3000 बीघा जमीन, क्या है सीमेंट फैक्ट्री वाला केस जिस पर चौंके थे जज?
देश
• GUWAHATI 19 Aug 2025, (अपडेटेड 19 Aug 2025, 12:56 PM IST)
3000 बीघा जमीन वाले मामले में अपना नाम आने के बाद अडानी ग्रुप ने स्पष्टीकरण जारी किया है। इससे पहले हाई कोर्ट के जज ने एक कंपनी को 3000 बीघा जमीन देने पर हैरानी जताई थी।

3000 बीघा जमीन आवंटन का मामला, Photo Credit: Khabargaon
हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें हाई कोर्ट के जज एक कंपनी को 3000 बीघा जमीन देने पर चौंक गए। यह वीडियो चर्चा का विषय बना हुआ है और सवाल उठ रहे हैं। इसी को लेकर असम की हिमंता बिस्वा सरकार को भी घेरा जा रहा है और सबसे ज्यादा चर्चा में अडानी ग्रुप। कहा जा रहा है कि हिमंता सरकार ने अडानी ग्रुप को यह जमीन बिना औपचारिक अनुमति के ही दे दी। रोचक बात यह है कि वीडियो वायरल होने के बाद अब अडानी ग्रुप ने एक स्पष्टीकरण भी जारी किया है।
आखिर सीमेंट फैक्ट्री लगाने से किसी को क्या समस्या है? असम में फैक्ट्रियों के लिए जमीन देने से जुड़े विवाद इतनी चर्चा में क्यों हैं और इस सबसे में अडानी ग्रुप का नाम कैसे आया? आइए इन सारे सवालों के जवाब खोजते हैं।
सबसे पहले वीडियो की बात
वायरल हुआ वीडियो हाई कोर्ट की सुनवाई का है। हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार मेढी इस केस की सुनवाई कर रहे थे। सुनवाई के दौरान वकील कहती हैं कि महाबल सीमेंट को 3000 बीघा जमीन दी गई है। इस पर जस्टिस मेढी चौंक जाते हैं और कहते हैं, '3000 बीघा? पूरा जिला? क्या चल रहा है? 3000 बीघा जमीन एक प्राइवेट कंपनी को दे दी? यह कैसा फैसला है? क्या यह किसी तरह का मजाक है या कुछ है?' इस पर महाबल सीमेंट की वकील कहती हैं, 'सर, इसकी जरूरत है।' इस पर जस्टिस मेढी और भड़क जाते हैं और कहते हैं, 'आपकी जरूरत मुद्दा नहीं है मैडम, जनता का हित यहां मुद्दा है।'
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कोर्ट ने कहा कि दीमा हसाओ जिला संविधान की छठी अनुसूची के तहत आता है, इस स्थिति में यहां रहने वाले जनजातीय लोगों के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने इस पर भी संज्ञान लिया कि दीमा हसाओ के जिस उमरांगसो क्षेत्र में इस फैक्ट्री के लिए जमीन दी गई है, वह पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। इस क्षेत्र में हॉट स्प्रिंग्स हैं, प्रवासी पक्षियों के रहने की जगहें हैं और अन्य वन्यजीव भी यहां रहते हैं। हाई कोर्ट ने असम सरकार को नोटिस देते हुए कहा है कि वह जमीन आवंटन की नीति से जुड़े कागज कोर्ट में पेश करे। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जिस तरह से कंपनी को 3000 बीघा जमीन दी गई है, वह सामान्य नहीं लगता।
Gems of Judiciary 👇
— Ganesh (@me_ganesh14) August 18, 2025
In Assam,
1 Bigha = 0.33 Acre
So 3000 Bigha = 990 Acre or 4 SqKM
Judge Sahab Claims 3000 Bigha or 4SqKM as whole district 🤦.
More funny is he doesn't have an iota of idea how much land does a Cement Factory & Mining need and they are our judges 😂. pic.twitter.com/A8k5huTK4S
सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हुआ तो इसे अडानी ग्रुप से जोड़कर देखा जाने लगा। दरअसल, अडानी ग्रुप का भी ऐसा ही एक प्रोजेक्ट जमीन को लेकर ही चर्चा में है। यहां सोशल मीडिया यूजर्स ने इन दोनों मामलों को मिक्स कर दिया। यही वजह रही कि सोमवार को ही अडानी ग्रुप की ओर से एक स्पष्टीकरण जारी किया गया। अडानी ग्रुप ने खुद को इस मामले के अलग बताया।
अडानी ग्रुप ने क्या कहा?
अपने स्पष्टीकरण में अडानी ग्रुप ने लिखा है, 'हमारे संज्ञान में आया है कि कई न्यूज रिपोर्ट, सोशल मीडिया पोस्ट में कोर्ट की सुनवाई की क्लिप शेयर हो रही है और दावा किया जा रहा है कि असम सरकार ने दीमा हसाओ में अडानी ग्रुप को सीमेंट प्लांट लगाने के लिए 3000 बीघा जमीन अलॉट की है। हम स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि ये मीडिया रिपोर्ट और संदर्भ आधारहीन और गलत हैं। महाबल सीमेंट से अडानी का नाम जोड़ना शरारतपूर्ण है। हम मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लोगों से अपील करते हैं कि पहले तथ्यों कों जांच लें तब दावे करें। इस तरह से गलत जानकारी फैलाना भ्रम पैदा करता है।'
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अब इस केस को समझिए
असम का दीमा हसाओ जिला जनजातीय बहुल है। इसकी सीमाएं मणिपुर और नागालैंड से लगती हैं। उमरांगसो इलाका सीमेंट कंपनियों की वजह से चर्चा है। यह शहर असम और मेघालय की सीमा के पास बसा हुआ है। जंगल और पहाड़ से भरा यह इलाका पहले भी कई कंपनियों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराता है और यहां खनन होता रहा है। यह वही जगह है जहां जून-जुलाई में खदानों में पानी भरने से कई लोग उनमें फंस गए थे और कुछ लोगों की मौत भी हो गई थी।
यहां यह जानना जरूरी है कि संविधान की छठी अनसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों का प्रशासन चलाने के लिए ऑटोनॉमस काउंसिल बनाई जाती हैं। ऐसी ही काउंसिल यहां भी है जिसका नाम है नॉर्थ कछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल (NCHAC)। हुआ कुछ यूं कि अक्तूबर 2024 में महाबल सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड को 2000 बीघा जमीन अलॉट की गई। नवंबर महीने में 1000 बीघा जमीन और दे दी गई। कुल मिलाकर 3000 बीघा जमीन। यह कंपनी मुख्य रूप से कोलकाता में रजिस्टर्ड है।
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बता दें कि NCHAC के अडिशनल सेक्रेटरी (राजस्व) ने जमीन अलॉट जारी करने का यह आदेश जारी किया था। इस आदेश में बताया गया है कि कंपनी एक सीमेंट प्लांट लगाएगी। रोचक बात यह भी है कि इसी महाबल सीमेंट कंपनी ने असम की सरकार के साथ 11 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने का MoU भी साइन किया है। यह MoU साइन किया गया, जमीन मिलने के 3-4 महीने बाद यानी फरवरी 2025 में हुए इन्वेस्टर समिट में। इन्वेस्टर समिट के समय कंपनी ने ऐलान किया था कि वह दीमा हसाओ में एक सीमेंट प्लांट लगाने जा रही है। यह कंपनी जेके लक्ष्मी सीमेंट की सब्सिडरी कंपनी है।
अब इसी जमीन आवंटन को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गई है। हाई कोर्ट में जो कुछ हुआ वह ऐसी ही दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान हुआ। जमीन आवंटन को चुनौती देने वाले लोग इसी क्षेत्र के निवासी हैं। उनका आरोप है कि उन्हें जबरन उनकी जमीन से हटाया जा रहा है। इस पर महाबल सीमेंट के वकील का कहना है कि विधिवत टेंडर की प्रक्रिया के बाद ही उन्हें यह जमीन 30 साल की लीज पर मिली है।
अडानी ग्रुप का नाम कैसे आया?
दरअसल, ऐसे ही एक और प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है। उस प्रोजेक्ट के लिए अडानी ग्रुप को उमरांगसो में ही 9000 बीघा जमीन अलॉट की गई है। इस मामले में हुई शिकायत के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) इस केस की जांच कर रहा है और डिस्ट्रिक्ट कमिनश्नर को भी इसी साल जून के महीने में नोटिस जारी किया गया था। आयोग ने डीसी से इस मामले में रिपोर्ट मांगी थी।
इस केस में भी कमोबेश वैसे ही आरोप हैं कि बिना उचित अनुमति लिए ही 9000 बीघा जमीन अलॉट कर दी गई। कई स्थानीय राजनीति दल मुद्दा उठा रहे हैं कि नागा, कारबी, दिमसा और अन्य आदिवासी समुदाय से आने वाले 14 हजार लोगों को यहां से विस्थापित किया जा सकता है।
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दोनों कंपनियों को एक ही इलाके में प्लांट लगाना है, दोनों ही कंपनियों को उसी क्षेत्र में जमीन अलॉट हुई है और कमोबेश एक जैसे ही आरोप हैं। विरोध भी लगभग एक जैसे ही आरोपों को लेकर हो रहा है, यही वजह है कि इन दोनों मामलों को मिक्स कर दिया गया और महाबल सीमेंट वाले मामले में अडानी ग्रुप का नाम भी आ गया और उसे स्पष्टीकरण देना पड़ा।
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