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जज ने सुनाया गलत फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इन्हें सीनियर संग बिठाओ

इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश पारित करने वाले जज को एक सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट। Photo Credit- Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज को फटकार लगाते हुए सख्त टिप्पणी की। साथ ही जज के द्वारा पारित एक आदेश को लेकर गंभीर आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के जज को गलत आदेश पारित करने पर कहा कि उन्हें कोर्ट में किसी अनुभवी सीनीयर जज के साथ बैठाया जाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने साथ ही आगे निर्देश दिया कि हाई कोर्ट के जज को उनके रिटायरमेंट तक क्रिमिनल केस नहीं दिया जाना चाहिए।

 

यह कहता हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई। इस आदेश में हाई कोर्ट के जज ने आपराधिक शिकायत यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया था कि पैसे की वसूली के लिए दीवानी मुकदमे का उपाय प्रभावी नहीं था।

आदेश को चौंकाने वाला

हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश पारित करने वाले जज को एक सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को चौंकाने वाला करार दिया और मामले को किसी दूसरे जज को नए सिरे से विचार करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट को वापस भेज दिया।

 

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 के तहत जारी समन को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में क्या कहा?

'हम इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे संबंधित जज के वर्तमान फैसले को तत्काल वापस लें। संबंधित जज को हाई कोर्ट के किसी अनुभवी सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए। इस मामले में संबंधित जज को उनके पद छोड़ने तक कोई भी आपराधिक फैसला नहीं दिया जाना चाहिए। अगर उन्हें सिंगल जज के रूप में बैठना ही है तो उन्हें कोई भी आपराधिक फैसला नहीं दिया जाना चाहिए। रजिस्ट्री आदेश की कॉपी इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजें।'

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, ललिता टेक्सटाइल्स ने हाई कोर्ट में अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपीलकर्ता को विनिर्माण में इस्तेमाल होने वाले धागे की आपूर्ति की थी और 7.23 लाख रुपये की बकाया राशि बकाया थी। इसके बाद ललिता टेक्सटाइल्स और शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया और अपीलकर्ता के खिलाफ समन जारी किया गया। जब अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जस्टिस प्रशांत कुमार ने सुझाव दिया कि चूंकि शिकायतकर्ता छोटी व्यावसायिक फर्म है। इसमें शामिल राशि बहुत बड़ी है, इसलिए इस मामले को पक्षकारों के बीच दीवानी विवाद के रूप में संदर्भित करना न्याय का उपहास होगा।

 

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