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पश्चिम चंपारण: महात्मा गांधी की कर्मभूमि पर मुश्किल है कांग्रेस की डगर

पश्चिम चंपारण जिले की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ती रही है लेकिन उसका प्रदर्शन लचर रहा है। अगर कांग्रेस को बिहार में मजबूत होना है तो उसकी पहली कड़ी पश्चिम चंपारण को बनाना होगा।

west champaran district

पश्चिम चंपारण जिला, Photo Credit: Khabargaon

देश की आजादी के लिए हुए संघर्ष का अहम केंद्र रहा चंपारण अब पूर्वी और पश्चिमी में बंट चुका है। प्रशासनिक स्तर पर दो जिले हैं और पहला जिला है पश्चिमी चंपारण। पश्चिमी चंपारण जिले का मुख्यालय बेतिया में है। कुल 9 विधानसभा सीटों वाला पश्चिमी चंपारण राज्य की राजनीति के लिहाज से नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (NDA) का मजबूत गढ़ बन गया है। कभी महात्मा गांधी की गतिविधियों का केंद्र रहे इस क्षेत्र में कांग्रेस ही चुनाव लड़ती रही है लेकिन उसके खराब प्रदर्शन के चलते यहां से भारतीय जनता पार्टी (BJP) ज्यादातर सीटों पर चुनाव जीत रही है। 2020 में भी यही हुआ था और पश्चिमी चंपारण की कुल 9 में 8 सीटों पर NDA को जीत मिली थी। 

 

पश्चिमी चंपारण जिले की बात करें तो भोजपुरी बेल्ट का यह जिला नेपाल की सीमा से लगा हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस जिले को देखने पर पता चलता है कि राजकुमार शुक्ल के न्योते पर महात्मा गांधी इसी चंपारण में आए थे और नील की खेती के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। आजादी की लड़ाई के अलावा चंपारण का विशेष महत्व रामायण की अहम किरदार माता सीता की जन्मस्थली की वजह से भी है। बेतिया राज भी इसी चंपारण में रहा और अपनी शान-ओ-शौकत के लिए दुनिया में मशहूर हुआ। आज भी यह महल बेतिया में मौजूद है।

 

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चंपा के वनों की वजह से चंपारण नाम पाने वाले इस इलाके की पहचान कई अमीर घरानों की वजह से भी रही है और आज भी कई परिवार अच्छा-खासा प्रभाव रखते हैं। अपनी प्राकृतिक संपदा की वजह से मशहूर इसी जिले में बिहार का इकलौता वाल्मीकि नगर अभयारण्य भी मौजूद है। घने जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों की वजह से ही इसे बिहार का कश्मीर भी कहा जाता है। मुख्य तौर पर खेती पर निर्भर इस क्षेत्र में गन्ने की खेती खूब होती है। एक समय पर यह क्षेत्र चीनी मिलों की वजह से मशहूर था लेकिन अब मिलों की संख्या काफी कम हो गई है। 

राजनीतिक समीकरण

 

इस जिले की 9 विधानसभा सीटें दो लोकसभा क्षेत्रों वाल्मीकि नगर और पश्चिमी चंपारण में बंटी हुई हैं। 9 में से 6 विधानसभा सीट वाल्मीकि नगर में आती हैं तो 3 विधानसभा सीट पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में आती हैं। इस क्षेत्र में बीजेपी की पकड़ ऐसी हो गई है कि बीजेपी ने वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट पर भी एक बार फिर से 2024 में कब्जा जमा लिया था। 2008 में हुए परिसीमन के बाद से पश्चिमी चंपारण और वाल्मीकि नगर दोनों ही लोकसभा सीटों पर बीजेपी या एनडीए को ही जीत मिलती है। कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह है कि वह चंपारण में अपना प्रदर्शन सुधार नहीं पा रही है।

 

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नौतन में 2 बार, चनपटिया में लगातार 6 बार और बेतिया में 6 में से पांच बार बीजेपी ही जीती है। इन तीनों सीटों पर गठबंधन की ओर से कांग्रेस ही चुनाव लड़ी थी। इसी तरह वाल्मीकि नगर, रामनगर, नरकटियागंज और बगहा में भी कांग्रेस ही लड़ी थी लेकिन NDA के सामने उसके मजबूत और दमदार उम्मीदवार भी चुनाव जीत नहीं पाए। लौरिया में आरजेडी ने अपना उम्मीदवार उतारा था लेकिन उसे भी जीत नहीं मिली। पश्चिमी चंपारण में इकलौती सीट तो महागठबंधन ने जीती थी, वह सिकता की थी जहां से सीपीआई (माले) क़े बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता चुनाव जीते थे। 

 

विधानसभा सीटें:-

 

वाल्मीकि नगर: 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट दो बार जेडीयू और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई है। 2015 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते धीरेंद्र प्रताप सिंह अब जेडीयू में हैं और उसी के टिकट पर विधायक हैं।

 

रामनगर: 1962 में अस्तित्व में आई यह सीट राजघराने से ताल्लुक रखने वाले नारायण विक्रम शाह के परिवार का गढ़ थी लेकिन अब साल 2000 से ही यहां बीजेपी का कब्जा है और भागीरथी देवी लगातार 3 चुनाव जीत चुकी हैं।

 

नरकटियागंज: 2008 के परिसीमन के बाद बनी इस विधानसभा सीट पर वर्मा परिवार की लड़ाई पिछले तीन चुनाव से चल रही है। फिलहाल, बीजेपी की रश्मि वर्मा यहां की विधायक हैं।

 

बगहा: बिहार को केदार पांडेय के रूप में एक मुख्यमंत्री देने वाली विधानसभा सीट बगहा पिछले दो चुनाव से बीजेपी के कब्जे में है। उससे पहले लगातार चार बार जेडीयू ने यहां चुनाव जीते थे।

 

लौरिया: लौरिया विधानसभा पिछले तीन चुनाव में भोजपुरी सुपरस्टार विनय बिहारी की वजह से चर्चा में रही है। विनय बिहारी पहली बार निर्दलीय चुनाव जीते थे लेकिन अब बीजेपी के विधायक हैं।

 

नौतन: केदार पांडेय एक बार बगहा से जीते थे तो 4 बार नौतन से भी जीते थे। पिछले 2 चुनाव से यहां बीजेपी के नारायण प्रसाद चुनाव जीत रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस अपना आखिरी चुनाव साल 1985 में जीती थी। आरजेडी यहां से कभी कोई चुनाव नहीं जीती है।

 

चनपटिया: पिछले 20 साल में चनपटिया विधानसभा बीजेपी का मजबूत किला बन गई है। कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी को हरा पाना उसके लिए असंभव सा हो गया है। पिछले 6 चुनाव में बीजेपी ने 5 नेताओं को चुनाव लड़ाया है और सभी यहां से जीतने में कामयाब हुए हैं।

 

बेतिया: साल 2000 से ही बेतिया भी बीजेपी के लिए आसान रहा है। सिर्फ 2015 का चुनाव ऐसा रहा जब कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी ने बीजेपी की रेनू देवी को हरा दिया था। हालांकि, 2020 के चुनाव में रेनू देवी ने फिर से यह सीट जीत ली।

 

सिकता: 2020 के चुनाव में पश्चिमी चंपारण की इकलौती सीट सिकता ही थी जहां महागठबंधन को जीत मिली थी। यहां लेफ्ट ने 1967 के बाद पहली बार जीत हासिल की थी। दिलीप वर्मा और फिरोज अहमद जैसे नेताओं की वजह से यह विधानसभा सीट काफी चर्चा में भी रहती है।

 

जिले का प्रोफाइल

 

लगभग 39.35 लाख की जनसंख्या वाले पश्चिमी चंपारण में कुल 5 नगर पालिका क्षेत्र, 3 अनुमंडल, 18 प्रखंड और 1483 गांव हैं। जिले का क्षेत्रफल 5228 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या घनत्व 753 प्रति वर्ग किलोमीटर है। जिले में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की जनसंख्या 909 है। वहीं, पश्चिमी चंपारण जिले की साक्षरता दर 55.70 है।

 

कुल सीटें-9

मौजूदा स्थिति-

BJP-8

CPI (ML)-1



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