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5 साल में 19.43% से 9.35% खिसका BSP का वोट, कांग्रेस उम्मीद में क्यों?

साल 2012 में मायावती की सियासी जमीन को खिसकाने वाले अखिलेश यादव सक्रिय राजनीति में उतरे। साल दर साल चुनाव हुए और मायावती का वोट शेयर घटता चला गया। कैसे, समझिए पूरा विश्लेषण।

Mayawati, Sonia Gandhi and Rahul Gandhi

मयावती, सोनिया गांधी और राहुल गांधी। (File Photo Credit: PTI)

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मायावती की सियासत पर कुछ ऐसा कहा है, जिससे वह नाराज हो गई हैं। राहुल गांधी ने कहा था कि अगर मायावती भी साल 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक के साथ आ जातीं तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) चुनाव हार जाती। 

राहुल गांधी ने कहा था, 'मैं चाहता था कि बहनजी लोकसभा चुनाव हमारे साथ मिलकर लड़ें, लेकिन वह हमारे साथ नहीं आईं। हमें काफी दुख हुआ। अगर तीनों पार्टियां एक साथ हो जातीं तो रिजल्ट कुछ और ही होता।' 

कैसे 19.26 से गिरा बसपा का वोट शेयर?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन था। यूपी में बसपा को 19.26 प्रतिशत वोट हासिल हुए।  सपा का वोट प्रतिशत 16.96 प्रतिशत और कांग्रेस 6.31 प्रतिशत पर आ गिरी। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। सपा का वोट प्रतिशत 33.59 रहा, कांग्रेस का 9.46 और बसपा का 9.39। अगर सपा, कांग्रेस और बसपा का गठबंधन होता तो यह आंकड़ा बढ़कर 55 प्रतिशत तक जा सकता था। इस चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 41.37 रहा। अगर 9 प्रतिशत वोट के साथ कांग्रेस ने 7 सीटें हासिल कीं तो बसपा का प्रदर्शन शून्य से तो बेहतर ही हो सकता था।

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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा था लेकिन अब 'हाशिए' पर राजनीति

सामाजिक न्याय और दलित सशक्तीकरण के पुरोधा कहे जाने वाले कांशीराम ने जब साल 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी तो उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि यह पार्टी, राष्ट्रीय पार्टी की दर्जा हासिल करेगी। उनकी राह पर चलने वाली उनकी शिष्या मायावती पार्टी का इतना विस्तार करेंगी कि यूपी की राजनीति की चर्चा बिना कांशीराम के नहीं होगी।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार और देश के कई राज्यों में मायावती ने बसपा का विस्तार किया। सियासी पंडित यह कहने लगे थे कि मायावती का वोट बैंक फिक्स है, उनके वोटर वफादार हैं। दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों को साधने वाली बसपा ने साल 2007 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाया था। मायावती के लिए सियासत के 'अच्छे दिन' 2007 तक ही रहे। 

बसपा प्रमुख मायावती। (Photo Credit: BSP)

यूपी में 2012 के बाद से ही बसपा की सियासी जमीन लड़खड़ाने लगे। समाजवादी पार्टी और उसके बाद के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति में पहुंचती चली गई। स्थापना के बाद के 2 दशक ठीक रहे लेकिन फिर पार्टी की जमीन दरकने लगे।

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'अच्छी शुरुआत लेकिन खोता गया जनाधार'

बसपा ने स्थापना के महज 13 साल बाद ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया। केंद्रीय चुनाव आयोग के नियम 1968 के मुताबिक किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए कम से कम 4 राज्यों में 6 प्रतिशत वोट हासिल हों। उस पार्टी के कम से कम 4 उम्मीदवार किसी राज्य से सांसद चुने जाएं। वह पार्टी 4 राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा हासिल करे। कोई पार्टी लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम दो प्रतिशत सीटें हासिल कर ले। बसपा इन सारे तथ्यों पर खरा उतरी। 

कांशीराम ही अध्यक्ष रहे लेकिन पार्टी का विस्तार होता गया। साल 1997 में बसपा ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया। साल 1996 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने यूपी, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पंजाब में मजबूत प्रदर्शन किया था। साल 2019 और 2024 के चुनावों में बसपा का प्रदर्शन खराब रहा। 2023 में चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया। बीजेपी का वोट बैंक खिसक गया था। कई राज्यों में फैली बसपा सिर्फ यूपी तक सिमट गई है।  

एक नजर बसपा के सियासी सफर पर
साल 1989 में बसपा ने यूपी विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया। बसपा को 13 सीटें हासिल हुईं। साल 1993 में यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से बसपा ने 67 सीटें हासिल कीं। बसपा ने कुल 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बसपा ने सपा से गठबंधन किया और सत्तारूढ़ दल का हिस्सा बनी। तब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। साल 1995 में गठबंधन में टूट पड़ा। बसपा ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली। मायवती मुख्यमंत्री बन गईं।

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साल 1997 में बसपा ने बीजेपी के साथ मिलकर दूसरी बार सरकार बनाई। तब बीजेपी को 67 सीटें हासिल हुई थीं। वोट प्रतिशत 11.12 से बढ़कर 19.64 प्रतिशत हो गया था। 2002 में बसपा का वोट शेयर बढ़ा। 23.06 प्रतिशत के साथ बसपा ने 98 सीटें हासिल की। बीजेपी की मदद से मायावती तीसरी बार सीएम बनीं। साल 2007 में बसपा ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल किया। 403 में 206 सीटें हासिल कर ली। मायावती चौथी बार सीएम बन गईं।

अखिलेश का उदय और बसपा पर संकट
यूपी की सियासत में मुलायम सिंह यादव नेपथ्य में जाने लगे थे। उन्होंने तय किया कि चुनाव अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अखिलेश यादव साइकिल से रैलियां करने लगे। जनसभाएं करने लगे। तब यादव कुनबा एकजुट था। चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव के बन रही थी। अखिलेश यादव की ग्रासरूट कैंपेनिंग ने जनता को लुभाया। उन्होंने वादा किया कि अगर सत्ता में आए तो युवाओं को लैपटॉप देंगे, किसानों के लिए योजनाएं शुरू करेंगे, बेरोजगारी भत्ता देंगे। ग्रामीण मतदाताओं ने उन पर भरोसा जताया।

सियासी जानकार मानते हैं कि बसपा से लोगों का मोहभंग होना शुरू हो गया था। साल 2007 से 2012 के बीच उन पर केवल 'बहुजन राजनीति' करने के आरोप लगे। लोगों ने कहा कि मायावती के प्रशासन में शेड्यूल्ड कास्ट एंड द शेड्यूल्ड ट्राइब्स एक्ट (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट 1989 के प्रावधान इतने सख्त हुए कि मामूली बातों पर लोगों पर 3 (1) (X) लगने लगा। नतीजा यह हुआ कि अन्य पिछड़े वर्ग और सवर्ण तबके का मायावती से मोहभंग हुआ और सपा में नई उम्मीद दिखी।

मयावती और अखिलेश यादव। (Photo Credit: PTI)

मायवती का कथित वोट बैंक भी खिसका और सपा की ओर आगे बढ़ा। सपा ने मुस्लिम-यादव समीकरण पर भी जोर दिया तो नतीजे अप्रत्याशित रहे। जिस पार्टी के पास साल 2007 में 206 सीटें थीं, 30.43 प्रतिशत वोट बैंक था, वही पार्टी 2012 में महज 80 सीटों पर सिमट गई। वोट प्रतिशत 25 प्रतिशत पर आ गया। 

साल 2017 से यूपी में बीजेपी शासन का उदय हुआ। बसपा ने 403 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा लड़ा लेकिन महज 19 सीटें हासिल हुईं। सपा-बसपा सबका तिलिस्म टूटा और बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। बसपा का वोट शेयर 19 प्रतिशत पर खिसक गया। साल 2022 में तो बसपा साफ हो गई। बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा, 1 सीट जीत पाई और वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत पर पहुंच गया। 

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बसपा के लिए साल 2004 का लोकसभा चुनाव बेहतरीन रहा। बसपा के खाते में 19 सीटें आईं। 2009 में 20 सीटें बसपा को हासिल हुईं। 2014 में बसपा शून्य पर सिमट गई। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन हुआ। बसपा ने 10 सीटें हासिल कर लीं। 5 साल बाद चुनाव हुए। बसपा ने सपा के साथ गठबंधन तोड़ा और फिर से एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई। 

साल 2009 से 2024 तक ऐसे गिरता-बढ़ता रहा BSP का वोट शेयर
-2009 लोकसभा चुनाव: बसपा ने 6.17% वोट शेयर के साथ 21 सीटें जीतीं।
-2014 लोकसभा चुनाव: पार्टी को 4.19% वोट मिले, लेकिन कोई सीट नहीं मिली।
-2019 लोकसभा चुनाव: बसपा ने 3.66% वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीतीं।
-2024 लोकसभा चुनाव: बसपा को देशभर में कुल 2.04% वोट मिले, लेकिन पार्टी एक भी सीट जीतने में असफल रही। 

यूपी में कितनी दमदार है बसपा?
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा था। पार्टी ने यूपी में कुल 9.39 प्रतिशत वोट हासिल किया लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में बसपा दलित समुदाय से जुड़े हितों की राजनीति करती है। यूपी में अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या करीब 21 प्रतिशत है। हालांकि यह एकदम सटीक आंकड़े नहीं हैं, अनुमान हैं।


कांग्रेस को इतनी उम्मीद क्यों?
साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा दोनों को झटका लगा। साल 2024 में कांग्रेस ने 7 सीटों पर जीत हासिल की, वहीं सपा ने 37 सीटें हासिल की। कांग्रेस का वोट शेयर राष्ट्रीय स्तर पर 25.76 प्रतिशत तक पहुंचा। सपा का राष्ट्रीय शेयर 3.80 प्रतिशत तक रहा। यूपी में सपा का वोट शेयर 18 प्रतिशत से बढ़कर 33.5 फीसदी तक पहुंचा। कांग्रेस को उम्मीद थी कि अगर इसमें मायावती भी गठबंधन का हिस्सा होतीं तो वोट प्रतिशत और बढ़ता और बीजेपी की सीटें कम हो सकती थीं। 

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लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को BSP से क्या उम्मीद थी?

राहुल गांधी ने कहा था कि अगर मायावती कांग्रेस और सपा गठबंधन का हिस्सा होतीं तो बीजेपी सत्ता से बाहर होती। राहुल गांधी ने रायबरेली में कहा था, 'मायावती आजकल क्यों ठीक से चुनाव नहीं लड़ रहीं, यह बड़ा सवाल है। हम चाहते थे कि बहन जी बीजेपी के विरोध में मेरे साथ चुनाव लड़ें। अगर तीनों पार्टियां एक साथ हो जातीं तो बीजेपी कभी चुनाव न जीतती।'

अगर बसपा कांग्रेस के साथ इस चुनाव में चली भी जाती तो क्या नतीजे अलग होते? बसपा को मिल रहे वोट प्रतिशत के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो यह बात गलत लगती है।

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