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आखिरी बार 2022 में आई थी दिल्ली की CAG रिपोर्ट, आखिर उसमें था क्या?

दिल्ली में चुनाव के समय से ही CAG रिपोर्ट चर्चा में रही है। अब BJP की नई सरकार इसे सदन में पेश करने जा रही है। जानिए पिछली रिपोर्ट में क्या खुलासे हुए थे।

delhi cag report

CAG रिपोर्ट पर आमने-सामने हैं AAP और BJP, Photo Credit: Khabargaon

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार बन चुकी है। अब यह सरकार काम भी शुरू कर चुकी है और आज से विधानसभा का सत्र भी शुरू हो रहा है। बीजेपी ने वादा किया है कि नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) की उन रिपोर्ट्स को सदन के पटल पर रखा गया है जिन्हें आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने नहीं पेश किया था। BJP लगातार आरोप लगा रही है कि इस रिपोर्ट को जानबूझकर छिपाया गया क्योंकि इससे AAP घिर सकती थी। वहीं, पूर्व सीएम आतिशी का कहना है कि उनकी सरकार ने ही इन रिपोर्ट को उपराज्यपाल को भेजा था। BJP के मुताबिक, इन रिपोर्ट को 25 जनवरी यानी मंगलवार को विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा। इन्हीं रिपोर्ट के आधार पर चुनाव में भी जमकर राजनीति भी हुई थी।

 

दिल्ली में आखिरी CAG रिपोर्ट 2022 में पेश की गई थी। नियमों के मुताबिक, हर साल CAG की ओर से सरकार के कामकाज का ऑडिट किया जाता है और यह रिपोर्ट विधानसभा में रखनी होती है। ऐसी तमाम रिपोर्ट अलग-अलग राज्यों के हिसाब से तैयार की जाती हैं। सीएजी की वेबसाइट पर राज्यों के हिसाब से अलग-अलग रिपोर्ट मिल जाती हैं। दिल्ली सरकार ने जुलाई 2022 में ही कई रिपोर्ट पेश की थीं। इसमें 2019 से 2021 तक की रिपोर्ट शामिल थीं। उसके बाद से दिल्ली सरकार की ओर से कोई सीएजी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है।

 

मौजूदा समय में अगर आप CAG की वेबसाइट पर जाएं तो वहां आपको राज्यों के हिसाब से कई CAG रिपोर्ट मिलेंगी। उत्तराखंड ने फरवरी 2025 में,  हिमाचल प्रदेश ने दिसंबर 2024 में, मध्य प्रदेश ने दिसंबर 2024 में, उत्तर प्रदेश ने दिसंबर 2024 में, केंद्र सरकार ने दिसंबर 2024 में और कई अन्य राज्यों की रिपोर्ट मौजूद है। हालांकि, दिल्ली की रिपोर्ट का इंतजार है। वहीं, आतिशी ने इस पर कहा है, 'मुख्यमंत्री के तौर पर मैंने चुनाव से पहले ही सीएजी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी थी। रिपोर्ट तो वैसे भी विधानसभा के पहले सत्र में पेश होने ही वाली थी। हमें पूरा विश्वास है कि CAG रिपोर्ट में जो कुछ भी है, वह जनता के सामने आना ही चाहिए।'

 

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मौजूदा राजनीति

 

चुनाव के समय दिल्ली में BJP ने CAG रिपोर्ट का मुद्दा जमकर उठाया था। BJP का आरोप है कि दिल्ली सरकार में AAP ने दो हजार करोड़ से ज्यादा का घोटाला किया है। उसका कहना है कि इसी को छिपाने के लिए CAG रिपोर्ट दबाई गई है और अब इसे पेश करके इन घोटालों को उजागर कर दिया जाएगा।

 

 

दिल्ली में AAP की सरकार के 10 साल में शिक्षा और स्वास्थ्य पर जमकर खर्च किया गया है। BJP आरोप लगाती रही है कि AAP ने मोहल्ला क्लीनिक, स्कूल बनाने और अन्य कामों में घोटाला किया है। एक आरोप दिल्ली की आबकारी नीति को लेकर भी है जिसमें AAP के बड़े नेता जेल जा चुके हैं।

दिल्ली की CAG रिपोर्ट

 

दिल्ली की जो ऑडिट रिपोर्ट CAG की वेबसाइट पर मौजूद हैं, उनमें दिल्ली की वित्तीय स्थिति, राजस्व, सामाजिक क्षेत्र और PSU आदि का जिक्र है। CAG ने 28 सितंबर 2021 को दिल्ली सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी थी। इसे दिल्ली सरकार ने 5 जुलाई 2022 को सदन में रखा था। इसमें 31 मार्च 2020 को खत्म हुए वित्त वर्ष तक का ब्योरा शामिल था। इस रिपोर्ट में दिल्ली की वित्तीय हालत, योजनाओं पर खर्च, कमाई का जरिया, बजट प्रबंधन आदि का जिक्र किया गया है।

 

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वित्त वर्ष 2019-20 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार रेवेन्यू सरप्लस में थी। यानी दिल्ली सरकार का जितना खर्च है, कमाई उससे कम है। CAG रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार का यह रेवेन्यु सरप्लस 7,499 करोड़ रुपये थे। इसको थोड़ा दिल्ली के साल 2024-25 के बजट से और समझने की जरूरत है। 2024 में दिल्ली सरकार ने अपना जो बजट पेश किया वह कुल 76 हजार करोड़ था। बाकी राज्यों की तुलना में देखें तो वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 31 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में से 17 ऐसे थे जो रेवेन्यू सरप्लस थे और 14 रेवेन्यू डेफेसिट यानी घाटे में थे। RBI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में दिल्ली की कुल कमाई 53,070 करोड़ रुपये थी और उसने कुल 51,799 करोड़ रुपये खर्च किए। यानी उसके पास 1270 करोड़ रुपये अतिरिक्त थे। 

 

 

2019-20 से 2021-22 के आंकड़ों को देखें तो तीन साल में रेवेन्य सरप्लस लगातार घटा। 2019-20 में रेवेन्यू सरप्लस 7499 करोड़, 2020-21 में 3770 करोड़ और 2021-22 में 1270 करोड़ ही था। 2024-25 के बजट के मुताबिक, दिल्ली का अनुमानित रेवेन्यू सरप्लस 3231 करोड़ होना था जबकि 2023-24 में यह 4966 करोड़ रुपये था।

रिपोर्ट में क्या पता चला?

 

वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में 2019-20 में दिल्ली सरकार की राजस्व प्राप्तियां (रेवेन्यू रिसीट) 9.33 पर्सेंट बढ़ीं। वहीं, राजस्व खर्च (रेवेन्यू एक्सपेंडिचर) 7.56 पर्सेंट बढ़ा। केंद्र सरकार से मिलने वाली मदद 62.10 पर्सेंट बढ़ी और खर्च भी लगभग इसी अनुपात में बढ़ा। कुल मिलाकर 2019-20 में जो रिपोर्ट पेश की गई वह बताती है कि सरकार की कमाई उसके खर्च से ज्यादा थी यानी दिल्ली की वित्तीय हालत अच्छी थी।

 

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CAG रिपोर्ट में दिए डेटा के मुताबिक, 2015 से 2020 के बीच दिल्ली सरकार ने राजस्व खर्च और पूंजीगत खर्च हर साल बढ़ाया है। दिल्ली सरकार 2015-16 में जहां कुल 33,750 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी तो 2019-20 में यह बढ़कर 48,375 करोड़ पहुंच गया।

 

 

दिल्ली में सामान्य सेवाओं पर होने वाले खर्च में 2015 से 2020 के बीच कमी आई और सामाजिक सेवाओं पर खर्च बढ़ गया। 2018-19 की तुलना में 2019-20 में पानी की सप्लाई और सफाई पर खर्च में बढ़ोतरी हुई, आवासीय खर्च में तीन चौथाई की कमी हुई और पोषण पर खर्च बढ़ाया गया। दिल्ली सरकार ने 2019-20 में 11,070 करोड़ रुपये खर्च किए जो कि कुल राजस्व खर्च का 23.49 प्रतिशत है। 

 

11 मामलों में कुल 810.86 करोड़ का सप्लीमेंट्री ग्रांट गैरजरूरी पाया गया। कई विभागों को मिलाकर कुल 326.19 करोड़ रुपये दोबारा दिए जाने वाले ग्रांट के तहत दिए गए जबकि वे कुल 455.77 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं कर पाए थे। 

सब्सिडी पर कितना खर्च?

 

दिल्ली सरकार पर मुफ्त की सेवाओं के आरोप लगते रहे हैं। इसको आंकड़ों में देखें तो 2015-16 में दिल्ली सरकार सब्सिडी पर 1868 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी। इस पर हर साल खर्च बढ़ता गया और 2019-20 में कुल 3593 करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च किए गए। 

 

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पूंजीगत खर्च को देखें तो दिल्ली सरकार ने सड़क निर्माण, सिंचाई और बाढ़ प्रबंधन, स्वास्थ्य, ऊर्जा और शिक्षा जैसे मामलों पर खर्च को बढ़ाया है। इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने 2019-20 में 19,411 करोड़ रुपये कई जगहों पर निवेश भी किए थे जिस पर उसे ब्याज मिलता रहता है। 2015-16 से 2019-20 के बीच दिल्ली के कब्ज में बढ़ोतरी भी हुई है। 2015-16 में दिल्ली सरकार पर कुल कर्ज 32,497 करोड़ रुपये का था जो 2019-20 में 34,766 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।

क्या समस्याएं मिलीं?

 

CAG अपनी रिपोर्ट में यह भी बताता है कि किसी भी राज्य के वित्तीय मामलों में जो तरीके अपनाए जा रहे हैं वे कितने सही या गलत हैं। CAG ने अपनी इस रिपोर्ट में बताया था कि रिसीट एंड पेमेंट रूल्स 1983 के नियम 6 (1) के मुताबिक, कोई भी पैसा सरकार को मिलते ही बिना देरी किए उसे सरकार के खाते में जमा करा दिया जाना चाहिए। CAG ने पाया कि ट्रांसपोर्ट विभाग के पास इकट्ठा हुए काफी पैसों को पहले विभाग के खाते में रखा गया फिर सरकार के खाते में ये पैसे ट्रांसफर हुए। कुल 1005.65 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने में देरी हुई जिससे सरकार को 4.81 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

 

 

इसी तरह केंद्र सरकार ने कुल 37.46 करोड़ रुपये सीधे तीन एजेंसियों को भेज दिए जिसके चलते इसकी कोई जानकारी दिल्ली सरकार के पास नहीं थी। साथ ही, किसी भी खर्च के लिए यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट देना होता है। इसके लिए अधिकतम समयसीमा 12 महीने की है। इसमें भी काफी लेटलतीफी हुई। CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ट्रांसपोर्ट विभाग में 1825 करोड़ रुपये, SDMC में 939 करोड़, DUSIB में 782 करोड़ और दिल्ली जल बोर्ड में 492 करोड़ रुपये के खर्च के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट लंबे समय तक नहीं जारी किए गए।

 

CAG ने एक और खामी यह पकड़ी है कि छोटी मदों यानी कि माइनर हेड्स में जमकर खर्च किया गया। नियमों के मुताबिक, माइनर हेड्स में तब खर्च किया जाता है जब बड़ी मदों में वह काम न आता हो। CAG का मानना है कि इससे वित्तीय मामलों में पारदर्शिता प्रभावित होती है।

 

कमाई और खर्च को समझिए

 

दिल्ली में सरकार की लगभग एक तिहाई से ज्यादा कमाई टैक्स के पैसों से होती है। 2024-25 के बजट के मुताबिक, दिल्ली सरकार को टैक्स से 77.3 प्रतिशत कमाई का अनुमान था। बाकी के पैसे सेविंग लोन, कैपिटल रिसीट, गैर टैक्स रेवेन्यू, केंद्र से मिलने वाली सहायता के जरिए आते हैं। यही पैसे दिल्ली सरकार अपने कर्मचारियों को सैलरी देने, पेंशन देने, स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, बिजली-पानी देने, स्कूल बनाने आदि कामों में खर्च करती है। 2024-25 के बजट के मुताबिक, 22 प्रतिशत बजट शिक्षा के लिए, 11 पर्सेंट स्वास्थ्य के लिए, 10 पर्सेंट ट्रांसपोर्ट के लिए और 9 पर्सेंट बजट पानी और साफ-सफाई के लिए रखा गया था।

कैसे पेश होती है CAG रिपोर्ट?


CAG हर राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र सरकार के कामकाज, खर्च आदि की जांच करके रिपोर्ट तैयार करती है। यह रिपोर्ट संबंधित राज्य या सरकार को सौंप दी जाती है। वित्त मंत्री और मुख्यमंत्री की ओर से मंजूरी मिलने के बाद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाता है। इसे विधानसभा के पटल पर रखा जाता है, उसके बाद यह रिपोर्ट CAG की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हो जाती है। विधानसभा में रिपोर्ट रखे जाने के बाद इसे पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (PAC) को भेजा जाता है, जहां इस रिपोर्ट पर चर्चा होती है। 


CAG रिपोर्ट की अहमियत

 

भारत की राजनीति में CAG रिपोर्ट की अहमियत देखें तो कई सरकारों में हुए भ्रष्टाचार के खुलासे इन्हीं के जरिए हुए हैं। 2014 तक चली मनमोहन सरकार के लिए ऐसी ही सीएजी रिपोर्ट काल साबित हुई हैं। CAG रिपोर्ट की अध्ययन के बाद ही बिहार में चारा घोटाला सामने आया था। कई बार पत्रकारों ने भी सीएजी रिपोर्ट के हवाले से कई खोजी रिपोर्ट भी की हैं। CAG का मकसद भी सरकारी काम में पारदर्शिता सुनिश्चित करना ही है।

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