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बम, बंदूक और ब्लॉकेड से कितना आगे निकल पाया नॉर्थ ईस्ट? पूरी कहानी

23 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राइजिंग नॉर्थ-ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट में पूर्वोत्तर के संदर्भ में बम, बंदूक और ब्लॉकेड का जिक्र किया था। पूर्वोत्तर के राज्य इससे कितना आगे निकल पाए हैं, आइए समझते हैं।

Manipur Violence

मणिपुर में मैतेई और कुकी विद्रोही संगठनों की वजह से अशांति है। (Photo Credit: PTI)

'एक समय था, जब नॉर्थ-ईस्ट के साथ बम, बंदूक और ब्लॉकेड का नाम जुड़ा हुआ था। इसका बहुत बड़ा नुकसान वहां के युवाओं को उठाना पड़ा। उनके हाथों से अनगिनत मौके निकल गए लेकिन हमारा ध्यान पूर्वोत्तर के युवाओं के भविष्य पर है। इसलिए हमने एक के बाद एक शान्ति समझौते किए। युवाओं को विकास की मुख्यधारा में आने का अवसर दिया। पिछले 10-11 साल में 10 हजार से ज्यादा युवाओं ने हथियार छोड़कर शांति का रास्ता चुना है।'


राइजिंग नॉर्थ-ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मई 2025 को यह बातें कहीं। पूर्वोत्तर के राज्यों में दशकों तक अशांति रही है। मणिपुर में जैसे आज हालात हैं, वैसी ही स्थितियां एक अरसे तक पूर्वोत्तर के राज्यों में रही हैं। वहां अशांति और विद्रोह की स्थिति इस हद तक बढ़ गई थी, जिसके चलते केंद्र सरकार को 'आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट' (AFSPA) तक लाना पड़ा। यह बात, AFSPA के प्रस्तावना तक में लिखी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूं ही नहीं बम, बंदूक और ब्लॉकेड का जिक्र किया है। पूर्वोत्तर का अतीत रक्त रंजित रहा है। विद्रोही गुटों की हिंसा में आम आदमी, सरकारी मुलाजिमों का उत्पीड़न रहा है। अब वहां की स्थिति क्या है, पूर्वोत्तर के राज्य कौन-कौन से हैं, पीएम बम, बंदूक और ब्लॉकेड का इतिहास क्या है, आइए इन्हें समझते हैं-


पूर्वोत्तर के राज्य कौन-कौन से हैं 

  • अरुणाचल प्रदेश
  • असम
  • मणिपुर
  • मेघालय
  • मिजोरम
  • नागालैंड
  • त्रिपुरा
  • सिक्किम

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मणिपुर में विद्रोही गुटों के पास से बरामद हथियार। (Photo Credit: PTI)

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क्या बम, बंदूक और ब्लॉकेड से बाहर निकल आए हैं ये राज्य?

अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश में हिंसा और उग्रवाद की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां बनी हुई हैं। सुरक्षा बलों की सक्रियता, शांति समझौते और विकास कार्यों की वजह से उग्रवाद थोड़ा थमा है। सामुदायिक तनाव और सीमा विवाद जैसे मुद्दे अब भी शांति के लिए खतरा बन सकते हैं। लोंगडिंग और चांगलांग, में अभी भी अपहरण और छोटे-मोटे हमले होते हैं। 2025 में लोंगडिंग में दो मजदूरों का अपहरण हुआ, जिसके बाद सेना ने उग्रवादियों को मार गिराया। म्यांमार प्रायोजित तनाव यहां की समस्या रही है, यहीं से उग्रवाद को बल मिला है। सीएम पेमा खांडू ने केंद्र से फ्री मूवमेंट रिजीम रद्द करने की मांग भी उठाई थी।

          उग्रवादी संगठन कौन से हैं?

  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-KYA)
  • ईस्टर्न नगालैंड नेशनल गवर्नमेंट (ENNG)

    मांग क्या है?
    नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में ये संगठन सक्रिय हैं। यह स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांग करता है और अपहरण, फिरौती, और हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा है।


    मणिपुर में विद्रोही गुटों के पास से बरामद हथियार। (Photo Credit: Manipur Police)

    असम: असम में हिंसा और उग्रवाद की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां बनी हुई हैं। 1980-90 के दशक में ULFA और NDFB जैसे संगठनों के कारण हिंसा चरम पर थी। हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों की सक्रियता, शांति समझौतों और विकास कार्यों से उग्रवाद में कमी आई है। 2023 में AFSPA हटाया गया। बोडोलैंड समझौता (2020) और करबी समझौता (2021) से कई उग्रवादी समूह मुख्यधारा में लौटे। ऑपरेशन सनराइज (2019) ने म्यांमार सीमा पर उग्रवादी ठिकानों को नष्ट किया। 

    कहां तनावपूर्ण स्थिति है?
    तिनसुकिया, डिब्रूगढ़ और करबी आंग्लांग में छिटपुट हिंसा होती है।

    उग्रवादी संगठन कौन से हैं?
  • यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA-Independent)  
  • नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB)
  • करबी लोंगरी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (KLNLF)  
  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-KYA)
  • डिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (DNLA)

    मांग क्या है?
     ULFA-Independent, NDFB, NSCN-KYA, KLNLF, और DNLA जैसे संगठन स्वतंत्रता या स्वायत्तता की मांग करते हैं और अपहरण, फिरौती, बम विस्फोट में शामिल रहे हैं। म्यांमार और चीन से बाहरी समर्थन उग्रवाद को बढ़ावा देता है। 

    मणिपुर साल 2023 से ही अशांति का सामना कर रहा है। (Photo Credit: Manipur Police)

     मणिपुर: मणिपुर में मई 2023 से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा ने स्थिति को अस्थिर किया है। 250 से ज्यादा लोग मारे गए और 60,000 विस्थापित हुए। सुरक्षा बलों की सक्रियता और शांति प्रयासों के बावजूद, हिंसा पूरी तरह नियंत्रित नहीं हुई। 2024 में AFSPA को जिरिबाम, सेखमाई, लमसांग, लमलई, लेइमाखोंग और मोइरांग में फिर से लागू किया गया।  
    कहां तनावपूर्ण स्थिति है?
    बिष्णुपुर-चुराचांदपुर, इम्फाल पूर्व-कांगपोकपी-इम्फाल पश्चिम और जिरिबाम के सीमावर्ती इलाकों में खराब स्थिति है। जिरिबाम में 2024 में 10 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया गया, 6 नागरिकों का अपहरण हुआ।  

    उग्रवादी संगठन कौन से हैं?
  • यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (मैतेई)
  • कुकी लिबरेशन आर्मी (KLA)
  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-KYA)

    मांग क्या है?

    कुकी समर्थक गुटों की मांग है कि उन्हें मैतेई से अलग कुकी राज्य चाहिए। सरकार वार्ता कर रही है। मई 2023 से ही स्थिति तनावपूर्ण है। 

    21 दिसंबर 2024 नॉर्थ-ईस्ट परिषद की बैठक हुई थी। (Photo Credit: PTI)

    मेघालय: मेघालय में उग्रवाद और जातीय हिंसा में कमी आई है, लेकिन गैर-आदिवासी समुदायों के खिलाफ छिटपुट हिंसा बनी हुई है। 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और इनर लाइन परमिट (ILP) की मांग को लेकर हिंसा भड़की थी। कुछ लोग मारे गए थे। 2022 में शिलांग में गैर-आदिवासियों पर हमले हुए। AFSPA 2018 में हटाया गया, शांति समझौतों की वजह से उग्रवाद कम हुआ।

    कहां तनावपूर्ण स्थिति है?

    शिलांग, ईस्ट खासी हिल्स और वेस्ट गारो हिल्स में कभी-कभी हिंसक घटनाएं सामने आती हैं। साल 2020 में इचामती में खासी स्टूडेंट्स यूनियन (KSU) की रैली के बाद हिंसा हुई थी। 2024 में शिलांग-उमियाम रोड पर मजदूरों पर नस्लीय हमले हुए। अभी शांतिपूर्ण स्थिति है।

    उग्रवादी संगठन कौन से हैं?
  • हाइनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल
  • गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी

    मांग क्या है?
    HNLC खासी क्षेत्रों को भारत से अलग करना चाहता है, जबकि दूसरे संगठन गारो हिल्स में स्वायत्तता की मांग करते हैं।

    पुर्वोत्तर के राज्यों में छिटपुट ही हिंसा की खबरें आती हैं। उग्रवादी संगठनों से बातचीत के बाद शांति है। (Photo Credit: PTI)

     
    मिजोरम: मिजोरम में 1980-90 के दशक में मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के नेतृत्व में उग्रवाद चरम पर था, लेकिन 1986 के मिजोरम शांति समझौते के बाद स्थिति में सुधार हुआ। सुरक्षा बलों की सक्रियता और विकास कार्यों के बावजूद, सीमा क्षेत्रों में छिटपुट तनाव बरकरार है। 2018 में AFSPA मिजोरम से पूरी तरह हटाया गया।
    कहां तनावपूर्ण स्थिति है?
    आइजॉल के पास लेंगपुई और वैरेंगटे, लैलापुर में कभी-कभी तनाव देखा जाता है। असम-मिजोरम सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति रही है। साल 2021 में 6 पुलिसकर्मी मारे गए हैं।
    उग्रवादी संगठन कौन से हैं?
  • हमार पीपुल्स कन्वेंशन/डेमोक्रेटिक (HPC/D)
  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-KYA)
    मांग क्या है?
    HPC/D हमार समुदाय के लिए अलग स्वायत्त क्षेत्र चाहता है। NSCN-KYA ग्रेटर नगालिम की मांग करता है। म्यांमार सीमा से हथियार तस्करी और अवैध प्रवास अहम मुद्दा है। अब स्थितियां शांतिपूर्ण हैं।


    हॉर्नबिल फेस्टिवल नागालैंड। (Photo Credit: PTI)

नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम का हाल क्या है?
नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम में उग्रवाद और हिंसा में कमी आई है, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं। 

नगालैंड: नागालैंड में 1990 के दशक में NSCN-IM और NSCN-K जैसे संगठनों के कारण हिंसा चरम पर थी। 2015 के नगा शांति समझौते ने स्थिति सुधारी, लेकिन फ्रंटियर नगा टेरिटरी की मांग से तनाव बरकरार है। 

त्रिपुरा: त्रिपुरा में NLFT और ATTF जैसे संगठनों की गतिविधियां घटी हैं, लेकिन 2019 में CAA विरोध और 2023 में आदिवासी-गैर-आदिवासी तनाव से हिंसा हुई। 

सिक्किम: सिक्किम सबसे शांत राज्य है, जहां उग्रवाद अपना पांव नहीं पसार सका है।


कहां तनावपूर्ण स्थिति है?
पूर्वोत्तर के राज्यों में अब उग्रवाद के पांव सिमट रहे हैं।  AFSPA नागालैंड में आंशिक रूप से लागू है, त्रिपुरा से 2015 और सिक्किम से 2018 में हटाया गया। नागालैंड के पूर्वी जिले मोन, किफिरे, त्रिपुरा के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ छिटपुट तनाव की खबरें सामने आती हैं।
 
उग्रवादी संगठन कौन से हैं?  

  • नागालैंड: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-IM, NSCN-KYA)  
  • त्रिपुरा: नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT), ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF)  
     
    मांग क्या है?
    नागालैंड में NSCN ग्रेटर नगालिम चाहता है। ग्रेटर नागालिम मतलब पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार में नागा आबादी वाले सभी क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर एक संप्रभु राज्य बनाना है। यह नागा समूहों की एक मांग है। त्रिपुरा में NLFT और ATTF आदिवासी स्वायत्तता की मांग करते हैं। 

    मणिपुर में सर्च ऑपरेसन करते सुरक्षाबल। (Photo Credit: Manipur Police)

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पूर्वोत्तर की अशांति की वजह से आया था AFSPA

गृह मंत्रालय ने AFSPA की प्रस्तावना में बताया है, 'उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों में हिंसा आम हो गई थी और राज्य सरकारें आंतरिक अशांति को नियंत्रित करने में असमर्थ हो गई थीं। इसलिए, 22 मई 1958 को राष्ट्रपति ने सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अध्यादेश जारी किया। इस अध्यादेश के तहत असम और मणिपुर के अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए। यह अध्यादेश हिंसा और विद्रोह को रोकने के लिए लाया गया था। बाद में इस अध्यादेश को आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर बिल के तौर पर बदल दिया गया। इसका मकसद अशांत क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा बनाए रखना था।'

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