सीटें कम हों या ज्यादा, बिहार के CM कैसे बने रहते हैं नीतीश कुमार?
चुनाव
• PATNA 27 Jul 2025, (अपडेटेड 27 Jul 2025, 12:19 PM IST)
बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती है। अगर नीतीश कुमार न चाहते तो साल 2017 में महज 26 साल की उम्र में पहली बार उप मुख्यमंत्री नहीं बनते। अगस्त 2022 में भी उन्हीं की वजह से तेजस्वी दोबारा डिप्टी सीएम बने थे।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। (AI Generated Image। Photo Credit: PTI)
नीतीश कुमार, बिहार में एक ऐसे नेता बन गए हैं, जिनके इर्द-गिर्द बीते दो दशकों से सूबे की सियासत घूम रही है। वह चाहे आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा रहे हों या एनडीए का, सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार का समर्थन हर गठबंधन के लिए जरूरी रहा। बिहार की सियासत में यह बात कहावत बन गई है कि नीतीश कुमार जिसके साथ हैं, सत्ता में वही दल रहेगा। विधानसभा में चुनाव-दर-चुनाव अगर भले ही उनका जनाधार हाल के कुछ साल में कम हुआ हो लेकिन उनकी अहमियत साल 2005 से एक जैसी ही रही। किसी भी गठबंधन की जीत हुई, मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हीं की रही। साल 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो उन्होंने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया। उनके नेतृत्व वाली पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने बिहार में 12 सीटें हासिल कीं।
बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 12 जेडीयू के खाते में आईं, 12 बीजेपी और 5 सीटें लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने जीतीं। भारतीय जनता पार्टी, लोकसभा में 272 के जादुई आंकड़े से दूर रही। 240 सांसदों ने जीत दर्ज की। जेडीयू के 12 सांसद, टीडीपी के 16 सांसदों की मदद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं। बिहार के लोकसभा चुनावों में 18.51 प्रतिशत वोट शेयर वाले नीतीश कुमार की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। उन्होंने बार-बार कहा था कि प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ही बनेंगे लेकिन विपक्ष की ओर यह दावा तक किया जाने लगा था कि अब नीतीश कुमार जिसे चाहेंगे, वही प्रधानमंत्री होगा।
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नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में कितने जरूरी हैं?
राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर, 2024 लोकसभा चुनाव पर:-
नीतीश कुमार पर पिछले कुछ वर्षों में किए गए सियासी हमले उनकी प्रासंगिकता को दर्शाते हैं। बीजेपी और आरजेडी, दोनों जानते हैं कि बिहार की त्रिकोणीय राजनीति में बिना नीतीश के जीत मुश्किल है। जेडीयू ने बीजेपी से एक सीट कम लड़कर भी बेहतर स्ट्राइक रेट दिखाई है।'

नीतीश कुमार ही क्यों 2005 से बने हुए हैं मुख्यमंत्री?
- सुशासन कुमार की बेदाग छवि: नीतीश कुमार को बिहार में उनके समर्थक 'सुशासन बाबू' बुलाते हैं। साल 2005 में जब उन्होंने बिहार की सत्ता संभाली, तब बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार थी। लालू यादव और राबड़ी देवी सरकार अपराध चरम पर था। अपहरण, हत्या, फिरौती, अपराध, भ्रष्टाचार, और बेरोजगारी से लोग बेहाल थे। न सड़कें अच्छी थीं, न स्कूलों पर सरकारों ने ध्यान दिया था। हालात इतने बुरे हो गए थे कि अदालतों ने अपनी मौखिक टिप्पणियों में 'जंगलराज' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। बिहार में आरजेडी सरकार पर जंगलराज का ऐसा ठप्पा लगा कि आज तक यह दल सत्ता में नहीं आ सका। 2015 और 2022 में बेहद कम वक्त के लिए आया भी तो भी नीतीश कुमार की कृपा से। नीतीश कुमार ने जब साल 2005 में सत्ता संभाली तो उन्होंने सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों के विकास पर जोर दिया। तेजी से सड़कें बनाई जाने लगीं। बिजली, स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति बेहतर हुई। फास्ट-ट्रैक कोर्ट आए, नक्सलवाद का आतंक कम हुआ। उन्होंने साल 2016 में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। महिलाओं में उनकी छवि मजबूत हुई। गांवों में नीतीश कुमार की लोकप्रियता और बढ़ी।
- हर जाति के रहे नीतीश कुमार: बिहार की राजनीति में जाति फैक्टर बेहद अहम है। नीतीश कुमार को हर वर्ग का समर्थन मिला। वह खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं लेकिन वह किसी भी जाति के टैग से दूर रहे। उनकी वजह से कुर्मी और गैर यादव ओबीसी समुदाय, नीतीश के साथ आया। उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलित समुदायों को जोड़ा। उनकी रणनीति ऐसी रही कि लालू यादव की मुस्लिम-यादव रणनीति भी बेअसर रही। नीतीश को विधानसभा चुनावों में हर बार इतने वोट मिले कि वह प्रासंगिक बने रहे।
- गठबंधन की धुरी बन चुके हैं: नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भले ही बीते कुछ विधानसभा चुनावों में सीटों के मामले में बीजेपी या आरजेडी जितनी बड़ी न नजर आई हो लेकिन उनके पास हमेशा इतनी सीटें रहीं कि वह मुख्यमंत्री बने रहे। उनकी चुनावी स्थिति ऐसी हो गई है कि वह खुद ही अपनी पार्टी के 'किंगमेकर' हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के पास 12 सीटें हैं। केंद्र में भी उनका दबदबा है। जेडीयी के पास 12 सीटें हैं, जो एनडीए सरकार की रीढ़ हैं। बिहार विधानसभा में भी जेडीयू के 45 विधायक हैं। वह जिसके साथ चले जाएं, उसकी सरकार बन जाएगी। उन्होंने एनडीए गठबंधन की ताकत को और बढ़ाया है। बीजेपी को बिहार में सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार का साथ हर हाल में चाहिए। पार्टी अकेले, अपने दम पर राज्य में बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर पा रही है। सत्ता में रहने के लिए नीतीश कुमार का साथ अनिवार्य है। बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा स्थानीय नहीं है, जिस पर बिहार में सीएम प्रोजेक्ट किया जा सके। यही वजह है कि बीजेपी भी, नीतीश कुमार के सुशासन बाबू की छवि को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है।
- राजनीति के माहिर खिलाड़ी: नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत उनकी अप्रत्याशित राजनीति है। उन्होंने पिछले एक दशक में तीन बार गठबंधन बदले। 2013 में बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के साथ गए। नतीजा उन्हीं के पक्ष में आया। साल 2015 में विधानसभा चुनाव हुए, महागठबंधन की जीत हुई। तेजस्वी यादव पहली बार डिप्टी सीएम बने, उनकी पार्टी वर्षों बाद सत्ता में आई। यह गठबंधन नहीं चला। नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि थी, आरजेडी की जंगलराज वाली। भ्रष्टाचार के आरोप लगे, नीतीश कुमार को सरकार चलाने में परेशानियां हुईं। साल 2017 में यह गठबंधन टूट गया। नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी के साथ से सरकार का गठन किया, मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी एक बार फिर बने।
- हर अवसर को भुनाने में माहिर: साल 2022 में नीतीश कुमार ने फिर बीजेपी से नाता तोड़ लिया। 2 साल यह गठबंधन चला। नीतीश सरकार ने लाखों नौकरियों का ऐलान किया, हजारों लोगों की नियुक्तियां हुईं। नीतीश कुमार की अगुवाई में इंडिया ब्लॉक का गठन होने जा रहा था लेकिन लोकसभा चुनावों से ठीक पहले वह एक बार फिर एनडीए में लौट आए। नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंचों से कई बार कहा है कि 'हम इन्हीं लोगों के ही साथ थे न, दो बार जाकर गलती की, अब हम इधर ही रहेंगे, उधर नहीं जाएंगे।' नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने रहे। बिहार को दो डिप्टी सीएम और मिले। विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी। नीतीश कुमार के समर्थक जानते हैं कि वह किसी भी दल के साथ गठबंधन में क्यों न हों, कोई उन्हें निर्देशित नहीं कर सकता, वह तय करते हैं कि उनकी राजनीति क्या है।
- योजनाओं के दम पर भी टिके: मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ने बिहार में कई लोकप्रिय योजनाएं शुरू कीं हैं। उन्होंने 'जीविका दीदी' योजना शुरू की। उन्होंने बुनियादी ढांचों को सुधारने पर जोर दिया। बिहार में निवेश के लिए मौके दिए। लघु-उद्योगों को बढ़ावा दिया। उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए वादा किया है कि अगर फिर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो वह 1 करोड़ नौकरियां देंगे। उन्होंने 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली योजनाओं का ऐलान किया है। सड़क और अस्पताल पर उनका जोर रहा। मेडिकल कॉलेज खोले। नीतीश कुमार के सुशासन छवि का असर ऐसा हुआ कि उनसे महिला, बुजुर्ग और युवा भी जुड़े हैं। उन्होंने पत्रकारों के लिए 5000 रुपये प्रतिमाह पेंशन का भी ऐलान किया है।
डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक:-
अपने मजबूत विरोधियों को हाशिए पर धकेलकर, नीतीश कुमार उनके एजेंडा को हावी नहीं होने देते हैं। उनकी व्यक्तिगत छवि पर कोई दाग नहीं है और उन्होंने बिहार में वह कर दिखाया, जो पहले अकल्पनीय था।'
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विधानसभा चुनावों में कैसा है JDU का रिकॉर्ड?
- विधानसभा चुनाव 2010
सीटें: 115
वोट प्रतिशत: 22.6% - विधानसभा चुनाव 2015
सीटें: 71
वोट प्रतिशत: 17.3% - विधानसभा चुनाव 2020
सीटें: 43
वोट प्रतिशत: 15.4%
नीतीश कुमार की चुनौतियां क्या हैं?
- सेहत पर अफवाह: राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के नेता नीतीश कुमार को बीमार बता रहे हैं। उनकी सेहत को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सच्चाई यह है कि नीतीश कुमार बेहद सक्रिय नेताओं में शुमार हैं। उनकी उम्र अभी 74 साल है। वह हर दिन चुनावी दौरा करते हैं, नए प्रोजेक्ट का शिलान्यास करते हैं, क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं।
- उत्तराधिकारी पर अनिश्चितता: लालू यादव की विरासत उनके पुत्र तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं। नीतीश कुमार की विरासत संभालने के लिए पार्टी में अभी तक कोई अहम चेहरा नहीं आया है। उनकी पार्टी में सेकेंड लाइन अभी तैयार नहीं हो पाई है, जिसकी बिहार में स्वीकार्यता हो। उन्हीं की पार्टी सहयोगी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के चीफ उपेंद्र कुशवाहा ने सुझाव दिया है कि अपने बेटे निशांत कुमार को उन्हें उत्तराधिकारी घोषित करना चाहिए।
- गुंडाराज का टैग लगाने की कोशिश: बिहार में हाल के दिनों में कई हिंसा की खबरें सामने आईं हैं। राजधानी पटना में ही कई हत्याएं हुई हैं, होम गार्ड की परीक्षा देने आई युवती से गैंररेप हुआ है। इसे लेकर नीतीश कुमार के राज्य और केंद्र में सहयोगी रहे केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी सवाल उठाए हैं। नीतीश कुमार के समर्थक कह रहे हैं कि चुनाव आने के बाद ऐसी समस्याएं हमेशा से देखी जाती रही हैं।
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नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर कैसा रहा है?
1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में नीतीश कुमार का जन्म हुआ था। उन्होने बिहार कॉलेज ऑफ इंजनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजानियरिंग की पढ़ाई की। साल 1970 के दशक में जब बिहार में जय प्रकाश नारायण के आंदोलन की शुरुआथ हुई, वह जुड़ गए। उनकी विचारधारा समाजवादी थी। वह हर दल के नेता बने। साल 1985 में नीतीश कुमार पहली बार विधायक बने। 1989 में जनता दल के टिकट पर वह लोकसभा में पहुंचे। जब 1990 में उनके साथी रहे लालू यादव, बिहार के मुख्यमंत्री बने, नीतीश कुमार की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं। साल 1994 में उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई। इस पार्टी का बाद में जनता दल (यूनाइटेड) में विलय हो गया। नीतीश कुमार साल 2005 से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे हैं। वह अब तक 9 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं।
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