बिहार के उत्तर में बसी मधुबनी विधानसभा सीट सांस्कृतिक, राजनीतिक और शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। नेपाल सीमा से सटे इस क्षेत्र को मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। यह वही क्षेत्र है जहां की मधुबनी पेंटिंग विश्व प्रसिद्ध है और यह कला आज भी यहां की हजारों ग्रामीण महिलाओं के जीवन और आजीविका का साधन बनी हुई है। दरभंगा और सीतामढ़ी जिलों से सटे मधुबनी जिले की यह विधानसभा सीट ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है।
बड़े पैमाने पर पलायन, जलजमाव, बाढ़ और रोजगार की कमी यहां के स्थायी मुद्दे हैं। कोसी और कमला बलान नदियों की बाढ़ हर साल इस क्षेत्र को प्रभावित करती है। वहीं, उच्च शिक्षा के लिए युवाओं को अब भी पटना या दिल्ली जैसे शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।
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राजनीतिक समीकरण
2008 के परिसीमन से पहले मधुबनी विधानसभा सीट की सीमाएं कुछ अलग थीं। नए परिसीमन के बाद मधुबनी नगर निगम क्षेत्र, बासोपट्टी और रहिका प्रखंडों के कुछ हिस्सों को मिलाकर यह सीट निर्धारित हुई। यह एक सामान्य श्रेणी की सीट है लेकिन यहां ब्राह्मण, कायस्थ, मुस्लिम और पिछड़ी जातियों का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मधुबनी विधानसभा क्षेत्र में शहरी और ग्रामीण आबादी का संतुलन लगभग बराबर है। हालांकि, मतदान के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी अधिक देखने को मिलती है।
2020 के चुनाव परिणाम
फिलहाल यह सीट आरजेडी के कब्जे में है और समीर कुमार महासेठ वर्तमान विधायक हैं। यह सीट कई वर्षों तक आरजेडी और अन्य दलों के बीच झूलती रही है। हालांकि, 2010 में बीजेपी के रामदेव महतो को जीत मिली लेकिन उसके बाद फिर से आरजेडी ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। समीर कुमार महासेठ को 2025 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी से जीत मिली थी। 2020 के चुनाव में दूसरे स्थान पर विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ थे जिन्हें कुल 64,518 वोट मिले थे। यानी कि वह लगभग 6 हजार वोटों से हार गए थे।
विधायक का परिचय
समीर कुमार महासेठ मधुबनी विधानसभा क्षेत्र से एक प्रमुख राजनेता हैं, जिन्होंने बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वरिष्ठ नेता हैं और मधुबनी सीट से कई बार विधायक चुने गए। उनका जन्म मधुबनी जिले में हुआ, और वे स्थानीय स्तर पर सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं। समीर महासेठ ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत युवा अवस्था में की और धीरे-धीरे आरजेडी के मजबूत नेताओं में शुमार हुए। उनकी लोकप्रियता का आधार उनकी जमीन से जुड़ी छवि और क्षेत्र की समस्याओं, जैसे बाढ़, पलायन, और रोजगार, पर मुखर रुख रहा है।
मधुबनी विधानसभा सीट से उन्होंने 2015 और 2020 में जीत हासिल की। इन चुनावों में उन्होंने सामाजिक समीकरणों, विशेषकर यादव और अन्य पिछड़ी जातियों के समर्थन का लाभ उठाया। 2020 के चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार सेठ ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि वे हार गए थे।
उनके पिता राजकुमार महासेठ भी जनता पार्टी से तीन बार विधायक रहे हैं। उन्होंने 1977 में राम कृष्ण कॉलेज से बीकॉम किया और 1979 में दरभंगा के एलएनएम यूनिवर्सिटी से एम कॉम किया है।
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विधानसभा का इतिहास
मधुबनी विधानसभा सीट पुराने समय से ही बिहार की राजनीति में अहम रही है। इस पर विभिन्न दलों का शासन रहा है-
1952- हरिनाथ मिश्रा (कांग्रेस)
1957- राम कृष्ण महतो (निर्दलीय)
1962- ब्रज बिहारी शर्मा (कांग्रेस)
1967- शफीकउल्लाह अंसारी (कांग्रेस)
1969- सूर्य नारायण सिंह (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी)
1972- सूर्य नारायण सिंह (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1977- दिगंबर ठाकुर (जनता पार्टी)
1980- राजकुमार महासेठ (जनता पार्टी)
1985- पद्मा चौबे (कांग्रेस)
1990- राजकुमार महासेठ (निर्दलीय)
1995- राजकुमार महासेठ (जनता दल)
2000 – मनोरंजन सिंह (निर्दलीय)
2005 (फरवरी) – मनोरंजन सिंह (बीजेपी)
2005 (अक्टूबर) – मनोरंजन सिंह (बीजेपी)
2010 – रामदेव महतो (बीजेपी)
2015 – समीर कुमार महासेठ (आरजेडी)
2020 – समीर कुमार महासेठ (आरजेडी)