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JDU में टिकट की रेस, नए चेहरों पर भरोसा जता सकते हैं नीतीश कुमार

जेडीयू बिहार विधानसभा चुनावों से पहले बड़े परिवर्तन से गुजर सकती है। पार्टी की तैयारी है कि कम से कम 10 नए चेहरों को टिकट दिया जाए। अब क्या रणनीति बन रही है, पढ़ें संजय सिंह की रिपोर्ट।

Nitish Kumar

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। (Photo Credit: PTI)

चुनावी तैयारी के बीच टिकटों को लेकर जोड़-तोड़ की राजनीति शुरु हो गई है। सभी दलों में टिकटों के लिए टिक-टिक की आवाज सुनाई दे रही है। कांग्रेस ने अपनी बाहें जहां सभी के लिए खोल दी है, वहीं इधर जनता दल यूनाइटेड (JDU) में भी टिकट के मंथन का दौर शुरु हो गया है। पार्टी के भीतर यह चर्चा है कि इस बार चुनाव में 10 फीसदी टिकट नए और युवा चेहरों को दिए जाएंगे। 

जेडीयू के अंदरखाने की यह खबर सामने आने के बाद पार्टी के युवा नेताओं का उत्साह चरम पर है। कुछ पुराने चेहरों का टिकट इस चुनाव में कट सकता है। 2020 के चुनाव में जेडीयू मात्र 43 सीट पर ही जीत पाई थी। इस कारण पार्टी नेतृत्व इस बार चुनाव के पूर्व फूंक फूंककर कदम रख रही है।
 
साल 2020 विधानसभा चुनावों में जेडीयू के खाते में 122 सीटें आईं थीं, जिनमें सिर्फ 43 विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। जेडीयू के कोटे की 8 सीटें हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को मिल गई थीं। इस दल का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी करते हैं। 

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2020 के नतीजों से सबक ले रही JDU

जेडीयू ने बहुत सोच-समझकर 115 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को लड़ाया था। जातीय समीकरण साधने की खूब कोशिश भी हुई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। सिर्फ 43 सीट पर ही उम्मीदवार जीत हासिल कर सके। 72 सीटों पर इनके उम्मीदवारों को पराजय का सामना करना पड़ा था। बड़े पैमाने पर हुई हार को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर भी जोरदार चर्चा हुई थी।

चिराग पासवान से क्या जेडीयू लेगी सबक?

2020 में कम सीटें आने के लिए चिराग पासवान को भी एक धड़े ने जिम्मेदार ठहराया था। खुद चिराग पासवान भी मानते हैं कि अगर वह एनडीए के साथ चुनाव लड़ते तो नीतीश कुमार को इतना नुकसान नहीं होता और राष्ट्रीय जनता दल को इतनी सीटें नहीं मिलतीं। हार के कारणों का मंथन भी किया गया था लेकिन मंथन का कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया। एक बात जो उभरकर सामने आई वह यह थी कि लोजपा उम्मीदवारों के कारण पार्टी को भारी नुकसान हुआ।

 

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जातीय समीकरण भी बैठा सकती है जेडीयू

जातीय गणना के बाद बिहार की राजनीति में व्यापक बदलाव आया है। अधिकांश जातियां सत्ता में अपनी हिस्सेदारी ढूंढ रही है। इस स्थिति को देखते हुए अधिकांश पार्टियां इस बात पर विचार कर रही है कि ज्यादा सीटें अति पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को मिलें। ऐसी स्थिति में इस वर्ग के उम्मीदवारों को 40 से 50 सीटें मिल सकती हैं। 

2020 के चुनाव में भी पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के 50 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी मात्र 16 फीसदी थी। 14 प्रतिशत उम्मीदवार अनुसूचित जाति के उतारे गए थे। 

 

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महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ सकती है 

ऐसी चर्चा है कि इस चुनाव में जेडीयू महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाए। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि महिलाओं का ज्यादा वोट नीतीश कुमार को ही मिलता है। महिलाओं के हित में प्रदेश में सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं। 

नीतीश कुमार ने दिया है पार्टी कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र

पार्टी सूत्रों ने बताया कि जेडीयू सुप्रीमो ने कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिया है कि गांव-गांव जाकर सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार करें। गांव के एक एक व्यक्ति को इन योजनाओं की जानकारी होनी चाहिए। सरकार ने हाल में जो घोषणाएं की है उससे भी मतदाताओं को अवगत कराया जाए। जेडीयू इन्हीं प्रयासों के जरिए पिछले चुनाव में आए महज 43 सीटों को बढ़ाकर ज्यादा करना चाहती है।

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