धान के 'बलिदान' से साफ हो सकती है दिल्ली की हवा, समझिए कैसे
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• NEW DELHI 02 Apr 2025, (अपडेटेड 02 Apr 2025, 10:28 AM IST)
अक्टूबर-नवंबर से फरवरी तक, दिल्ली में प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या बन जाता है। क्या इसका कनेक्शन पराली से ही है, आइए समझते हैं।

धान किसान। (File Photo Credit: PTI)
कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमें (CAQM) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार ने पराली से होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए धान की बुवाई कम करने का प्रस्ताव दिया है। दिल्ली-NCR में शामिल यूपी के जिलों में धान की खेती से करीब 0.74 टन पराली निकलती है, पंजाब के 3.15 मिलियन हेक्टेयर से ज्यादा खेतों से 19.52 मिलियन टन पराली निकलती है और हरियाणा के 1.57 हेक्टेयर खेतों में धान की खेती से 8.10 मिलियन टन पराली पैदा होती है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण के लिए इन राज्यों की सरकारों ने दिल्ली एनसीआर से समीपवर्ती इलाकों में धान की खेती की वजह वैकल्पिक फसलों को लगाने का प्रस्ताव दिया है। सर्दी के दिनों में पंजाब, हरियाणा और NCR में शामिल यूपी के जिलों में पराली जलाने से दिल्ली में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से 500 पार हो जाता है, जिसे गंभीर से अति गंभीर श्रेणी में रखा जाता है।
पंजाब सरकार राज्य में वैकल्पिक फसलों के लिए 17500 की छूट देने का ऐलान किया है। पंजाब सरकार ने 2025-26 के बजट में 2100 हेक्टेयर धान की खेती की जगह मक्का जैसे फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रति हेक्टेयर किसानों को 17500 रुपये देने की योजना का ऐलान किया है। पंजाब में पराली से निपटने के लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने का ऐलान किया है।
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अब सवाल यह उठता है कि क्या पराली ही इकलौती वजह है, जिसकी वजह से दिल्ली में ऐसे हालात पैदा होते हैं? क्या सिर्फ धान की खेती का दायरा घटाने से प्रदूषण कम हो जाएगा? पराली और प्रदूषण के संबंध में जिम्मेदार एजेंसियों की अलग-अलग रिपोर्ट हमने खंगाली। पढ़ें उन एजेंसियों ने इस पर अब क्या-क्या कहा है?

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट का क्या कहना है?
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) (CSE) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली-NCR में पराली जलाने से वायु प्रदूषण अक्टूबर-नवंबर के दौरान चरम पर होता है। प्रदूषण की वजह से PM2.5 की मौजूदगी बढ़ जाती है। इसमें 10 से 30 फीसदी तक प्रदूषण सिर्फ पराली की वजह से होता है। एक वजह यह भी है कि हवा उत्तर से पश्चिम की ओर बहती है, धीमी गति होती है, जिसकी वजह से कण स्थिर ही रह जाते हैं। नवंबर 2022 में एक बार 20 से 30 फीसदी प्रदूषण सिर्फ पराली की वजह से बढ़ गया था। CSE की रिपोर्ट यह बताती है कि सालभर में फसलों के जलाने से प्रदूषण का औसत योगदान 4 से 8 फीसदी तक ही सीमित होता है। दिल्ली-NCR में प्रदूषण के सबसे बड़े कारणों में गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन और औद्योगिक गतिविधियां हैं। इनकी वजह से 40-50% तक प्रदूषण और बढ़ जाता है। यह पराली से ज्यादा नुकसानदेह है।
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SAFAR का क्या कहना है?
पर्यावरण मंत्रालय के सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) की ओर से कराए गए विश्लेषण में दावा किया गया है कि दिल्ली-NCR में पराली जलाने का प्रभाव अस्थाई होता है लेकिन इसका असर गंभीर होता है। SAFAR के आंकड़े बताते हैं 5 नवंबर 2021 को पराली की वजह से PM2.5 का स्तर 36% तक बढ़ गया था। 2024 के शुरुआती दिनों में पराली की वजह से बढ़े प्रदूषण का स्तर 15-35% तक पहुंच गया था।
हवा तेज चले तो न हो दमघोंटू हवा
SAFAR, CSE और CAQM का कहना है कि पराली का असर तभी बढ़ता है, जब हवा की गति धीमी हो जाती है और तापमान में गिरावट आती है। प्रदूषक निचले वायुमंडल में फंस जाते हैं। सालभर के औसत योगदान पर नजर डालें तो यह आंकड़ा 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है।

IITM का क्या कहना है?
दिल्ली में पराली जलाने से कितना प्रदूषण होता है, इसे लेकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटरोलॉजी (IITM),पुणे के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) ने 2024 में दिल्ली और NCR के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। स्टडी में दावा किया गया कि पूरे साल पराली की वजह से प्रदूषण 5 प्रतिशत के आसपास रहा लेकिन नवंबर के पहले सप्ताह में 15-35% तक पहुंच गया। इसे सैटेलाइट डेटा और मॉडलिंग के जरिए तैयार किया गया, जो पंजाब और हरियाणा के धुएं के मूवमेंट पर नजर रखता है। पराली का असर दिल्ली-NCR के ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी केंद्रों की तुलना ज्यादा होता है। वजह यह है कि ये इलाके खेतों के ज्यादा करीब हैं।
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TERI का क्या कहना है?
साल 2022 में आई द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) की एक स्टडी में दावा किया गया कि पराली जलाने से PM2.5 प्रभावित इलाकों में 20 से 25 फीसदी तक बढ़ सकता है। TERI की एक स्टडी (2022) में अनुमान लगाया गया कि दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने से उत्पन्न PM2.5 का योगदान सर्दियों में 20-25% तक हो सकता है। पराली से निकलने वाले धुएं की वजह से न केवल PM2.5 बल्कि कार्बन मोनोऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक भी बढ़ते हैं।

नासा का क्या कहना है?
नासा के फायर इन्फॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (FIRMS) डेटा के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की वजह से दिल्ली-NCR में स्मॉग की परत और मोटी होती है। साल 2023 में, नासा ने अनुमान जताया था कि पराली की वजह पैदा होने वाले धुएं का असर, दिल्ली के AQI के 400 पार जाने के लिए जिम्मेदार था। पराली की वजह से कम से कम 20 से 30 फीसदी ज्यादा प्रदूषित दिल्ली की हवा हो गई थी।
पराली जिम्मेदार लेकिन प्रदूषण की इकलौती वजह नहीं
अक्तूबर से नवंबर तक दिल्ली में PM2.5 तक प्रदूषण बढ़ने की वजह 10 से 35 फीसदी तक पराली है। पूरे साल का औसत 5 से 10 प्रतिशत के बीच में रहता है। जैसे ही खरीफ की फसलों की कटाई होती है, उसके बाद किसान आग लगाना शुरू करते हैं। दिल्ली में औद्योगिक उत्सर्जन, गाड़ियों का प्रदूषण, निर्माण गतिविधियां, इसकी तुलना में ज्यादा खराब स्थितियां पैदा करती हैं। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए वाहन, उद्योग और निर्माण गतिविधियां पराली से कहीं अधिक जिम्मेदार हैं।

अगर पराली न जलाएं तो क्या करें किसान?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) का सुझाव है कि पराली जलाए बिना किसान हैप्पी सीडर से बुवाई कर सकते हैं। इससे खेतों की उर्वरता बनी रहेगी। पराली को बायो-डीकंपोजर से खाद में बदला जा सकता है। पूसा डीकंपोजर भी पराली को खाद में बदलता है। नीति आयोग ने पराली खरीदने का सुझाव भी केंद्र को दिया है। पराली अगर खेत में गल जाए तो मिट्टी की भी आयु बढ़ेगी।
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दिल्ली के प्रदूषण का आपकी सेहत पर असर क्या पड़ता है?
ओपोलो हॉस्पिटल के सीनियर पॉल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. निखिल मोदी ने खबरगांव के साथ बातचीत में कहा कि पीएम2.5 दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर से जनवरी तक इस हद तक बढ़ जाते हैं जिनका स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। इसी दौरान अस्पतालों में एलर्जी, त्वचा में परेशानी, सांस के मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा होता है।
अगर धान की खेती छोड़े पंजाब-हरियाणा तो घाटा कितना होगा?
उपभोक्ता, खाद्य और वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2024-25 में धान की खरीद से अब तक पंजाब में 27995 करोड़ रुपये के एमएसपी मूल्य से 6.58 लाख किसानों को लाभ हुआ है। यह आंकड़े 8 नवंबर तक के हैं। हरियाणा सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने अक्तूबर 2024 तक जारी रिपोर्ट में कहा था कि प्रदेश की अलग-अलग मंडियों में कुल 37.79 लाख टन धान किसान लाए थे, जिनमें से 33.47 लाख टन धान की खरीद एजेंसियों ने एमएसपी पर की। धान खरीद के लिए 1.93 लाख धान किसानों को 4897 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च, नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन (NFSM) की रिपोर्ट कहती है कि 2022-23 में पंजाब में 31.3 लाख हेक्टेयर और हरियाणा में 15 लाख हेक्टेयर पर धान उगाया गया, जिससे 61,000 करोड़ रुपये का राजस्व और 35,500 करोड़ रुपये की शुद्ध आय हुई। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि वैकल्पिक फसलें जैसे मक्का और दालें धान से कम आय देती हैं। हालांकि ये फसलें धान से कम पानी लेती हैं, अगर किसान धान की खेती कम करते हैं तो भूजल के स्तर में अंतर भी देखने को मिल सकता है
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