कितनी बड़ी है लाइव कॉन्सर्ट की इकॉनमी, समझ लीजिए पूरा खेल
देश
• NEW DELHI 13 Feb 2025, (अपडेटेड 13 Feb 2025, 2:54 PM IST)
पिछले एक-दो साल में भारत में लाइव कॉन्सर्ट काफी तेजी से बढ़े हैं। इससे न सिर्फ आयोजकों को कमाई हुई है बल्कि सरकार को भी अच्छा-खासा टैक्स मिला है। समझिए इसकी इकॉनमी क्या है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit: PTI
भोपाल से इटारसी का रास्ता पकड़ेंगे तो करीब 40 किलोमीटर चलने के बाद जंगलों के बीच चट्टानों की गुफाएं दिखेंगी। भीमबेटका की इन गुफाओं की दीवारों में नृत्य करते इंसानों के चित्र बने हुए हैं। जो आग जलाकर उसके चारों ओर नाच रहे हैं। आर्कियोलॉजिस्ट बताते हैं, ये चित्र करीब 10 हजार साल पुराने हैं। आदि मानव जो यहां कभी रहे थे, उन्होंने ही इन चित्रों को बनाया है। वे मन बहलाने के लिए इसी तरह से नाच गाना किया करते। म्यूजिक कॉन्सर्ट में जाकर या डांस परर्फॉमेंस देखकर, खुद को इंटरटेन करने का दौर अब का नहीं है। हजारों सालों से ये परंपरा चली आ रही है। इंद्र की सभा में नृत्य करने वाली अप्सराएं हों। वैदिक काल में होने वाला रात्रि मेला हो। अकबर की सभा में परफॉर्म करने वाले तानसेन हों। या फिर अब गांव में होने वाली ऑक्रेस्ट्रा नाइट्स हो। बारात का लौंडा नाच या शादी में गाए जाने वाली गारी, नवधा रामायण, पांडवानी या ट्राइबल डांस। हम इंडियन्स हजारों सालों से अपनी लाइफस्टाइल में इंटरटेनमेंट लाने के लिए म्यूजिक का सहारा लेते आए हैं।
साल 2024 के खत्म होते होते भारत के म्यूजिकल कॉन्सर्ट वर्ल्ड में एक बड़ा भूचाया आया। नवंबर, दिसंबर और जनवरी। इन तीन महीनों में भारतीयों ने म्यूजिक कॉन्सर्ट का टिकट खरीदने के लिए 700 से 900 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। अनुमान है अगले तीन महीनों में हम 16 सौ से 2 हजार करोड़ रुपए खर्च करेंगे। कभी धान या गेंहूं के बदले गांव में होने वाली नौटंकी अब हजारों रुपए के ऑस्क्रेट्रा नाइट और करोड़ों रुपए के कॉन्सर्ट में बदल चुकी है। इस वीडियो में आपको भारत में तेजी से बढ़ती कॉन्सर्ट इकोनमी के बारे में बताते हैं।
यह भी पढ़ें- 140 लड़ाइयां, मुगलों से पंगा और दर्दनाक मौत, 'छावा' असली कहानी क्या है
मनोरंजन के साधन
सड़क पर हुआ एक्सीडेंट हो। या फिर दो लोगों की लड़ाई हो। इसे देखने दर्जनों लोग इकट्ठा होते हैं। चटखारे लेते इसे देखते हैं। नट आता है। थाली पीट-पीट कर लोगों को बुलाता है। लकड़ी गाड़ कर रस्सी बांधता है। और बांस के सहारे रस्सी पर चलने लगता है। दर्जनों लोग जुट कर इसका मजा लेते हैं। बदले में कोई सिक्के निकाल कर रख देता है। कोई गेहूं, चावल, आटा दे जाता है। यूं खड़े होकर JCB की खुदाई देखना। नेता जी के आने पर हेलीकॉप्टर देखने जाना। किसी सभा से पहले सांस्कृतिक कार्यक्रम देखना। या फिर पैसे देकर म्यूजिकल कॉन्सर्ट में जाना। ये सब हमारे दिमाग का कोई नया फितूर नहीं है। न ही इसके पीछे फालतू की बेरोजगारी है। इसके पीछे की साइकी हजारों साल पुरानी है। सबकॉन्शियस माइंड में आज भी हमें इंद्र की सभा में नृत्य करने वाली अप्सरा याद है। या फिर सड़क बैठे एक का दो करने वाले जादूगर का मजमा।
वाल्मीकि रामायण के सुंदर कांड में हमने पढ़ा है कि रावण की सभा में अप्सराएं नृत्य किया करती थीं। महाभारत में वनपर्व का जिक्र है। उर्वशी, रंभा, मेनका और तिलोत्तमा जैसी अप्साएं इंद्र के दरबार में नृत्य करती। भगवान कृष्ण, गोपियों के साथ रासलीला करते। विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के मोहनी अवतार का जिक्र है। जिनका अवतार ही नृत्य और गायन के लिए हुआ था। ईसा से करीब 2 हजार पहले वैदिक काल में रात्रि मेले का जिक्र मिलता है। जिसमें लोग तैयार होकर कर रात्रि मेले में शामिल होते। मृदंक की थाप पर पूरी रात नाचते-गाते, खाते-पीते और मौज मस्ती करते। यहां युवा अपने लिए साथी तलाशते। ऋगवेद में इस रात्रि उत्सव को समन कहा गया है। बौद्ध काल में थेरगाथा की परंपरा थी। बौद्ध भिक्षु नगर के अलग-अलग जगहों पर इकट्ठा होते। और महात्मा बुद्ध के उपदेश गा-गा कर लोगों तक पहुंचाते थे। लोग बड़े चाव से इन गीतों को सुना करते।
सैकड़ों सालों से इन किस्से कहानियों को हम देख, सुन और पढ़ रहे हैं। इस तरह से गीत-संगीत या नृत्य देखने को हम आज भी मजे और विलासिता से जोड़ कर देखते हैं। भारत के इतिहास में ऐसे कई राजा आए, जिन्होंने इस सोच को और ज्यादा बढ़ावा दिया। मौर्य काल के दौरान, चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहते हुए, सेल्यूकस के राजदूत मेगस्थनीज़ ने एक किताब लिखी। इंडिका। जिसमें बताया कि चंद्रगुप्त आए दिन अपने दरबार में संगीत प्रदर्शन कराता। सबसे अच्छा परफॉर्म करने वाले को खूब सारा पैसा देता। इसे सुनने के लिए आम प्रजा भी दरबार में आ सकती थी। इसे आप म्यूजिक कॉन्सर्ट का पुराना रुप समझ सकते हैं। उस वक्त इन कॉन्सर्ट का खर्च राजा उठाया करते थे। अब हम खुद से पैसे खर्च कर इन कॉन्सर्ट्स को देखने जाते हैं।
यह भी पढ़ें: 'ऐसे लोगों को मारना चाहिए, गधे पर बैठाकर घुमाओ', रणवीर पर भड़के मुकेश
परफॉर्मिंग आर्ट का इतिहास
चंद्रगुप्त के बाद बिंदुसार ने तो इसे एक स्टेप और आगे बढ़ाया। बिंदुसार पड़ोसी देश चीन, मिश्र, जावा, सुमात्रा और तिब्बत से संगीतज्ञों को बुलाकर अपने राज्य में परफॉर्म करवाता। यानी की इंटरनेशनल आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे। जैसे आज भारत में कोल्ड प्ले, टेलर स्विफ्ट या जस्टिन बीबर जैसे इंटरनेशनल आर्टिस्ट आकर कॉन्सर्ट करते हैं। मौर्य काल के बाद शुंग काल, कनिष्क काल और गुप्त काल में भी इस तरह से संगीत कार्यक्रमों के जरिए खुद को इंटरटेन करने का कल्चर दिखाई देता है। बड़े मंदिरों में देवदासियों का प्रचलन था। जो मंदिर में भजन गाया करतीं। जिन्हें सुनने नगर की आम जनता इकट्ठा होतीं।
मॉर्डन म्यूजिकल कॉन्सर्ट। गजल नाइट। शास्त्रीय संगीत परर्फॉमेंस। इसका मॉर्डन स्वरूप भारत के अंदर पिछले कुछ सौ सालों में ही उभरा है। पहले मुगल शासक बाबर, कल्लिनाथ नाम के मशहूर संगीतज्ञ के सानी थे। हुमायूं अपने वक्त में बैजूबावरा के संगीत से आशक्त थे। अकबर के नौ रत्नों में से एक तानसेन को कौन नहीं जानता। इस दौरान भारतीय राजाओं के दरबार में भी संगीत सभाएं होती। सरकारी तनख्वा पर इन संगीतज्ञों को रखा जाता। महाशिवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी, राम नवमी जैसे मौकों पर, देवताओं की कहानियां भजन और गीतों के जरिए गाए और सुनाए जाते थे। दशहरे के मौके पर रामलीला का प्रचलन सैकड़ों सालों से होता आया है। जिसे देखने हजारों लोग इकट्ठे होते। भारत के हर राज्य में रामलीला, अपने-अपने लैंग्वेज में परफॉर्म होती आई हैं।
यह भी पढ़ें- सलमान खान होंगे 'सनम तेरी कसम 2' का हिस्सा! डॉयरेक्टर ने दिया जवाब
विकास के इस क्रम में, इतने सालों से इंसानों ने खुद को इंटरटेन करने के लिए, म्यूजिक का सहारा लिया है। नुक्कड़ पर बैठ कर गाया जाने वाला फाग हो। या फिर नवरात्रों में होने वाली माता सेवा। हर कहीं म्यूजिक मौजूद रहा है। इतने सालों की परंपरा ने हमें देख कर मजा लेने के मामले में एडिक्टड कर दिया है। शायद इसी लिए विदेशों में रहने वाले भारतीय, किशोर कुमार को बुला कर बॉलीवुड गीतों का मजा लेते थे। और पंकज उधास को बुला कर चिट्ठी आई है जैसे मशहूर गजल सुना करते। हाल फिलहाल में आई वेब सीरिज बंदिश बैडिंट्स कॉन्सर्ट के बढ़ते ट्रेंड का अच्छा उदाहरण पेश करता है। एक पीढ़ी राज घरानों के लिए संगीत सेवा करने में विश्वास रखती है। जबकि दूसरी पीढ़ी इंटरनेट के दौर के साथ जुड़ कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपने म्यूजिक को पहुंचाने में।
कितने पैसे खर्च हुए?
वैसे तो हम इंडियन्स काफी पहले से म्यूजिक कॉन्सर्ट में जाते आए हैं लेकिन हाल फिलहाल में होने वाले ग्लोबल कॉन्सर्ट के मामले में भारत नया खिलाड़ी है। भारत में तेजी से बढ़ रही कॉन्सर्ट इकोनमी पर बैंक ऑफ बड़ोदा ने रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें बताया गया है कि कैसे 2024 के नवंबर-दिसबंर और 2025 की जनवरी, इन तीन महीनों में इंडियन्स ने 700 से 900 करोड़ रुपए कॉन्सर्ट्स के टिकट खरीदने पर खर्च कर दिए हैं।
लाइव इवेंट से रेवेन्यू हांसिल करने के मामले में भारत, साउथ कोरिया, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से भी आगे है। और दुनिया में 7वें नंबर पर है। कोल्ड प्ले, दुआ लिपा, ऐड शीरिन, दिलजीत दोसांझ, मोनाली ठाकुर और करण औजला को मिले पॉजिटिव रिस्पांस के बाद। मरून 5, ग्रीन डे, शॉन मेंडेस, लुइन टॉमलिंसन जैसे आर्टिस्ट ने इंडिया में कॉन्सर्ट अनाउंस किया है। मार्च 2025 में मुंबई में लोलापलोजा इवेंट होगा। जिसमें दर्जन भर आर्टिस्ट लोकल और इंटरनेशनल आर्टिस्ट परफॉर्म करेंगे। मुंबई के महालक्ष्मी रेस कोर्स में होने वाले इस इवेंट का शुरुआती टिकट ही 7 हजार रुपए का है। लाखों लोग इस इवेंट में शामिल होंगे। फरवरी 2025 में ऐड सीरिन भारत के 6 शहरों में शोज़ करने वाले हैं। फरवरी में ही इंटरनेशनल रैपर, 21 सैवेज ने गुरुग्राम में शो किया है।
साल 2024 में भारत के 300 से ज्यादा शहरों में 30 हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े शोज़ हुए हैं। और इनमें ज्यादातर शहर कानपुर, शिलॉन्ग या गांधी नगर जैसे टियर टू सिटीज़ हैं। बैंक ऑफ बड़ैदा का अनुमान है कि आने वाले वक्त में एड शीरीन, शॉन मेंडेस, ग्रीन डे जैसे आर्टिट्स के कॉन्सर्ट के बाद, भारत की कॉन्सर्ट इकोनमी 6 से 8 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगी। दुनिया के कई देशों की इकोनॉमी में लाइव म्यूजिक कॉन्सर्ट का बहुत बड़ा रोल रहा है। साउथ कोरिया की सरकार वहां के बैंड्स को खूब प्रमोट करती है। वहां की इकोनमी को इससे बहुत तगड़ा बूस्ट मिला है। जैसे कि बीटीएस। इंटरनेशनल लेवल पर इनके पास लॉयल ऑडियंस मौजूद हैं, जो प्रॉउडली अपने आप को BTS आर्मी बुलाते हैं। लोग कितने भी पैसे खर्च कर इनके कॉन्सर्ट देखने को तैयार हैं।
सरकार को जबरदस्त फायदा
2023 में लाइव कॉन्सर्ट से दुनियाभर में करीब 31 बिलियन डॉलर की कमाई हुई है। टेलर स्विफ्ट को ही ले लो। सिर्फ टेलर के शोज़ के चलते उत्तरी अमेरिका की इकोनमी को 4।6 बिलियन डॉलर का बूस्ट मिला है। जबकि ब्रिटेन को 1 बिलियन डॉलर का। बैंक ऑफ बड़ोदा की रिपोर्ट बताती है कि कॉन्सर्ट के चलते हॉस्पिटैलिटी से लेकर ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी बूम आता है। लोग सिर्फ टिकट खरीदने पर टैक्स नहीं देते। बल्कि होटल्स और रेस्टोरेंट्स का GST कलेक्शन बढ़ता है। फॉरेनर्स को इंडिया में टिकट सस्ते दाम पर मिलते हैं। जिससे वो इंडिया का टूर प्लान करते हैं। और देश की विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर्स छोड़ जाते हैं।
यह भी पढ़ें: कितना सच-कितना फसाना... क्या सच में 'आलसी' बनाती हैं मुफ्त की चीजें?
इन सभी फैक्टर को देखकर इवेंट आर्गेनाइजर्स को इस बिजनेस में बहुत बड़ा स्कोप दिखाई देने लगा है। लोकल बैंड्स के एवेंट्स के अलावा अब इंटरनेशनल आर्टिस्ट को भी बुलाकर हजारों करोड़ रुपए का रिवेन्यू मॉडल खड़ा किया जा रहा है। हालांकि, भारत अब भी इंफ्रास्ट्रचर के मामले में जूझ रहा है। भारत में शहरों में अब भी बड़े स्पेस मौजूद नहीं है। अगर हैं तो पार्किंग जैसी बेसिक फैसिलिटी के लिए जूझना पड़ता है। अहमदाबाद का मोटेरा स्टेडियम जैसे कुछ अपवाद हैं। बीते दिनों हुए दिलजीत से लेकर कोल्डप्ले के कॉन्सर्ट में विवाद सामने आए। दिल्ली में हुए दिलजीत के कॉन्सर्ट में टिकटों की कालाबाजारी का मामले सामने आया। साथ ही खुलआम शराब परोसने को लेकर भी शिकायत दर्ज की गई। इसके अलावा जिस JLN स्टेडियम में ये शो हुआ था, वहां भी फैंस ने संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया था। इसी तरह का विवाद उनके चंडीगढ़ वाले कॉन्सर्ट में भी सामने आए थे।
कोलकाता में लाइव कॉन्सर्ट के दौरान बॉलीवुड सिंगर केके की मौत को लेकर भी कई सारे सवाल खड़े हुए। शुरुआती रिपोर्ट्स में बताया गया कि केके को सफोकेशन हो रहा था। बाद में मौत का कारण हार्ट अटैक को बताया गया। केके के निधन के बाद भारत में होने वाले कॉन्सर्ट की फैसिलिटीज़ पर सवाल खड़े हुए थे।28 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में तेजी से बढ़ती कॉन्सर्ट इकोनमी को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि दुनिया के बड़े स्टार भारत आना चाहता है। ऐसे में प्राइवेट सेक्टर के साथ साथ राज्य सरकारें भी इनके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराएं।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap