कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज पर तीखी टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जज प्रशांत किशोर को सीनियर जज के साथ बिठाया जाए और उन्हें अब से आपराधिक मामले न दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि जज प्रशांत कुमार ने गलत फैसला सुना दिया है। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जजों ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली से अपील की है कि वह फुल कोर्ट मीटिंग बुलाएं। इन जजों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खेद व्यक्त किया है। साथ ही, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से अपील की है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करने से इनकार कर दें। इस फैसले की आलोचना के बाद चीफ जस्टिस बी आर गवई ने जस्टिस पारदीवाला की बेंच से अपील की है कि वे अपने फैसले पर फिर से विचार करें। अब इस पर फिर से सुनवाई करते हुए जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने अपना फैसला वापस ले लिया है।
अपने नए फैसले में इस बेंच ने कहा है, 'हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारा मकसद किसी को अपमानित करने का नहीं था। हम कभी ऐसा सोच भी नहीं सकते लेकिन जब हमारी संस्था के सम्मान की बात आती है तो यह हमारा संवैधानिक दायित्व है कि हम हस्तक्षेप करें। अब माननीय चीफ जस्टिस के अनुरोध को देखते हुए हम अपने फैसले के पैरा 25 और 26 को डिलीट कर रहे हैं। हालांकि, हम यह इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ते हैं कि वह अपने हिसाब से रोस्टर तय करें। हमारे निर्देश हाई कोर्ट के प्रशासन में हस्तक्षेप के लिए नहीं हैं।'
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हाई कोर्ट के जजों ने लिखी थी चिट्ठी
इस मामले पर हाई कोर्ट के जजों ने 7 अगस्त को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखी है। इन जजों का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट के पास इस तरह के प्रशासनिक अधिकार नहीं हैं कि वह हाई कोर्ट को ऐसा आदेश दे सके। ऐसे में जस्टिस प्रशांत कुमार के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 24 से 26 का पालन नहीं किया जाना चाहिए। इन जजों की मांग है कि फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई जाए ताकि सभी जज एकसुर में इस फैसले के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा सकें। यह चिट्ठी जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने व्यक्तिगत तौर पर लिखी है लेकिन इस पर 12 और जजों के हस्ताक्षर हैं।
इस चिट्ठी में लिखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी अमर पाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2012) के फैसले में तय किए गए सिद्धातों का उल्लंघन करती है। इस चिट्ठी में जस्टिस प्रशांत कुमार के फैसले का बचाव किया गया है। यह चिट्ठी इलाहाबाद हाई कोर्ट रूल्स, 1952 के नियम 9 के तहत जारी की गई है।
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कहां से शुरू हुआ विवाद?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को दिए अपने फैसले में जस्टिस प्रशांत कुमार के न्यायिक तर्क को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी और कहा था कि हाई कोर्ट प्रशासन उन्हें आपराधिक रोस्टर से हटा दे। यानी जस्टिस कुमार को ऐसे मामलों की सुनवाई न करने दी जाए, जो अपराध से जुड़े हों। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कह दिया था कि जस्टिस प्रशांत कुमार को उनके रिटायरमेंट तक एक सीनियर जज के साथ एक बेंच में रखा जाए। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने ‘मेसर्स शिखर केमिकल्स’ की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था।
क्या है फुल कोर्ट मीटिंग?
फुल कोर्ट मीटिंग आमतौर पर तभी बुलाई जाती है जब मामला बेहद संवेदनशील हो या फिर संवैधानिक तौर पर बेहद हो। साथ ही, इसमें किसी अदालत के ज्यादा से ज्यादा जजों को शामिल किया जाना हो। आमतौर पर इसे ऐसे माना जाता है कि एक ऐसी मीटिंग जिसमें किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सभी जज एकसाथ बैठते हैं। इसमें कोर्ट को चलाने के तौर-तरीकों और अन्य चीजों पर चर्चा की जाती है।
इस तरह सभी जज मिलकर आम सहमति से फैसला ले सकते हैं, नए नियम तय कर सकते हैं या प्रक्रियाओं में बदलाव भी कर सकते हैं। इसके बारे में लिखित नियम तो नहीं हैं लेकिन इतना तय है कि इसे बुलाने का अधिकार हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को ही है।