'बिहार का चित्तौड़गढ़' भी कहा जाता है। वह इसलिए क्योंकि यहां सूर्यवंशी वंश की राजपूत आबादी की अच्छी-खासी तादाद है। औरंगाबाद मगध साम्राज्य के दौर में महाजनपद में स्थित था। यहां पर बिंबिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक ने शासन किया है। 15वीं सदी में यहां शेरशाह सूरी ने भी शासन किया। शेरशाह सूरी की मौत के बाद यहां मुगलों का कब्जा हो गया। 


ऐसा माना जाता है कि पहले इस जगह का नाम नौरंगा था। जब औरंगजेब का यहां शासन था, तब उसके गवर्नर दाऊद खां ने इसका नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया था। इसे 26 जनवरी 1973 को अलग जिला बनाया गया था।


औरंगाबाद को 'सूर्यनगरी' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां प्राचीन सूर्य मंदिर भी है। इसी मंदिर में महर्षि च्यवन ऋषि का भी आश्रम है। औरंगाबाद में एक देवकुंड भी है। ऐसी मान्यता है कि जब च्यवन ऋषि को कुष्ठ रोग हुआ था, तो उनकी पत्नी सुकन्या ने इसी देवकुंड में सूर्य देव की आराधना की थी। आज भी छठ के दौरान हजारों की संख्या में महिलाएं इसी देवीकुंड में स्नान करती हैं।

 

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बिहार के पहले डिप्टी सीएम यहीं से थे

औरंगाबाद वही जिला है, जहां से बिहार के पहले डिप्टी सीएम अनुग्रह नारायण सिन्हा आते थे। अनुग्रह नाराणय सिन्हा, महात्मा गांधी के करीबियों में गिने जाते थे। वह 1946 से 1957 तक बिहार के डिप्टी सीएम होने के साथ-साथ वित्त मंत्री भी थे। सिन्हा यहां की नबीनगर विधानसभा से विधायक थे।


अनुग्रह नारायण सिन्हा और उनके परिवार का दशकों तक नबीनगर में प्रभाव रहा। उनके बेटे सत्येंद्र नारायण सिन्हा मार्च 1989 से दिसंबर 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे। उन्हें 'छोटे साहेब' कहा जाता था। 


सत्येंद्र नारायण की पत्नी किशोरी सिन्हा दो बार वैशाली से लोकसभा सांसद थीं। उनके बेटे निखिल कुमार भी दिल्ली पुलिस के कमिश्नर होने के अलावा औरंगाबाद से सांसद रह चुके हैं।

 

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राजनीतिक समीकरण

बिहार का औरंगाबाद जिला महागठबंधन का गढ़ है। इस जिले में 6 विधानसभा सीटें आती हैं और सभी पर महागठबंधन का कब्जा है। औरंगाबाद की दोनों लोकसभा सीटों- औरंगाबाद और काराकाट में भी महागठबंधन का ही कब्जा है।


दिलचस्प बात यह है औरंगाबाद की तीन विधानसभा सीटें- गोह, नबीनगर और रफीगंज में 2020 के चुनाव में महागठबंधन ने चुनाव जीता था। जबकि इन तीनों सीटों पर 2015 में एनडीए की जीत हुई थी। इसी तरह बाकी बची तीन सीटें- ओबरा, कुटुंबा और औरंगाबाद में 2015 और 2020 दोनों चुनाव में महागठबंधन जीती थी।


गोह, ओबरा, नबीनगर और रफीगंज में आरजेडी तो कुटुंबा और औरंगाबाद में कांग्रेस का कब्जा है। कुल मिलाकर यह जिला महागठबंधन के लिहाज से काफी मायने रखता है, क्योंकि यहां सभी सीटों पर उसका ही कब्जा है। 


औरंगाबाद जिले में राजपूतों की आबादी सबसे ज्यादा है। औरंगाबाद विधानसभा में अब तक सिर्फ एक बार ही गैर-राजपूत विधायक चुना गया है। 2000 के चुनाव में आरजेडी के सुरेश मेहता यहां के पहले और इकलौते गैर-राजपूत विधायक हैं।

 

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विधानसभा सीटें

  • गोह: पिछले चुनाव में गोह में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला था। आरजेडी के भीम कुमार सिंह ने मौजूदा विधायक और बीजेपी उम्मीदवार मनोज शर्मा को 35,618 वोटों से हरा दिया था।
  • ओबरा: पिछले चुनाव में आरजेडी के ऋषि कुमार ने एलजेपी के प्रकाश चंद्र को 22668 वोटों से हराया था। ऋषि कुमार को 63,662 और प्रकाश चंद्र को 40,994 वोट मिले थे। 
  • नबीनगर: 2020 के चुनाव में नबीनगर से आरजेडी के विजय कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी। उन्होंने जेडीयू के वीरेंद्र कुमार सिंह को 20,121 वोटों से हराया था।
  • कुटुंबा: पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेश कुमार ने 16,653 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। उन्होंने HAM उम्मीदवार श्रवण भुइंया को हराया था।
  • औरंगाबाद: पिछले चुनाव में कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह ने यहां से जीत हासिल की थी। उन्होंने बीजेपी के रामाधीर सिंह को 2,243 वोटों के अंतर से हराया था। 
  • रफीगंज: पिछले विधानसभा चुनाव में रफीगंज से आरजेडी के मोहम्मद नेहालुद्दीन की जीत हुई थी। उन्होंने 9,429 वोट से जीत हासिल की थी।

जिले का प्रोफाइल

औरंगाबाद जिले की कुल आबादी 25.11 लाख है। यहां 11 ब्लॉक और 1,884 गांव हैं। जिले का क्षेत्रफल 3,305 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या घनत्व 769 प्रति वर्ग किलोमीटर है। जिले में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की जनसंख्या 926 है। यहां की साक्षरता दर 70.32% है।

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