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शहबाज कठपुतली, आसिम मुनीर के हाथ में पाकिस्तान, अटकलें तेज

पाकिस्तान में क्या तख्तापलट होने वाला है, क्यों ऐसी आशंकाएं लगाई जा रही हैं, पढ़िए सीनियर पत्रकार डॉ. संजय पांडेय का विश्लेषण।

Pakistan Army

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और असीम मुनीर। (Photo Credit: Pakistan Army)

पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ सरकार को लेकर तख्तापलट की अटकलें इन दिनों मीडिया और राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ रही हैं। देश के प्रमुख पत्रकारों, संपादकों और राजनीतिक विश्लेषकों ने खुलकर इन संभावनाओं पर टिप्पणी की है। कुछ का मानना है कि सत्ता के गलियारों में एक बार फिर 'हाइब्रिड सिस्टम' का नया रूप आकार ले रहा है, जबकि सेना समर्थक इसे आंतरिक असंतोष और सैन्य प्रतिष्ठान की रणनीतिक पुनर्रचना से जोड़ रहे हैं। हाइब्रिड सिस्टम पाकिस्तान की राजनीति में वह व्यवस्था है, जिसमें सिविल सरकार दिखावे के लिए होती है, लेकिन असली सत्ता और निर्णय लेने की शक्ति सेना और खुफिया एजेंसियों के पास होती है।

कराची से इस्लामाबाद तक पाकिस्तानी समाचार चैनल और अखबारों में यह बहस तेज हो गई है कि क्या शाहबाज शरीफ की नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) सरकार अपनी पांच साल की संवैधानिक अवधि पूरी कर पाएगी या नहीं। प्रमुख टीवी चैनल जियो न्यूज, डॉन न्यूज और बोल टीवी जैसे मीडिया प्लेटफॉर्मों ने लगातार बहसों और रिपोर्टों में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। 

जियो न्यूज के वरिष्ठ संवाददाता हामिद मीर ने हाल ही में एक टीवी डिबेट में कहा, 'जिस तरह से कुछ अदृश्य ताकतें मौजूदा सरकार की निर्णय क्षमता को चुनौती दे रही हैं, उससे स्पष्ट है कि कुछ बहुत बड़ा पक रहा है। यह केवल विपक्ष की नाराजगी नहीं है, बल्कि सत्ता के अन्य केंद्रों की बेचैनी भी सामने आ रही है'। वहीं, डॉन न्यूज के राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन ने अपने नए लेख में लिखा है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था स्थिरता के बजाय अनिश्चितता की ओर बढ़ रही है। यह केवल तख्तापलट की बात नहीं बल्कि एक नए 'नैरेटिव' को स्थापित करने की कवायद भी हो सकती है।

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सत्ता के गलियारों में बेचैनी क्यों?

पाकिस्तान के रक्षा प्रतिष्ठान और सरकार के बीच पिछले कुछ हफ्तों से कई मसलों पर टकराव की खबरें आ रही हैं। आंतरिक सुरक्षा नीति, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में नई शर्तों और बलूचिस्तान में सैन्य ऑपरेशनों को लेकर मतभेद उभरकर सामने आए हैं। एक वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक और पूर्व ब्रिगेडियर सईद नजीर का कहना है कि शाहबाज सरकार की आर्थिक नीतियों से लेकर विदेशी कूटनीति तक, कई मामलों में सैन्य नेतृत्व संतुष्ट नहीं दिखता। यदि यह असंतोष गहराया तो हालात 90 के दशक की पुनरावृत्ति की ओर जा सकते हैं।

इमरान खान की पार्टी भी कर रही है हवा तेज

जेल में बंद तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) प्रमुख इमरान खान के समर्थकों ने हाल ही में सोशल मीडिया पर #रिजीम चेंज अगेन ट्रेंड चलाया है। पीटीआई नेताओं का दावा है कि देश में नई 'इंजीनियरिंग' की जा रही है, जिसमें संसद को बायपास कर कठपुतली सरकार लाने की तैयारी है। पीटीआई की सीनियर नेता शिरीन मजारी ने एक्स  पर लिखा जो सरकार जनता के वोट से नहीं बनी, वह कभी स्थिर नहीं रह सकती। जो शक्तियां शाहबाज शरीफ को लाई थीं, अब वही उनसे तंग आ चुकी हैं।

राष्ट्रपति और न्यायपालिका की चुप्पी रहस्यमयी

इस पूरे घटनाक्रम पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की चुप्पी को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि संवैधानिक संस्थाएं तटस्थ बनी रहती हैं तो सत्ता परिवर्तन का मार्ग सहज बन सकता है। पाक मीडिया, विश्लेषकों और राजनीतिक हलकों में जो संकेत मिल रहे हैं उनसे संकेत मिलता है कि सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच मौजूदा तनाव गहराता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान एक बार फिर अस्थिरता के उस मोड़ पर पहुंच सकता है, जहां से लोकतंत्र की डगर और कठिन हो जाएगी।

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लंच डिप्लोमेसी या सत्ता संकेत?

फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच लंच डिप्लोमैसी से पाकिस्तानी मीडिया और विश्लेषकों में यह धारणा गहराती जा रही है कि यह केवल एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़े भू-राजनीतिक समीकरण का हिस्सा है, जिसमें मौजूदा सिविल सरकार की भूमिका कमजोर होती दिख रही है। 

जियो न्यूज के एंकर और राजनीतिक विश्लेषक सलाहुद्दीन बाकर ने इस संदर्भ में टिप्पणी करते हुए कहा कि वाशिंगटन में ट्रंप  के साथ पाकिस्तानी फौज के प्रमुख की व्यक्तिगत बैठक इस बात का संकेत है कि कूटनीतिक निर्णयों का केंद्र अब इस्लामाबाद से हटकर रावलपिंडी शिफ्ट हो गया है। 

वहीं, एक्सप्रेस ट्रिब्यून में प्रकाशित एक कॉलम में लेखक खालिद मुहम्मद ने लिखा कि शाहबाज सरकार को दरकिनार कर सैन्य नेतृत्व की अमेरिका में बढ़ती कूटनीतिक सक्रियता बताती है कि वैश्विक ताकतें किससे बात करना चाहती हैं। यह सरकार के लिए खतरे की घंटी है।यह लंच सिर्फ डिप्लोमैटिक टेबल की बात नहीं बल्कि पाकिस्तान की सत्ता-संरचना में एक बार फिर सैन्य वर्चस्व के उभरते संकेतों की पुष्टि भी करता है।

फील्ड मार्शल आसिम मुनीर का बैकग्राउंड

जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तान के 17वें सेनाध्यक्ष हैं, जिन्हें नवंबर 2022 में पदभार सौंपा गया। वे पहले ऐसे सेनाध्यक्ष हैं जिन्होंने मदीना में हिफ्ज-ए-कुरआन (कुरआन कंठस्थ) किया और फिर सेना की सेवा में उच्च पद तक पहुंचे। मुनीर पाकिस्तानी सैन्य खुफिया एजेंसी एमआई (मिलिट्री इंटेलिजेंस) और आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) दोनों के प्रमुख रह चुके हैं। यह दुर्लभ योग्यता उन्हें सेना के भीतर खास प्रभावशाली बनाती है। 

वे ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (ओटीएस), मंगला से पास आउट हुए और फोर्स कमांड नॉर्दर्न एरिया (एफसीएनए) की कमान भी संभाल चुके हैं। रणनीतिक मामलों में सख्त और धर्मपरायण छवि रखने वाले मुनीर को सेना के भीतर अनुशासन, गुप्तचर नेटवर्क और भारत विरोधी नीति के पक्षधर अधिकारी के रूप में देखा जाता है। उनका कार्यकाल अब तक सिविल सरकार पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण और विदेश नीति में सेना की बढ़ती भूमिका के लिए जाना जा रहा है।

मुनीर की धार्मिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि

जनरल आसिम मुनीर सुन्नी मुस्लिम हैं और पाकिस्तान के एक मध्यमवर्गीय धार्मिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका परिवार मूलतः पंजाब प्रांत के झेलम या उसके आसपास के क्षेत्र से जुड़ा माना जाता है, जो लंबे समय से पाकिस्तान सेना का एक मजबूत भर्ती क्षेत्र है। उनके पिता एक धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्ति थे और परिवार में इस्लामी अनुशासन और शिक्षाओं को बहुत महत्व दिया जाता रहा है। उनकी छवि पाकिस्तानी सेना में एक धार्मिक, अनुशासित और विचारधारा प्रेरित अधिकारी की रही है। हालांकि वे सीधे तौर पर किसी कट्टर धार्मिक समूह से नहीं जुड़े हैं, लेकिन सेना के भीतर उन्हें मजहबी सोच वाले सख्त अफसर के रूप में देखा जाता है। 

मुनीर की निजी और पारिवारिक जानकारी को लेकर पाकिस्तान में कोई सार्वजनिक रूप से सत्यापित विवरण उपलब्ध नहीं है। पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों के पारिवारिक जीवन को सामान्यतः गोपनीय रखा जाता है और न ही उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर अपने पत्नी, बच्चों या पारिवारिक जीवन के बारे में कोई जानकारी साझा की है।

हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इक्का-दुक्का रिपोर्टों में यह उल्लेख मिलता है कि उनकी पत्नी भी एक धार्मिक और पारंपरिक पृष्ठभूमि से हैं और परिवार का जीवन काफी प्राइवेट और लो-प्रोफाइल है। उनके दो बच्चों  एक बेटा और एक बेटी  के होने की चर्चा कुछ ब्लॉग्स और यूट्यूब चैनलों में की गई है, लेकिन न तो उनके नाम, न उम्र और न ही उनकी शिक्षा या व्यवसाय के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी सामने आई है।

पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास

पाकिस्तान की राजनीतिक प्रणाली में सैन्य हस्तक्षेप एक स्थायी प्रवृत्ति रही है। 1947 में आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान में तीन बड़े सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं। पहला तख्तापलट 1958 में हुआ जब जनरल अयूब खान ने इस्कंदर मिर्जा को हटाकर सत्ता संभाली। इसके बाद 1977 में जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की लोकतांत्रिक सरकार को अपदस्थ कर दिया। तीसरा तख्तापलट 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में हुआ, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता से हटाकर खुद राष्ट्रपति पद संभाला।  इन तख्तापलटों के अलावा भी पाकिस्तान में कई बार 'नरम तख्तापलट' (सॉफ्ट कू) की स्थिति बनी है, जब लोकतांत्रिक सरकारें सीधे सेना द्वारा नहीं हटाई गईं, लेकिन उनकी शक्तियां सीमित कर दी गईं या उन्हें कार्य करने के लिए सैन्य स्वीकृति पर निर्भर रहना पड़ा। पाकिस्तान की राजनीति में सेना का प्रभाव अब भी बहुत गहरा है और हर संकट की घड़ी में रावलपिंडी (सेना मुख्यालय) की भूमिका निर्णायक मानी जाती है।


नोट: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय ने लिखा है।

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