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चीन की पाकिस्तान परस्ती में बलूचिस्तान कितनी बड़ी वजह? पूरी कहानी

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का मानना है कि चीन और पाकिस्तान, बलूचों के स्थानीय हितों की अनदेखी कर रहे हैं, उनके खनिज संसाधनों को लूट रहे हैं। इस विरोध की पूरी कहानी क्या है, आइए जानते हैं।

Gwadar International Airport

ग्वादर इंटनेशनल एयरपोर्ट। (Photo Credit: Xinhua/Ahmad Kamal)

पाकिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। BLA ने बलूचिस्तान के अलग-अलग 39 जगहों पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली है। बलूचिस्तान आर्मी ने इशारा किया है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान और चीन के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। BLA की मांग है कि बलूचिस्तान को स्वायत्तता मिले, राज्य के प्राकृतिक संसाधनों पर पूरी तरह से राज्य का नियंत्रण हो। पाकिस्तान, बलूचिस्तान में जन विद्रोह का सामना कर रहा है। बलूचिस्तानियों के विरोध की एक चीन का वहां अंधाधुंध निर्माण भी है। 

बलूचिस्तान लंबे समय से अलगाववादी आंदोलनों का केंद्र रहा है। बीएलए स्वतंत्रता की मांग करता है और क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना हक जताता है। पाकिस्तान पर बलोच अधिकारों के हनन के आरोप लगते हैं। बलूचिस्तान में आवाजें उठती हैं कि भारत सरकार मदद दे और बांग्लादेश की तरह बलूचिस्तान को भी आजादी मिले। पाकिस्तान, बलूचिस्तान की अस्थिरता के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है। बलूचिस्तान में चीन की मौजूदगी हमेशा से BLA को खलती रही है। आखिर चीन ने इस इलाके में ऐसा क्या किया है, आइए समझते हैं- 

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बलूच पर क्यों नजरें गड़ाए है चीन?

चीन ने बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के तहत भारी निवेश किया है। यह परियोजना, चीन के महत्वाकांक्षी मिशन बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) का हिस्सा है। CPEC की लागत करीब 60 अरब डॉलर है। इसका मकसद पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे को बेहतर करना और चीन को मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों से जोड़ना है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव चीन महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। चीन चाहता है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए एशिया, अफ्रीका और यूरोप में सड़क, रेल, बंदरगाह की कनेक्टिविटी हो और व्यापार के लिए आवाजाही हो। 

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बलूचिस्तान पर मेहरबानी की वजहें समझिए 

  • ग्वादर बंदरगाह: बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह CPEC का अहम केंद्र है। चीन ने इसके विकास पर अरबों डॉलर खर्च कर चुका है। अगर चीन अरब सागर के रास्ते व्यापार करना चाहता है तो इस बंदरगाह पर नियंत्रण जरूरी है। 
  • पावर प्रोजेक्ट: चीन ने ग्वादर में 300 मेगावाट का कोयला बिजली संयंत्र बनाया है। सौर ऊर्जा के लिए 7 हजार से ज्यादा सोलर पैनल मुहैया कराया है। चीन और व्यापक निवेश की तैयारी में है। 
  • रोड और रेलवे नेटवर्क: चीन बलूचिस्तान में बेहतर रोड कनेक्टिविटी के लिए बलूचिस्तान में सड़कों को सुधार रहा है। बलूचिस्तान में खुजदार-बासिमा रोड का भी निर्माण चीन कर रहा है। बलूचिस्तान के रेलवे प्रोजेक्ट को भी चीन मदद दे रहा है। यहां विकास का मतलब है कि चीन और ज्यादा पाकिस्तान के करीब आएगा।  
  • खनिज का खजाना: बलूचिस्तान, पाकिस्तान का प्राकृतिक तौर पर सबसे समृद्ध खनिज प्रांत हैं। यहां तांबा, सोना और कोयले जैसे खनिजों की भरमार है। चीन ने यहां कई खनिज प्रोजेक्ट में निवेश किया है।
    बलूचिस्तान। (Photo Credit: Freepik)

क्या बनाना चाहता है चीन?

  • ग्वादर इंटरनेशनल एयरपोर्ट: भले ही बलूचिस्तान अशांत हो, वहां बलूच लिबरेशन आर्मी के चरणपंथी सक्रिय हों लेकिन 23 करोड़ डॉलर की लागत से चीन एयरपोर्ट बना रहा है। इस एयरपोर्ट की पूरी फंडिंग चीन कर रहा है। 
  • ग्वादर ईस्ट बे एक्सप्रेसवे: यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान में 19.49 किलोमीटर लंबा, छह-लेन का एक्सप्रेसवे है, जो ग्वादर बंदरगाह को मकरान हाइवे से जोड़ता है। साल 2022 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी, यह चीन के CPEC प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है। स्थानीय मछुआरे इसका विरोध करते हैं। उनका कहना है कि अगर यह सड़क बन गई तो उनकी आजीविका छिन जाएगी। 
  • ग्वादर स्मार्ट पोर्ट सिटी: चीन ग्वादर स्मार्ट पोर्ट सिटी बनाना चाहता है। स्थानीय बलूच लोग इसका विरोध करते हैं लेकिन यह विद्रोह बार-बार दबा दिया जाता है। चीन का दावा है कि इसे अपने प्रतिष्ठित शहर शेनजेन की तरह विकसित करेगा। वह भी एक जमाने में ग्वादर की तरह मछुआरों की बस्ती जैसा था, जो अब चीन के सबसे बड़े शहरों में शुमार है।


    बलूचिस्तान। (Photo Credit: Freepik)

बलूचिस्तान पर पूरा कंट्रोल क्यों चाहता है चीन?

  • एशिया पर नियंत्रण: बलूचिस्तान अरब सागर के किनारे है। यह मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप के लिए व्यापार का अहम रास्ता है। ग्वादर बंदरगाह की वजह से चीन की मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भरता घटी है। यह मलेशिया के प्रायद्वीप और सुमात्रा के बीच अंडमान सागर को दक्षिण चीन सागर से जोड़ता है।
  • मलक्का का विकल्प: चीन का 80 फीसदी से अधिक तेल आयात और व्यापार इसी संकरे जलमार्ग से होकर गुजरता है। चीन को डर है कि अगर किसी नाकाबंदी या संघर्ष की स्थिति में चीन की ऊर्जा आपूर्ति और व्यापार बाधित हो सकता है। चीन की इस दुविधा का विकल्प ग्वादर है।
  • प्राकृतिक संसाधन: बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस, कोयला, तांबा और सोने के भंडार हैं, जो चीन की औद्योगिक जरूरतों के लिए जरूरी हैं। चीन यहां के संसाधनों का दोहन करना चाहता है।
  • आर्थिक लाभ: CPEC के जरिए चीन, पाकिस्तान को व्यापार और ऊर्जा का केंद्र बनाना चाहता है। अगर ऐसा हो गया तो दक्षिण और मध्य एशिया में उसका प्रभाव बढ़ेगा। भारत के खिलाफ उसे कूटनीतिक लाभ होगा। यहां से बांग्लादेश और श्रीलंका तक को साधने की रणनीति चीन तैयार कर रहा है।
  • पाकिस्तान से डर खत्म होगा: पाकिस्तान अशांत देश है। सैन्य विद्रोह और आतंकवाद की जद में पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद से ही रहा है। अगर बलूचिस्तान में स्थिरता रहेगी, पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध रहेंगे तो कूटनीतिक तौर पर भारत एक दबाव भी बना रहेगा। 

स्थानीय लोग क्यों चीन के खिलाफ हैं?
बलूच और बलूच लिबरेशन आर्मी का मानना है कि CPEC से उनकी जमीन और संसाधनों के शोषण का जरिया है। चीन यहां की स्थानीयता खत्म कर रहा है, पाकिस्तान पर कब्जा जमा रहा है। बलूचिस्तान के संसाधनों का लाभ, बलूचिस्तान के ही लोगों को नहीं मिल पा रहा है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि बलूचों के खिलाफ पाकिस्तान सरकार का रवैया दमनकारी है। उन्हें पानी, बिजली और रोजगार जैसी बुनियादी सुविओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी जैसे समूह CPEC परियोजनाओं के विरोधी हैं। कई बार चीनी कामगारों को निशाना बनाकर हमले हुए हैं। उनका कहना है कि चीन, बलूचिस्तान का दोहन कर रहा है, बदले में उसे कुछ नहीं मिल रहा है। 

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