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'ब्रेस्ट छूना रेप नहीं...', वाले HC के फैसले को SC ने बताया असंवेदनशील

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले की आलोचना देशभर में हुई थी। लोगों ने इस फैसले को शर्मनाक बताया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर नाराजगी जताई है।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया। (Photo Credit: PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले पर कहा है कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि हाई कोर्ट का यह फैसला, असंवेदनशील है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में नाबालिग का ब्रेस्ट छूने और पायजामे का नाड़ा तोड़ने और पुल के नीचे खींचने वाले आरोपियों रेप और रेप की कोशिश का दोषी नहीं माना था, हाई कोर्ट ने इस केस में छेड़छाड़ और पॉक्सो एक्ट से जोड़कर ट्रायल चलाने का निर्देश निचलती अदालत को दिया था। 

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पहली नजर में यह मामला, गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध है, इसे पॉक्सो एक्ट के तहत डील किया जाना चाहिए। जिस धारा के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश हाई कोर्ट ने दिया था, उसमें अपेक्षाकृत कम सजा का प्रावधान है। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया है। इस केस पर देशभर में हंगामा बरपा था।  हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर में आक्रोश देखने को मिला था। लोगों ने हाई कोर्ट के इस फैसले को हैरान कर देने वाला बताया था। 

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'असंवेदनशीलता के साथ लिखा गया फैसला'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि इस केस में पैरा 21, 24 और 26 में जो बातें लिखी गई हैं, वह जजमेंट लिखने वाले की असंवेदनशीलता को दिखाती हैं।' 

जजमेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला तत्काल नहीं सुनाया गया था, बल्कि 4 महीने के बाद सुनाया गया था। इसका मतलब है कि फैसला जज ने सोच-समझ के इसे लिखा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'बेंच ने यह तय किया है कि केस पर ऑब्जर्वेशन कानून की अज्ञानता, असंवेदनशीलता की वजह से दिए गए हैं, इसलिए हम इस पर रोक लगाने के लिए बाध्य हैं।'

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बेंच ने केंद्र सरकार, यूपी सरकार और हाई कोर्ट के पक्षकारों को नोटिस दिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सरकार की ओर से पेश हुए और उन्होंने भी इस फैसले को हैरान करने वाला बताया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला क्या था?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, 'आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और आकाश ने पीड़िता की पायजामे को खींचने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। गवाहों के आने की वजह से वे पीड़िता को छोड़कर भाग गए। मौजूदा तथ्य यह अनुमान लगाने के लिए काफी नहीं हैं कि आरोपी पीड़िता के साथ बलात्कार करने का फैसला कर चुके थे। इन तथ्यों के अलावा उनकी इच्छा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कोई और काम नहीं किया है।'

हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि आरोपियों के खिलाफ सुनवाई धारा 354-बी के तहत होनी चाहिए। यह महिला की शील भंग की कोशिश से जुड़ी धारा है, वहीं पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 यौन हमले से जुड़ी है। आईपीसी की धारा 354 बी के तहत, किसी महिला को बलपूर्वक निर्वस्त्र करने के लिए उकसाने या मजबूर करने के मामले में मुकदमा दर्ज किया जाता है। यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है। इस अपराध में तीन से सात साल की जेल हो सकती है। पॉक्सो एक्ट की धारा 10 में भी 7 साल की सजा का प्रावधान है।

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