निगेटिव कैंपेनिंग: बिहार से दिल्ली तक, हिट या फ्लॉप है यह फॉर्मूला?
राजनीति
• PATNA 19 Jul 2025, (अपडेटेड 19 Jul 2025, 6:41 AM IST)
चुनावों में निगेटिव कैंपेनिंग, राजनीतिक पार्टियों पर कभी-कभी भारी पड़ती है। दिल्ली के चुनावों के नतीजे कुछ ऐसे ही रहे थे। बिहार की राजनीतिक पार्टियों ने इस पर क्या सबक लिया है, समझते हैं।

अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, पीएम नरेंद्र मोदी। (AI Generated Image। Photo Credit: Sora)
बिहार में राजनीतिक पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी कैंपनिंग की शुरुआत कर दी है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टियों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को 'गुंडाराज' बताया है। विपक्ष के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर 'गुंडNDA राज'लिखे हुए पोस्टर वायरल हो रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी का दावा है कि राज्य में कानून व्यवस्था ताक पर है, बिहार में 2 दशक के शासन में नीतीश कुमार थक गए हैं। विपक्ष के चुनाव प्रचार का तरीका कुछ-कुछ वैसा ही ही है।
राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के सोशल मीडिया हैंडल पर अपने कामों का प्रचार कम, बीजेपी और नीतीश कुमार सरकार की आलोचना ज्यादा नजर आ रही है। दिल्ली में आम आदमी ने भी कुछ इसी अंदाज में कैंपेनिंग की थी, सत्तारूढ़ बीजेपी की खामियां ज्यादा गिना गई थी, अपनी पार्टी की खूबियां कम। अंतिम दौर के चुनाव तक लोगों को लगा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक बार फिर चुनाव जीत रही है लेकिन समीकरण बदल गए थे। इंडिया ब्लॉक गठबंधन का हिस्सा पार्टियां, अपनी योजना पर काम बात कर रही हैं, बीजेपी की कमियां ज्यादा गिना रही हैं।
यह भी पढ़ें: न बड़े उद्योग, न तगड़ा रेवेन्यू, कैसे चलती है बिहार की अर्थव्यवस्था?
RJD कैसे कर रही है चुनाव प्रचार?
RJD ने बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठाए हैं। 4 जुलाई को राजधानी पटना के गांधी मैदान इलाके में गोपाल खेमका की हत्या हुई थी। हत्या के महज 2 सप्ताह के भीतर पटना के पारस अस्पताल में फिल्मी अंदाज में चंदन मिश्रा की हत्या हुई है। अपराधी बेखौफ आ रहे हैं, गोली मारकर चले जा रहे हैं। आरजेडी का जोर नीतीश कुमार सरकार में बेरोजगारी और बढ़ते अपराध पर है। आरजेडी ने इन अपराधों को गुंडाराज का नाम दिया है। भारतीय जनता पार्टी, आरजेडी के जंगलराज का जिक्र कर अपना चुनाव प्रचार करती रही है। आरजेडी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर भी सवाल खड़े कर रही है।
कौआ उड़, मैना उड़
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) July 18, 2025
जुमलेबाज उड़, विकास फुर्रर…..#Bihar #RJD pic.twitter.com/jhjLl9hDsI
कांग्रेस कैसे चुनाव प्रचार कर रही है?
कांग्रेस का जोर भी अभी निगेटिव कैंपेनिंग पर ही है। कांग्रेस पार्टी बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस के ज्यादातर पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार हैं। कांग्रेस, पीएम मोदी के लिए 'जुमलाधीश' जैसे पोस्टर ला रही है। कांग्रेस का भी कहना है कि जो वादे एनडीए की डबल इंजन सरकार ने किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया। कांग्रेस ने SIR पर बिहार के लोगों की परेशानियों का जिक्र भी किया है। कांग्रेस का कहना है कि 2 दशक के शासन में एनडीए की सरकार ने राज्य को गर्त में पहुंचा दिया है। पूल टूट जाते हैं, बाढ़-बारिश से लोग बेहाल हैं, उद्योग धंधे बंद हैं लेकिन नया 'शूटर उद्योग' चल पड़ा है। कांग्रेस का इशारा चंदन हत्याकांड की तरफ है।
मोदी जी एक बार देख लीजिए… 👀#फीकी_चाय pic.twitter.com/RvJaD9BWFu
— Bihar Congress (@INCBihar) July 18, 2025
VIP के प्रचार का तरीका क्या है?
VIP की भी कैंपेनिंग इंडिया ब्लॉक की दो प्रमुख पार्टियों की तरह ही है। VIP के सर्वे-सर्वा मुकेश सहनी हैं। वह भी एनडीए सरकार को कानून व्यवस्था पर घेर रहे हैं। विकास शील इंसान पार्टी के पोस्टरों में गुंडाराज, बढ़ते अपराध, लचर कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, अस्पतालों की बदहाली जैसे मुद्दे छाए हैं। अगर सरकार बनी तो एजेंडा क्या होगा, इस पर हर तरफ से कम बात हो रही है।
नीतीश-भाजपा की सरकार ने बिहार को अपराधियों के हवाले कर दिया है!#BiharPolice #Crime #Bihar pic.twitter.com/ChcIyjm6wq
— Mukesh Sahani (@sonofmallah) July 18, 2025
क्या दिल्ली वाला चूक कर रहा है इंडिया ब्लॉक?
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद से ही आक्रामक कैंपेनिंग शुरू कर दी थी। बीजेपी को कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार तक पर घेरने की कोशिश की। शहर के प्रमुख सड़कों पर पोस्टर लगाए गए कि दिल्ली में भ्रष्टाचार चरम पर है, उपराज्यपाल काम नहीं करने देते हैं। आम आदमी पार्टी की कैंपेनिंग का बड़ा हिस्सा 'गाली गलौच पार्टी', 'दूल्हा कौन' के आसपास घूमता रहा।
जनता को यह निगेटिव कैंपेनिंग रास नहीं आई बीजेपी ने शुरुआत में आम आदमी पार्टी की तत्कालीन सरकार की कमियां गिनाईं। बीजेपी ने आयुष्मान भारत से लेकर यमुना की गंदगी तक का मुद्दा उठाया। खूब निगेटिव कैंपेनिंग की लेकिन चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार की उपलब्धियों गिनाने लगी। सोशल मीडिया पर ऐसे कैंपेन छा गए। राजनीतिक विश्लेषकों का एक धड़ा मानता है कि आखिरी दौर में बदली गई रणनीति ही काम आई, AAP जनता को नहीं लुभा पाई। राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 22 सीटों पर पार्टी को जीत मिली, बीजेपी ने 48 सीटें हासिल कर लीं।
यह भी पढ़ें: बिहार के लिए 'जमाई आयोग' क्यों मांग रही RJD? परिवारवाद पर नया बवाल
कब-कब पार्टियों पर निगेटिव कैंपेनिंग भारी पड़ी?
साल 2024 में ही झारखंड में भी विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी की पूरी कैंपेनिंग 'बांग्लदेशी घुसपैठिए, मुस्लिम आदिवासी विवाह, कोयला और जमीन घोटाले के इर्द-गिर्द घूमती रही। झारखंड के लोग इसे मुद्दा ही नहीं मान पाए। बीजेपी ने अपनी पूरी कैबिनेट, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उतार दिया था। असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा झारखंड के प्रभारी थे। एक के बाद एक कई युद्ध स्तर पर रैलियां कीं।
चुनावी नतीजे आए तो जनभावनाएं वोट में नहीं बदलीं। राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 34 सीटें जीत लीं, कांग्रेस ने 16, आरजेडी ने 4, और सीपीआई (माले) ने 2 सीटें हासिल कीं। एनडीए गठबंधन में बीजेपी ने 21, जेडीयू ने 1, लोक जन शक्ति पार्टी (राम विलास) 1 सीटें हासिल कीं। बीजेपी को निगेटिव कैंपेनिंग भारी पड़ी था। महाराष्ट्र में कांग्रेस की रणनीति भी निगेटिव कैंपेनिंग के आसपास रही, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) की भी। इन पार्टियों ने अपने विजन पर कम फोकस किया, बीजेपी की महायुति सरकार ने क्या नहीं किया, इस पर ज्यादा। नतीजा यह हुआ कि जनता ने एनडीए को प्रचंड बहुमत दिया।
बीजेपी ने पहली बार 288 विधानसभाओं वाले राज्य में 132 सीटें हासिल कीं, शिव सेना ने 57, एनसीपी ने 41 सीटें जीत लीं। ये तीनों पार्टियां महायुति गठबंधन का हिस्सा हैं। दूसरी तरफ शिवसेना के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। कांग्रेस सिर्फ 16 सीटें जीत पाई, शिवसेना (एसपी) ने 10 सीटें हासिल कीं, शिवसेना (यूबीटी) के खाते में सिर्फ 20 सीटें गईं। बीजेपी ने लाडकी बहन योजना, आशा वर्करों के वेतनमान बढ़ाने का वादा, अक्षय अन्न योजना, सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट, आयुष्मान जैसी योजनाओं का जिक्र किया और जनता का भरोसा जीत लिया।
निगेटिव कैंपेनिंग पर राजनीतिक पार्टियों के लिए सीख क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव में जब बड़ी राजनीतिक पार्टियां, सत्तारूढ़ या विपक्षी पार्टी की आलोचना करती हैं तो जनता तक उनके अपने घोषणापत्र की बातें नहीं पहुंच पाती हैं। जनता यह ही तय नहीं कर पाती है कि इस पार्टी को वोट किस लिए दें। अक्सर चुनावों में इससे बचने वाली पार्टियां बाजी मार ले जाती हैं।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap