logo

ट्रेंडिंग:

यमुना का असली सिरदर्द तो दिल्ली के STP हैं! गंदे नालों की हकीकत जानिए

दिल्ली में यमुना नदी में गिरने वाले नालों के पानी को साफ करने के लिए लगभग 40 STP हैं लेकिन कई ऐसे हैं जो या तो काम ही नहीं कर रहे हैं या कर रहे हैं तो पानी को साफ नहीं कर पा रहे हैं।

yamuna pollution

यमुना नदी में प्रदूषण, Photo Credit: Khabargaon

दिल्ली में नए सरकार बनने से पहले सबसे ज्यादा चर्चा यमुना नदी की हो रही है। उपराज्यपाल वी के सक्सेना के निर्देश के बाद नदी की सफाई का अभियान शुरू कर दिया गया है। वादा किया जा रहा है कि 2027 के आखिर तक दिल्ली में यमुना नदी की गंदगी खत्म की जा सकेगी। शुरुआत में उन मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है जो नदी के पानी से ठोस कचरा हटाती हैं। यमुना में प्रदूषण का स्तर बताने वाली पुरानी रिपोर्ट्स देखें तो यह स्पष्ट है कि ये प्रयास काफी नहीं हैं। यमुना में प्रदूषण की असली वजह नदी में गिरने वाले ऐसे नाले हैं जिनमें दूषित पानी आता है। असल में इन नालों में साफ पानी आना चाहिए जो कम से कम इस लायक हो कि उसमें खतरनाक केमिकल जैसी चीजें न हों। इसके लिए दिल्ली में दर्जनों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) भी हैं लेकिन इनके सही तरीके से काम न कर पाने की वजह से ही गंदा पानी और सीवेज सीधे नदी में गिरता है और यमुना नदी दिल्ली पार करते-करते बेहद प्रदूषित हो जाती है।

 

दिल्ली शहर की जनसंख्या, क्षेत्रफल के हिसाब से काफी ज्यादा है। लाखों लोग ऐसी कॉलोनियों में रहते हैं जहां अभी भी सीवर लाइन नहीं बिछी है। इसके चलते वहां का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंच ही नहीं पाता है। कुछ अन्य कारणों के चलते दिल्ली में जितना सीवेज हर दिन पैदा होता है, उससे कम हिस्सा ही साफ किया जा सकता है। नतीजा यह होता है कि कुछ सीवेज बिना साफ हुए ही अलग-अलग नालों से होते हुए यमुना नदी में गिरता है।  

 

यह भी पढ़ें- प्रयागराज में गंगा का पानी खतरनाक! नहाने से हो सकती है गंभीर बीमारी

कितना काम कर पा रहे हैं STP?

 

जनवरी 2025 की सैंपलिंग के आधार पर फरवरी में प्रकाशित दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में कुल 38 हैं। इसमें से ओखला के तीन STP इस महीने बंद रहे। बाकी बचे 35 में से 15 STP ऐसे थे जो तय मानकों के हिसाब से काम नहीं कर पा रहे थे। यानी उन्हें पानी को जितना साफ करना चाहिए, उतना साफ वे नहीं कर पा रहे थे। इसका मतलब यह हुआ कि जो सीवेज नालों के जरिए इन STP तक जाता है, वह बिना पूरी तरह साफ हुए ही फिर से नालों में बहा दिया जाता है।

 

 

इस तरह से कुल 20 STP ऐसे थे जो अपनी पूरी क्षमता पर काम कर रहे थे और मानकों का पालन कर रहे थे। इन 20 की क्षमता कुल 406 MGD है। यानी कुल 406 MGD सीवेज ऐसा था जो पूरी तरह से साफ करके ही यमुना में डाला जा रहा था। बाकी के 15+3 प्लांट या तो काम नहीं कर पा रहे थे या फिर वे जिस सीवेज को साफ कर रहे थे, वह साफ होने के बावजूद मानक के हिसाब से साफ नहीं था। इसका मतलब यह होता है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकला पानी भी इस लायक नहीं था कि उसे यमुना नदी में छोड़ा जा सके।

 

यह भी पढ़ें- अरावली सफारी प्रोजेक्ट: बुनियादी बातें जिनसे अनजान हैं हम और आप

 

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की गड़बड़ी को उदाहरण से समझते हैं। निलोठी में 40 MGD की क्षमता का STP है। यहां आने वाले पानी का TSS 268 होता है। साफ करने के बाद इसका TSS 10 या उससे कम होना चाहिए। हालांकि, जनवरी महीने की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां से निकलने वाले पानी की TSS 23 था। इसी तरह यहां आने वाले पानी का BOD 160 था, ट्रीटमेंट के बाद इसे भी 10 होना चाहिए लेकिन इसका स्तर 12 था। DPCC की रिपोर्ट में भी लिखा गया कि यह प्लांट मानकों का पालन नहीं कर पा रहा है।

 

इस प्लांट की क्षमता 40 MGD की है। इसका मतलब यह हुआ कि 40 MGD की क्षमता वाला यह प्लांट काम तो कर रहा है लेकिन यहां से निकलने वाला पानी साफ नहीं है। इसी तरह के कुल 15 STP हैं जिनमें जो सीवेज जाता है, वह वहां से निकलने के बाद भी उतना साफ नहीं होता है, जितना कि उसे होना चाहिए। 

क्या काम हुआ?

 

यमुना के मामले पर सवाल पूछे जाने पर दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना अक्सर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हैं। दरअसल, एनजीटी के आदेश पर एक हाई लेवल कमेटी बनाई गई थी जिसके अध्यक्ष उपराज्यपाल ही थे। उनकी अध्यक्षता में इस कमेटी ने काम करना शुरू भी कर दिया था लेकिन दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2023 में उपराज्यपाल की कमेटी के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति पर रोक लगा दी। ऐसे में इस कमेटी की मीटिंग दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में इसकी मीटिंग होती रही। इस मीटिंग के मिनट्स DPCC को भेजे जाते रहे।

 

यह भी पढ़ें: सर्कुलर इकॉनमी से सरकार पैदा करेगी एक करोड़ नौकरी! कैसे?

 

NGT के आदेश पर बनाई गई हाई लेवल कमेटी की आखिरी मीटिंग 23 जुलाई 2024 को हुई थी। इस मीटिंग के मुताबिक, जुलाई 2023 में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की कुल क्षमता 632 MGD की थी जिसे जुलाई 2024 तक बढ़ाकर 964.5 MGD किया जाना था। असल में जुलाई 2024 तक कुल 712 MGD की क्षमता ही बनाई जा सकी। इसकी हकीकत यह है कि जनवरी 2025 में कुल 711.2 MGD सीवेज का ट्रीटमेंट प्रतिदिन किया गया लेकिन कई प्लांट अपनी क्षमता के हिसाब से काम नहीं कर पा रहे थे।

 

 

इस मीटिंग में बताया गया कि हर दिन दिल्ली में 792 MGD सीवेज पैदा होता है। जिसमें से सिर्फ 712 MGD सीवेज यानी 79.9 प्रतिशत का ही ट्रीटमेंट करने की क्षमता दिल्ली के पास है। इसमें से भी 38 STP को मिलाकर कुल 607.1 MGD का ही ट्रीटमेंट हो पाता है। यानी 80 MGD तो क्षमता में ही कमी है और कुल 184.9 MGD गंदा पानी हर दिन बिना साफ किए ही यमुना में गिरा दिया जाता है। तब की मीटिंग में कहा गया था कि सीवेज ट्रीटमेंट की क्षमता बढ़ाने के लिए तीन रास्ते अपनाए जा रहे हैं। पहला-कुल 3 नए STP का निर्माण, 40 डीसेंट्रलाइज्ड STP का निर्माण और 18 STP को अपग्रेड करने का काम।

 

यह भी पढ़ें: कम तीव्रता फिर भी भूकंप से हिली दिल्ली, वजह क्या है? समझिए विज्ञान

 

इस मीटिंग के मुताबिक, ओखला में 124 MGD, सोनिया विहार में 7 MGD के नए STP बनाए जा रहे हैं जिनका काम लगभग पूरा होने वाला था। इसके अलावा, रिठाला फेज 1 के 40 MGD प्लांट को अपग्रेड करने का काम तब जारी था। अब यह प्लांट चालू हो चुका है और मानकों के हिसाब से भी काम कर रहा है। कोंडली पेज 2 के 25 MGD वाले प्लांट काम भी पूरा हो चुका था। यह प्लांट भी अब अपनी क्षमता के हिसाब से काम कर रहा है। कुछ अन्य STP भी तैयार हो चुके हैं और अब काम भी कर रहे हैं। दिल्ली में 40 डीसेंट्रलाइज STP बनाने का फैसला हुआ था जिसमें से 38 के लिए जुलाई 2024 तक जमीन अलॉट की जा चुकी थी। इस मीटिंग में बताया गया कि नजफगढ़ और सप्लीमेंट्री ड्रेन में गिरने वाले कुल 50 नालों को जुलाई 2024 तक ट्रैप किया जा चुका था। कुल 1437 कच्ची कॉलोनियां दिल्ली में हैं। इसमें से 1168 में सीवेज नेटवर्क बिछाया जा चुका है। वहीं, 161 के लिए NOC मिलना बाकी था।

फिर कैसे साफ होगी यमुना?

 

इस हाई लेवल कमेटी के जो लक्ष्य तय किए गए थे उनको पूरा करके ही दिल्ली में यमुना को साफ किया जा सकता है। दिसंबर 2024 की DPCC की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 17 नाले ऐसे थे जिनका गंदा पानी यमुना में गिर रहा था। इनमें से एक भी नाला ऐसा नहीं था जिसमें BOD का स्तर तय मानक 30 से कम रहा हो। इसी तरह 17 में से 4 नाले ऐसे थे जिनमें COD तय मानक 250 से ज्यादा था। TSS का स्तर 100 से ज्यादा नहीं होना चाहिए लेकिन सिर्फ एक ही नाला ऐसा था जिसमें TSS का 100 से कम था।

 

 

मौजूदा वक्त में सबसे पहला लक्ष्य यही होना चाहिए कि सीवेज ट्रीटमेंट की क्षमता में जो गैप है, उसे खत्म किया जाए। यानी जितना सीवेज हर दिन पैदा हो उसको ट्रीट करके ही यमुना नदी में जाला जाए। दूसरा लक्ष्य यह होना चाहिए कि सभी STP अपनी क्षमता के हिसाब से काम करें और गंदे पानी को साफ करके ही नदी में डालें। नालों में गिरने वाले अवैध उद्योगों के दूषित पानी और केमिकल युक्त गंदे पानी को रोका जाए। अगर यह लक्ष्य हासिल हो जाता है, यमुना नदी में जलस्तर बढ़ाया जाता है और नदी की गाद निकालकर उसके बेड में जमा गंदगी भी साफ होती है, तभी यमुना साफ हो सकती है।

 

Related Topic:#Yamuna River

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap