दिल्ली के हेल्थ मॉडल का सच, CAG रिपोर्ट में उजागर हो गईं खामियां
देश
• NEW DELHI 03 Mar 2025, (अपडेटेड 03 Mar 2025, 11:40 AM IST)
दिल्ली का स्वास्थ्य मॉडल खूब प्रचारित किया गया। AAP लगातार इसी को लेकर अपनी तारीफ भी करती रही। अब CAG रिपोर्ट ने इस मॉडल की कलई खोली है।

दिल्ली के एक अस्पताल के बाहर का दृश्य, Photo Credit: PTI
दिल्ली में 10 साल लगातार सरकार चलाने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार अब सत्ता से बाहर हो चुकी है। AAP सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर अपनी पीठ ठोंकती रही है। हाल ही में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी गई है। साल 2016-17 से 2022-21 के लिए तैयार की गई इस रिपोर्ट ने दिल्ली के हेल्थ मॉडल की खामियों को उजागर किया है। साथ ही, यह भी बताया है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है, कई अस्पताल सालों से अपग्रेड नहीं किए गए हैं, सरकार अपने ही ऐलानों के बावजूद बेडों की संख्या बढ़ाने में उतनी कामयाब नहीं हुई और दवाओं की सप्लाई का मामला भी लचर रहा। साथ ही, इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स (IPHS) में तय मानकों पर भी दिल्ली के अस्पताल और उनकी सुविधाएं फिसड्डी साबित हुई हैं।
रोचक बात यह है कि दिल्ली का स्वास्थ्य विभाग तय बजट को भी पूरी तरह से खर्च नहीं कर पाया। अस्पताल और अन्य निर्माण के लिए जमीनों का आवंटन हुआ लेकिन उनका भी इस्तेमाल नहीं किया जा सका। यह तब हुआ जब दिल्ली सरकार ने हेल्थ बजट में बढ़ोतरी की। आइए इस CAG रिपोर्ट के जरिए यह जानते है कि दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाएं किस हाल में हैं और उनके चलते लोग किस तरह प्रभावित हो रहे हैं।
दिल्ली का हेल्थ नेटवर्क
2021-21 में दिल्ली के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, दिल्ली में 517 मोहल्ला क्लानिक, 253 एलोपैथिक डिस्पेंसरी, 29 आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी, 22 यूनानी डिस्पेंसरी, 108 होम्योपैथिक डिस्पेंसरी, 28 पॉलीक्लीनिक, 9 मोबाइल हेल्थ क्लीनिक, 50 स्कूल हेल्थ क्लीनिक और कुल 39 अस्पताल काम कर रहे थे।
यह भी पढ़ें- मोहल्ला क्लीनिक से कोविड तक, CAG की दूसरी रिपोर्ट में क्या खुलासे हुए?
दिल्ली सरकार के 39 अस्पतालों में कुल 14,244 बेड, एमसीडी के 45 अस्पतालों में 3337 बेड, NDMC के 2 अस्पतालों में 221 बेड, केंद्र सरकार के 19 अस्पतालों में 9544 बेड, अन्य 5 अस्पतालों में 3163 बेड और 1119 प्राइवेट अस्पतालों में 29,348 बेड उपलब्ध थे। यानी दिल्ली के कुल 1229 अस्पतालों/क्लीनिक में 59,957 बेड उपलब्ध थे।
स्टाफ की कमी
मार्च 2022 तक के डेटा के मुताबिक, दिल्ली के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में कुल पदों की संख्या 15508 थी जिसमें से 3268 यानी 21 पर्सेंट पद खाली थे। इसी तरह डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज (DGHS) में कुल स्वीकृत पद 4080 थे जबकि 1532 पद यानी 37.55 पर्सेंट पद खाली थे। स्टेट हेल्थ मिशन में 3222 में से 1036 पद और ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में 145 में से 75 पद खाली थे।
यह भी पढ़ें- AAP की शराब नीति से कैसे हुआ नुकसान? CAG रिपोर्ट में खुलासा
मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में बात करें तो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में 503 (45.27 पर्सेंट), लोक नायक अस्पताल में 13.57 पर्सेंट यानी 581 पद, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 65.64 पर्सेंट यानी 579 पद, जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 298 यानी 65.20 पर्सेंट और चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में 322 यानी 40.91 पर्सेंट पद खाली थे।
इसी तरह नर्सिंग स्टाफ में 21 पर्सेंट की कमी थी। कई बड़े अस्पतालों जैसे कि जीटीबी अस्पताल में 28 पर्सेंट, जीबी पंत अस्पताल में 34 पर्सेंट, लोक नायक अस्पताल में 20 पर्सेंट और भगवान महावीर अस्पताल में 33 पर्सेंट नर्सिंग स्टाफ की कमी थी।
पैरामेडिकल स्टाफ की बात करें तो कुल 79 कैटगरी में पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति की जाती है जिसमें से 23 कैटगरी में तो एक भी स्टाफ ही नहीं था। दिल्ली में पैरामेडिकल स्टाफ 38 पर्सेंट कम थे। इसमें फिजियोथेरेपिस्ट, डाइटीशियन, रेडियोग्राफर जैसे तमाम पदों पर स्टाफ की कमी पाई गई।
खस्ताहाल सुविधाएं
इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स (IPHS) के मुताबिक, हर जिला अस्पताल में जरूरी सेवाएं जैसे कि ENT, जेनरल मेडिसिन, पेडियाट्रिक्स, जनरल सर्जरी, ओप्थैल्मोलॉजी, डेंटल आदि अनिवार्य हैं। दिल्ली में कुल 27 अस्पताल, 7 सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, 4 आयुष अस्पताल और एक सेंट्रल जेल अस्पाल हैं। उपलब्ध डेटा के मुताबिक, दिल्ली के 27 में से सिर्फ 5 में ENT, 4 में जेनेरल मेडिसिन, 2 में पेडियाट्रिक्स, 7 में जनरल सर्जन, 5 में ऑप्थैल्मोलॉजी, 9 में डेंटल और 20 में साइकोलॉजी के विशेषज्ञ मौजूद थे।
यह भी पढ़ें- आखिरी बार 2022 में आई थी दिल्ली की CAG रिपोर्ट, आखिर उसमें था क्या?
14 अस्पताल ऐसे हैं जिनमें ICU नहीं थे, 16 में ब्लड बैंक नहीं ते और 8 अस्पतालों में ऑक्सीजन सपोर्ट उपलब्ध नहीं था। 15 अस्पतालों में शव रखने के लिए मॉर्चरी नहीं थी और 12 में ऐम्बुलेंस सेवाएं नहीं थीं।
IPHS के मुताबिक, 500 बेड से ज्यादा बड़े अस्पतालों में एक्सरे मशीन, सीटी स्कैन, कलर डॉप्लर अल्ट्रासाउंड मशीन और डेंटल एक्स-रे मशीन जैसी सुविधाएं होनी चाहिए। दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में डेंटल एक्स-रे मशीन की सुविधा ही नहीं थी कि जबकि यह 2000 से ज्यादा बेड की क्षमता वाला अस्पताल है। इसी तरह राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में एमआईआई मशीन, मैमोग्राफी और डेंटल एक्सरे की सुविधा नहीं है।
साल 2018 में दिल्ली सरकार ने फर्स्ट रेस्पॉन्स वेहिकल्स (FRV) की शुरुआत की। इसके तहत संकरे इलाकों में लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए बाइक खरीदी गईं। कुल 16 FRV खरीदने के लिए 12.84 लाख रुपये खर्च किए गए और इन्हें पूर्वी दिल्ली, शाहदरा और नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के जिलों में लगाया गया। मार्च 2020 में ही इसे बंद कर दिया गया और ये गाड़ियां पड़ी धूल फांक रही हैं। अस्पताल में एंबुलेंस की बात करें तो बड़े अस्पताल में सिर्फ लोक नायक अस्पताल के पास 2 ऐसी ऐम्बुलेंस हैं जिनमें मरीजों को ले जाया जा सकता है।
दवाओं की कमी
16 अगस्त 2017 को दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में फैसला लिया गया कि सेंट्रल प्रोक्युरमेंट एजेंसी (CPA) यह सुनिश्चित करेगी कि अस्पतालों में 100 प्रसेंट दवाएं उपलब्ध होंगी। यह भी कहा गया कि दवाएं खत्म होने से पहले ही उनका टेंडर जारी किया जाएगा जाएगा। हालांकि, हकीकत इससे काफी अलग दिखी। 2016-17 में इसेंशियल ड्रग लिस्ट (EDL) में 1390 दवाएं थीं जिसमें से 469 दवाएं खुद अस्पतालों को खरीदनी पड़ीं। इसी तरह 2021-22 में EDL में कुल 1180 दवाएं थीं और अस्पतालों को 40 पर्सेंट से ज्यादा यानी कुल 280 दवाएं खुद खरीदनी पड़ीं। ज्यादातर अस्पतालों में 30 से 50 प्रतिशत दवाओं की कमी पाई गई।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap