भाखड़ा नहर के पानी पर हरियाणा-पंजाब के उलझने की पूरी कहानी
देश
• CHANDIGARH 03 May 2025, (अपडेटेड 03 May 2025, 3:10 PM IST)
गर्मी ने दस्तक दी, पंजाब और हरियाणा पानी के लिए टकरा बैठे। दो राज्यों के बीच छिड़ी जंग का निपटारा भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड की बैठक में भी नहीं हो पाया। यह विवाद क्या है, विवाद का हल कैसे निकल सकता है, विस्तार से समझते हैं।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान नंगल डैम पर। (Photo Credit: BhagwantMann/X)
गर्मी की शुरुआत हो और दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में पानी को लेकर विवाद हो, ऐसा हो नहीं सकता। दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार थी, तब यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। अब दिल्ली और हरियाणा दोनों जगहों पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार है, दूसरी तरफ पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। हरियाणा और दिल्ली में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का दौर थमा तो पंजाब से नई जंग शुरू हो गई। भाखड़ा नहर के पानी पर विवाद इतना बढ़ा कि हरियाणा में सर्वदलीय बैठक तक बुलानी पड़ गई।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड की बैठक में हरियाणा और पंजाब सरकार के अधिकारियों के बीच में ऐसी झड़प हुई, जिसके बाद हंगामा ही बरप गया। दिल्ली में शुक्रवार को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड की बैठक हुई लेकिन कोई राह नहीं निकल पाई। बैठक में तो यह सलाह दी गई कि हरियाणा को 8 दिनों तक के लिए अतिरिक्त 4500 क्सुयसेक पानी मुहैया करा जाए, भाखड़ा डैम से पंजाब पुलिसकर्मियों को हटा दिया जाए। सहमति तो नहीं बनी लेकिन इस पर सिसायत छिड़ गई है।
पानी को लेकर सियासत छिड़ गई
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान बहसबाजी के बीच सार्वजनिक मंच पर टकराए तो इशारों-इशारों में खूब बातें हुईं। सीएम नायब सैनी ने कहा कि पीने के पानी पर राजनीति न हो, ऋषि-मुनियों की परंपरा रही है, मेहमान को पानी पहले देना चाहिए। उनका तर्क है कि 2 करोड़ 80 लाख हरियाणावासियों के लिए पानी मिलना चाहिए।
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हरियाणा में सर्वदलीय बैठक
पानी पर भड़के हंगामे की स्थिति यह है कि सर्वदलीय बैठक बुलानी पड़ी है। विधानसभा में विशेष सत्र तक बुलाई जा सकती है। हरियाणा सरकार का कहना है कि भाखड़ा डैम से 22 फीसदी ज्यादा पानी पंजाब ले गया है।
पानी पर रार, किसने क्या कहा?
29 अप्रैल को भगवंत मान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार, हरियाणा को पानी देने के लिए दबाव बना रही है लेकिन हरियाणा अपने हक का पानी पहले ही इस्तेमाल कर चुका है। भगवंत मान ने कहा कि वह हरियाणा के लिए रिलीज किए जा रहे पानी को कम कर रहे हैं।
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ठीक इसी दिन, हरियाणा के सीएम नायब सैनी ने कहा, 'मैं भगवंत मान से अनुरोध करता हूं कि वे अपनी पार्टीगत राजनीति से ऊपर उठकर हरियाणा को पीने का पानी उपलब्ध कराएं। भाखड़ा बांध जलाशय को जून से पहले खाली करना जरूरी है जिससे मानसून के दौरान बारिश के पानी को संग्रहित किया जा सके। अगर जलाशय में जगह नहीं बची तो अतिरिक्त पानी 'हरिके पत्तन' के रास्ते पाकिस्तान चला जाएगा।'
केंद्र सरकार के दखल की उठी मांग
पानी को लेकर इसी दिन हरियाणा की सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी, केंद्रीय जलशक्ति ममंत्री आर पाटिल से मिलने पहुंच गईं। यह विवाद तब भी नहीं थमा। 30 अप्रैल को हरियाणा सरकार ने अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की धार 7 के तहत इस विवाद में केंद्र का हस्तक्षेप मांगा। BBMB ने केंद्र सरकार से इस विवाद में दखल देने की अपील की।केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस विवाद में कहा कि पंजाब सरकार अपना दायित्व नहीं निभा रही है। उन्होंने कहा कि यह दोनों राज्यों के बीच सहयोग के सिद्धांतों के खिलाफ है।
हरियाणा के किन जिलों में होगी पानी की किल्लत?
हिसार, सिरसा, फतेहाबाद और भिवानी जैसे जिलों में पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। हरियाणा सरकार का कहना है कि ये जिले पानी के संकट से जूझ रहे हैं। सतलुज और ब्यास नदियों का पानी, भाखड़ा नहर प्रणाली के जरिए हरियाणा, पंजाब और राजस्थान तक पहुंचता है। नहर प्रणाली से करीब 27.41 लाख हेक्टेयर जमीन तक पानी पहुंचता है। हरियाणा खेती के लिए इस पर निर्भर है। हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जैसे जिले भाखड़ा नहर पर निर्भर हैं।
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कितना पानी चाहता है हरियाणा?
हरियाणा सरकार का कहना है कि पहले पंजाब की ओर से 9500 क्युसेक पानी हर दिन दिया जाता था लेकिन अब इसे 4000 के आसपास किया गया है, जिसकी वजह से पानी पीने के लिए नहीं मिल पा रहा है, सिंचाई संकट भी पैदा हो गया है।
पंजाब का रुख क्या है?
भगवंत मान ने शुक्रवार को नंगल डैम पर पहुंचकर कहा था कि पंजाब जल संकट से जूझ रहा है, धान की खेती शुरू होने वाली है। पंजाब का पानी पंजाबियों के लिए है, हम इसे नहीं देंगे। पंजाब का BBMB में 60 फीसदी हिस्सा है, हम इसे किसी और को नहीं देंगे।
पानी को लेकर क्यों टकराते हैं हरियाणा और पंजाब?
18 सितंबर 1966 का संसद से पंजाब का पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग-अलग अस्तित्व में आए। विभाजन हुआ तो सतलुज, रावी और ब्यास नदियों के पानी के बंटवारे का मुद्दा उठा। ये नदियां, पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की कृषि के लिए जरूरी थीं। साल 1955 तक, भाखड़ा बांध सतलुज नदी पर बन गया। भाखड़ा-नंगल परियोजना को लेकर हरियाणा का दावा है कि उसे कभी उसके हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला। 1960 के दशक में सतलुज नदी के पानी को हरियाणा और यमुना नदी तक ले जाने के लिए सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर की योजना बनी। इसका निर्माण 1982 में शुरू हुआ, लेकिन पंजाब में विरोध के कारण रुक गया।
किसे कितना पानी मिलना चाहिए?
साल 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच रावी-ब्यास नदियों के पानी का बंटवारा तय किया। इसके तहत पंजाब को 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी, हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी और राजस्थान को 8.6 मिलियन एकड़ फीट पानी देने की बात कही गई। इस बंटवारे को लागू करने के लिए एक अथॉरिटी बनाई गई। यह अधिकरण, अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत काम करती है। इसी की धारा 7 के तहत हरियाणा सरकार चाहती है कि केंद्र सरकार, पानी विवाद में दखल दे और राज्यों को नए सिरे से पानी का आवंटन करे।
अब आगे क्या हो सकता है?
हरियाणा की सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी ने कहा है कि राज्य सरकार पंजाब के साथ जल बंटवारे को लेकर हुए ताजा विवाद के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड साझेदार राज्यों के लिए पानी का आवंटन करता है और पंजाब को इस पर आपत्ति नहीं उठानी चाहिए। उन्होंने पंजाब की भगवंत मान सरकार पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का भी आरोप लगाया। श्रुति चौधरी ने कहा, 'हमने मामले को बढ़ने नहीं देने का प्रयास किया था। लेकिन मान ने इसे राजनीतिक रंग दे दिया। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार राज्य के वैध हिस्से की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। मंत्री ने कहा कि अगर यह मुद्दा नहीं सुलझा तो हम उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। हमारे पास हरियाणा को मिलने वाले पानी का पूरा डेटा है। सभी प्रासंगिक तथ्य न्यायालय के समक्ष पेश किए जाएंगे।
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