logo

ट्रेंडिंग:

चमोली: पहाड़ों से पलायन मजबूरी, हिमस्खलन से ऐसे जान बचाते हैं ग्रामीण

उत्तराखंड में ठंड के दिनों में कई इलाके ऐसे हैं, जहां जोखिम बढ़ जाता है। पहाड़ों से लोग नीचे उतर आते हैं। जिस पलायन को उत्तराखंड की समस्या कहा जाता है, उससे जान भी बचती है।

Chamoli Crisis

चमोली में रेस्क्यू ऑपरेशन। (Photo Credit: PTI)

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सर्दी के दिनों में रहना असंभव हो जाता है। ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले ग्रामीण, सर्दी के दिनों में अपना घर छोड़कर मैदानी इलाकों में आ जाते हैं। चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जैसे इलाकों में जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, तब यहां का पलायन, सैकड़ों लोगों की जान भी बचा लेता है। 

यही वजह है कि चमोली के माणा जैसे हादसे कभी-कभी होते हैं। माणा में ग्लेशियर टूटने के बाद करीब 57 लोग बर्फ में दब गए थे, जिनमें से 40 से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू हो चुका है, 8 लोग अभी बचे हैं। मजदूर बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (BRO) से जुड़े थे। 

क्यों इन गांवों के लिए जरूरी है पलायन?
बर्फ से बाहर निकले मजदूरों का इलाज, माणा गांव के पास ही बने ITBP के कैंप में हो रहा है। शुक्रवार को यहां भूस्खलन हुआ था। माणा टूरिज्म के लिहाज से देश के सबसे लोकप्रिय गांवों में से एक है। इसे भारत का अंतिम गांव भी कहते हैं। यह पहला भारतीय गांव भी कहलाता है। यहां रहने वाले लोग नवंबर से अप्रैल के बीच निचले इलाकों में पलायन कर जाते हैं। यहां तापमान शून्य से -17 तक डिग्री सेल्सियस तक चल जाता है।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड हिमस्खलन: 6-7 फीट मोटी बर्फ, हेलीकॉप्टर तैयार, जानें सबकुछ

नवंबर से पहले गांव छोड़ देते हैं ग्रामीण। (Photo Credit: PTI)

सर्दियों में दूसरे गांवों में शिफ्ट हो जाते हैं लोग
जब माणा में हिमस्खलन हुआ, तब यहां कोई नहीं था। माणा के रहने वाले लोग गोपेश्वर चले गए थे। यह चमोली का जिला मुख्यालय है, जो माणा से करीब 100 किलोमीटर दूर है। ज्यादातर ग्रामीणों के पास गोपेश्वर या पास के इलाकों में दूसरे घर भी हैं। वे 5 महीने मैदानी इलाके में रहते हैं, 5 महीने पहाड़ पर। यहां रहने वाले ज्यादातर परिवार हस्तशिल्प से जुड़ी चीजें बनाते हैं, जब अप्रैल-मई से चारधाम की यात्रा शुरू होती है तो वे गांव वापस लौट जाते हैं।

यह भी पढ़ें: चमोली हादसा: SDRF, NDRF और सेना उतरी, लापता लोगों की तलाश जारी


माणा में दर्शनार्थी पर्यटक बनकर जाते हैं। यहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं। माणा गांव समुद्र तल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर है। माणा गांव में 1200 से ज्यादा लोग रहते हैं। 824 रजिस्टर्ड वोटर यहां रहते हैं। यहां होम स्टे भी होता है। यहां से सिर्फ 3 किलोमीटर दूर बद्रीनाथ का एक अस्पताल भी है। 

बर्फ में दब जाते हैं लोगों के घर। (Photo Credit: PTI)

पलायन मजबूरी भी है, अक्लमंदी भी
चमोली के माणा में हिमस्खलन की घटनाएं नई नहीं हैं। जब 5 महीने लोग गोपेश्वर में रहते हैं, तब यहां किसी भी तरह के हुए हादसों के बारे में लोगों को पता नहीं चल पाता। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां ज्यादातर ग्रामीणों ने अपने बच्चों का दाखिला गोपेश्वर के स्कूलों में करा दिया है, जिससे पढ़ाई-लिखाई न प्रभावित हो। गर्मी के दिनों में बुजुर्ग गांव वापस आ जाते हैं लेकिन बच्चे वहां पढ़ाई करते हैं।

सर्दी के दिनों में सुनसान रहता है ये गांव
माणा में BRO की ओर से सड़क बनाई जा रही है। हिमस्खलन जहां हुआ है, वह अपेक्षाकृत बेहद ऊंची जगह है। वहीं मजदूर टिके हुए थे। हर साल यह गांव इन दिनों में सुनसान ही रहता है। सेना और BRO के कर्मचारी ही यहां के नजदीकी शिविरों में रहते हैं। 

उनकी जानकारी के अनुसार, हिमस्खलन माणा गांव के पास हुआ, जहां पिछले कई महीनों से बीआरओ द्वारा सड़क निर्माण का काम चल रहा था। जब गर्मी के दिनों में माणा से नीचे गोपेश्वर में लोग रहते हैं, तब उन्हें अगर वापस गांव जाना हो तो परमिट की जरूरत पड़ती है। गांव बर्फ में पूरी तरह से ढक जाते हैं। 

रेस्क्यू ऑपरेशन में भी आ रही हैं दिक्कतें। (Photo Credit: PTI)

माणा की अहमियत क्या है?
माणा गांव अलकनंदा नदी के किनारे पर बसा है। मान्यता है कि यह महाभारत कालीन गांव है। बद्रीनाथ आने वाले तीर्थयात्री अक्सर यहां आते हैं। माणा बद्रीनाथ से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है। कहते हैं कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे, तब उनका एक पड़ाव यहां भी था। 

चमोली के किन गांवों में पलायन से बच जाती है जान
चमोली के 9 गांव ऐसे हैं, जहां सर्दी के दिनों में पलायन की वजह से लोगों की जान बच जाती है। द्रोणागिरी, मलारी, कैलाशपुर, गमशोली, जेलम, कोशा, जुम्मा और नीति में पलायन की वजह से लोग ऐसे हादसों से बच जाते हैं। इन गांवों में भी हिमस्खलन और बर्फीले तूफानों की आशंका हमेशा बनी रहती है।  

बर्फ से ढक जाते हैं चमोली के इलाके। (Photo Credit: PTI)

क्यों रेस्क्यू ऑपरेशन में हुई देरी?
उत्तराखंड में 2 दिनों से बर्फबारी और बारिश ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हादसे वाली जगह पर शुरुआत में ITBP की टीम पहुंची। बर्फ की मोटी चादर जमी होने की वजह से रेस्क्यू में मुश्किलें आईं।  उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन और पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा है कि बचाव कार्य चुनौतीपूर्ण है क्योंकि हिमस्खलन स्थल के पास सात फुट तक बर्फ जमी हुई है। उन्होंने बताया कि बचाव अभियान में 65 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं।

माणा गांव में जारी है रेस्क्यू ऑपरेशन। (Photo Credit: PTI)

कहां है माणा गांव, जहां फंसे मजदूर
माणागांव बदरीनाथ से भी 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह भारत-तिब्बत सीमा पर 3,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अंतिम गांव है। यहां की सड़क पर बर्फ की इतनी मोटी चादर पड़ी है, जिसकी वजह से लोग वहां तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap