जस्टिस जमशेद बुर्जोर पारदीवाला (JB Pardiwala) की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक महीने से भी कम समय में तीन ऐसे फैसलों सुनाए हैं जिसने सुप्रीम कोर्ट को असमजंस की स्थिती में डाल दिया है। जस्टिस पारदीवाला के इन फैसलों की वजह से भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई को इन मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के कई सीनियर जजों ने जस्टिस पारदीवाला की ओर से पारित आदेश पर नाखुशी जाहिर की है और इस बारे में CJI से बात की है।
जस्टिस प्रशांत कुमार का मामला
इसमें सबसे पहला मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से जुड़ा है। दरअसल, पिछले दिनों जस्टिस पारदीवाला ने एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार की आलोचना की थी और उन्हें रिटायरमेंट तक किसी आपराधिक मामलों की सुनवाई नहीं दिए जाने का निर्देश दिया था।
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इसके बाद प्रधान जस्टिस बीआर गवई ने मामले में हस्तक्षेप किया और जस्टिस पारदीवाला से अपनी टिप्पणियों पर पुनर्विचार करने को कहा है। जस्टिस पारदीवाला ने आठ अगस्त को अपनी टिप्पणियां हटा दीं और स्पष्ट किया कि उनका मकसद जस्टिस प्रशांत कुमार को शर्मिंदा करना या उन पर आक्षेप लगाना नहीं था।
जस्टिस विक्रम नाथ को सौंपा गया केस
वहीं, दूसरे मामले में जस्टिस पारदीवाला ने आवारा कुत्तों को लेकर आदेश दिया था। जस्टिस पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने आवारा कुत्तों के काटने से, खासतौर पर बच्चों में होने वाली रेबीज की समस्या की वजह से दिल्ली-एनसीआर के सरकारी एजेंसियों को निर्देश दिया था कि वे सभी आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द सड़कों से उठाएं और उन्हें आश्रय स्थलों में डाल दें।
पीठ के आदेश की कुत्ता प्रेमियों और कई पशु कल्याण संगठनों ने कड़ी आलोचना की। इसके बाद ही सीजेआई गवई ने मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ को ट्रांसफर कर दी। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों से छोड़ने पर रोक संबंधी अपने निर्देश को बहुत कठोर बताते हुए 22 अगस्त को इसमें संशोधन किया। पीठ ने आदेश दिया कि पकड़े गए आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद वापस उन्हीं क्षेत्रों में छोड़ दिया जाए, जहां से उन्हें उठाया गया था।
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तीसरा मामला भी जस्टिस विक्रम नाथ को
तीसरा मामला हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिकी असंतुलन से जुड़ा हुआ है। जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने 28 जुलाई को हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिकी असंतुलन की ओर ध्यान दिलाते हुए आगाह किया था कि अगर स्थिति में बदलाव नहीं आया, तो पूरा राज्य विलुप्त हो सकता है। पीठ ने कहा था, 'हम राज्य सरकार और भारत संघ को यह समझाना चाहते हैं कि राजस्व अर्जित करना ही सब कुछ नहीं है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर राजस्व अर्जित नहीं किया जा सकता।'
पीठ ने कहा था कि अगर चीजें आज की तरह चलती रहीं, तो वह दिन दूर नहीं, जब पूरा हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से गायब हो जाएगा। भगवान न करे कि ऐसा हो। यह मामला भी जस्टिस पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ से वापस लेकर जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ को सौंप दिया गया है।
कौन हैं जस्टिस पादरीवाला
जस्टिस पारदीवाला का जन्म 12 अगस्त 1965 को मुंबई में हुआ था। उनका परिवार गुजरात के वलसाड शहर से ताल्लुक रखता है और परिवार के कई सदस्य वकालत के पेशे से जुड़े हुए हैं। जस्टिस पारदीवाला ने 1985 में वलसाड के जेपी आर्ट्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उन्होंने 1988 में वलसाड के केएम लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की और 1989 में वकालत शुरू की। जस्टिस पारदीवाला को 17 फरवरी 2011 को गुजरात हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 28 जनवरी 2013 को उन्हें गुजरात हाई कोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था। नौ मई 2022 को जस्टिस पारदीवाला को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया। वह मई 2028 में भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बनने की कतार में हैं।