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दो नदियों का पानी, सूखा और एक प्रोजेक्ट, उलझे क्यों आंध्र-तेलंगाना?

आंध्र प्रदेश का मानना है कि बनकाचेरला प्रोजेक्ट गोदावरी और कृष्णा नदियों को जोड़ने से रायलसीमा का सूखा खत्म हो जाएगा। आखिर कैसे, विस्तार से समझते हैं।

Polavaram Project

पोलावरम प्रोजेक्ट। (Photo Credit: PTI)

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच बनकाचेरला परियोजना को लेकर जल विवाद अब और बढ़ गया है। यह परियोजना आंध्र के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की महत्वाकांक्षी योजना है। योजना का मकसद गोदावरी नदी के अतिरिक्त पानी को कृष्णा नदी के रास्ते रायलसीमा के सूखाग्रस्त इलाकों तक पहुंचाना है। 

आंध्र प्रदेश का कहना है कि हर साल गोदावरी का 3 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (TMC) पानी बंगाल की खाड़ी में बह जाता है। प्रोजेक्ट की मदद से, खाड़ी में गिरने वाले 200 टीएमसी पानी को पोलावरम बांध की मदद से प्राकासम बैराज में लाया जाएगा, फिर बोल्लापल्ली रिजर्वायर और नल्लमाला जंगल के नीचे टनल की मदद से बनकाचेरला तक पहुंचाया जाएगा। 

प्रोजेक्ट की जरूरत क्यों पड़ रही है?

आंध्र प्रदेश का रायलसीमा इलाका, सूखाग्रस्त इलाका है। ठीक वैसे ही जैसे महाराष्ट्र का विदर्भ। गोदावरी नदी का करीब 3000 टीएमसी पानी हर साल मानसून के 100 दिनों में बंगाल की खाड़ी में बह जाता है। आंध्र प्रदेश इस पानी में से 200 टीएमसी को पोलावरम बांध से विजयवाड़ा के प्राकासम बैराज तक, फिर नहरों और लिफ्ट इरिगेशन के जरिए बोल्लापल्ली जलाशय तक पहुंचाना चाहता है। वहां से नल्लमाला जंगल के नीचे सुरंगी पुल जरिए पानी बनकाचेरला जलाशय तक ले जाया जाएगा। कडप्पा और कुरनूल जैसे इलाकों में इस परियोजना से हरियाली आ जाएगी।

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क्या करना होगा?

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक पोलावरम राइट मेन कैनाल की क्षमता को 38,000 क्यूसेक, थाटीपुडी लिफ्ट इरिगेशन नहर को 10,000 क्यूसेक और बोल्लापल्ली में 150 टीएमसी का रिजर्वायर तैयार किया जाएगा। हरिश्चंद्रपुरम, लिंगापुरम, व्य्यंदना, गंगीरेड्डीपालेम और नकिरेकल्लु में 6 लिफ्ट बनाए जाएंगे। 4000 मेगावाट से ज्यादा बिजली की जरूरत पड़ेगी। 

किस राज्य के हिस्से में कितना पानी है, पहले समझिए 

2013 में कृष्णा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल ने अविभाजित आंध्र प्रदेश को 1005 टीएमसी, कर्नाटक को 907 टीएमसी और महाराष्ट्र को 666 टीएमसी पानी दिया था। 1976 के बछावत ट्रिब्यूनल से अविभाजित आंध्र प्रदेश को 811 टीएमसी कृष्णा नदी पानी मिला। साल 2014 में विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश को 512 टीएमसी और तेलंगाना को 299 टीएमसी पानी दिया गया।

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गोदावरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (GWDT) ने अविभाजित आंध्र को 1486 टीएमसी पानी दिया था और 80 टीएमसी को पोलावरम से कृष्णा नदी में डायवर्ट करने को कहा था। आंध्र प्रदेश सरकार का तर्क है कि बनकचेरला परियोजना 2014 के आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत है। राज्य केवल बेकार बहने वाले पानी का इस्तेमाल करना चाहती है। 

प्रोजेक्ट पर कितना खर्च आएगा?

आंध्र प्रदेश सरकार का मानना है कि इस प्रोजेक्ट से कडप्पा और कुरनूल जैसे इलाके में सूखे की समस्या दूर होगी। यह परियोजना 80,112 करोड़ रुपये की लागत से पूरी होगी। इस प्रोजेक्ट के लिए 40,500 एकड़ जमीन की जरूरत है। आंध्र प्रदेश का तर्क है कि यह परियोजना केवल अतिरिक्त पानी का सही इस्तेमाल करेगी। 

प्रोजेक्ट पर आंध्र प्रदेश सरकार का तर्क क्या है?

आंध्र प्रदेश सरकार का कहना है कि यह किसी राज्य के हक का पानी नहीं है, जो जरूरतें पूरी होने के बाद पानी बचता है, उसी के बाद बचे हुए पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह परियोजना 2014 के आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार है। 

तेलंगाना सरकार क्या कह रही है?

तेलंगाना का कहना है कि यह परियोजना आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम  का उल्लंघन करती है, क्योंकि गोदावरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (GWDT) ने तेलंगाना को 968 टीएमसी और आंध्र को 500 टीएमसी पानी आवंटित किया था, लेकिन अतिरिक्त पानी का कोई जिक्र नहीं था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और जल संसाधन मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी का कहना है कि यह परियोजना तेलंगाना की जल सुरक्षा के लिए खतरा है और इसके लिए जरूरी मंजूरी नहीं ली गई।

पर्यावरणविद् क्या कह रहे हैं?

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पोलावरम नहर की क्षमता बढ़ाने से गोदावरी और कृष्णा डेल्टा में पानी का प्रवाह कम हो सकता है। पानी की अम्लीयता बढ़ेगी, नमक बढ़ेगा, मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होगी। मछली पालन औऱ कृषि पर भी असर आएगा। 

नल्लमाला जंगल में टनल बनाने से मिट्टी और भूजल प्रवाह बिगड़ेगा, जिससे वन्यजीवों और आदिवासी समुदायों को नुकसान होगा। केंद्रीय पर्यावरण विशेषज्ञ समिति (EAC) ने 30 जून 2025 को परियोजना को पर्यावरण मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। 

समिति का कहना है कि परियोजना को 1980 के GWDT के फैसले के अनुरूप होना चाहिए। केंद्रीय जल आयोग (CWC) से बाढ़ के पानी और जल-बंटवारे पर मंजूरी लेनी होगी। आंध्र प्रदेश सरकार को निर्देश दिए गए हैं कि एक बार फिर इस प्रस्ताव पर विचार करे।  

 

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भारत में और किन राज्यों में है जल विवाद?

सिर्फ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ही जल विवाद नहीं है। देश के कई राज्य पानी के लिए आपस में लड़ रहे हैं। दिल्ली, पंजाब से लेकर कर्नाटक तक, पानी पर घमासान मचता है, सियासत होती है। 

  • कर्नाटक और तमिलनाडु: कावेरी नदी
  • पंजाब, हरियाणा और राजस्थान: रावी और ब्यास नदी
  • मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान: नर्मदा नदी
  • पंजाब और हरियाणा: सतलुज-यमुना लिंक नहर
  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: कृष्णा नदी
  • ओडिशा और छत्तीसगढ़: महानदी
  • उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश: बेतवा नदी
  • केरल और तमिलनाडु: मुल्लापेरियार बांध (पेरियार नदी)


किन देशों से है भारत का जल विवाद?

  • पाकिस्तान: सिंधु नदी
  • चीन: ब्रह्मपुत्र नदी
  • बांग्लादेश: गंगा और तीस्ता नदी
  • नेपाल: कोसी और गंडक नदी

 

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