न जाति का ठप्पा, न कोई दाग, प्रशांत किशोर का बिहार प्लान क्या है?
राजनीति
• PATNA 08 Jun 2025, (अपडेटेड 08 Jun 2025, 6:09 AM IST)
प्रशांत किशोर, बिहार की सबसे नई सियासी पार्टी के कर्ता-धर्ता हैं। जन सुराज पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रही है। वह दूसरों के लिए हमेशा चुनावी रणनीति तैयार करते रहे हैं, अब अपनी राजनीति के लिए उनकी पार्टी क्या कर रही है, पढ़ें रिपोर्ट।

जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर। (Photo Credit: PTI)
बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर नया प्रयोग कर रहे हैं। पुष्पम प्रिया चौधरी की द प्लूरल्स पार्टी के इतर जन सुराज की सियासी पकड़ ज्यादा मजबूत मानी जा रही है। प्रशांत किशोर को न तो जनता दल यूनाइटेड (JDU), न भारतीय जनता पार्टी (BJP) और न ही राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता हल्के में ले रहे हैं। सभी दल मुखर होकर भले ही उन्हें प्रमुख फैक्टर न मान रहे हों लेकिन राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर की मौजूदगी से इनकार नहीं कर रहे हैं।
30 मई को प्रशांत किशोर ने 'बिहार बदलाव यात्रा' के दौरान नीतीश कुमार को चुनौती दी है कि अगर वह एनडीए का चेहरा हैं तो उन्हें सीएम चेहरा घोषित किया जाना चाहिए। प्रशांत किशोर खुद को बिहार में इंडिया ब्लॉक और एनडीए से अलग तीसरे विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं। प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज का दावा है कि बिहार को बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने जमकर लूटा है, जन सुराज, बिहार की जनता के लिए नया विकल्प है।
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जन सुराज पार्टी मकसद क्या है?
जन सुराज पार्ट के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे हैं। उनका कहना है कि वे बिहार के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं। एक जनसभा के दौरान उन्होंने दावा किया था कि जन सुराज पार्टी का किसी भी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। उनकी पार्टी का दावा है कि बिहार को ऐसा राज्य बनाएंगे कि गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब के लोग बिहार में नौकरी करने आएं।
दूसरों को जिताया, खुद को जिता पाएंगे?
प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार के तौर पर देश में जाने जाते रहे हैं। साल 2012 से ही वह सियासी पार्टियों के लिए काम करते रहे हैं। साल 2012 में गुजरात और 2014 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी कैंपेनिंग की थी। वह पीएम को जिताने का क्रेडिट भी लेते रहे हैं। साल 2015 में बिहार में जेडीयू और आरजेडी के बीच महागठबंधन हुआ। बिहार में बीजेपी 58 सीटों पर सिमट गई।
नीतीश कुमार उनके काम से बेहद खुश हुए। उन्होंने अपनी पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया। पार्टी में नंबर 2 की भूमिका। लोग उन्हें नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी कहने लगे साल 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर नीतीश कुमार से अलग रुख होने की वजह से उन्हें पार्टी से बाहर की राह दिखाई गई।
प्रशांत किशोर ने इसके जवाब में 'बात बिहार की' कैंपेन की शुरुआत की थी। साल 2022 से बिहार में उन्होंने पैदल यात्रा शुरू की। उनका मकसद 3500 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकलना था। उनकी यात्रा के 665 दिन से ज्यादा हो गए थे। 2697 गांवों से ज्यादा अब तक वह यात्रा कर चुके हैं। यह यात्रा अब 5000 किलोमीटर पार कर चुकी है। उन्होंने अपनी रैली में बेरोजगारी, पलायन और महंगाई जैसे मुद्दे उठाए हैं।
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जन सुराज के सिद्धांत क्या हैं?
जन सुराज पार्टी ने 5 सिद्धांतों पर काम करने की बात कही है। पार्टी के अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्ष और नेतृत्व परिषद के सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष होगा। पार्टी चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तरह प्रक्रिया का उपयोग करेगी।
हर विधानसभा क्षेत्र से 5-6 उम्मीदवारों के नाम मार्च तक सार्वजनिक रूप से घोषित किए जाएंगे, और नवंबर तक जन सुराज अंतिम उम्मीदवार का नाम घोषित करेगा। पार्टी जनप्रतिनिधियों के लिए 'राइट टू रिकॉल' की मांग करना। सुराज पार्टी के आधिकारिक झंडे पर महात्मा गांधी के अलावा बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर भी होगी।
पार्टी ने मार्च में शुरुआती उम्मीदवारों और नवंबर तक सभी 243 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करने का वादा किया है। JSP ने ‘राइट टू रिकॉल’ (जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार) और अपनी झंडी पर गांधी व आंबेडकर की तस्वीरें लगाने का ऐलान किया है।
शुरुआती हार लेकिन कैसे होगा काम?
2024 में रामगढ़, बेलागंज, इमामगंज और तरारी में उपचुनाव हुए। उपचुनाव में जन सुराज पार्टी को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन पार्टी ने 10% वोट हासिल किए। किशोर ने इसे सकारात्मक माना। हालांकि, हार के बाद पूर्व सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव और मोनाजिर हसन ने पार्टी छोड़ दी। हार के बाद प्रशांत किशोर ने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया।
बिहार जीतने का प्लान क्या है?
प्रशांत किशोर ने बिहार में जातीय और धार्मिक समीकरण साधने की कोशिश की है। उन्होंने बिहार की आबादी को 5 वर्गों में बांटा है। ये वर्ग हैं-
- अगड़ी
- पिछड़ा
- अति गरीब
- मुस्लिम
- दलित
प्रशांत किशोर का तर्क है कि बिहार में सीटों का बंटवारा, जातिगत जनगणना के आधार पर होगा। बिहार में मुस्लिम आबादी 18-19 प्रतिशत है, इसलिए उन्हें 40 सीटें दी जाएंगी।
जन सुराज के वादे क्या हैं?
- शराबबंदी हटाकर, शराब का पैसा शिक्षा पर खर्च होगा
- सस्ता कर्ज दिया जाएगा
- बुजर्गों को 2 हजार रुपये पेंशन
- महिलाओं को आसान कर्ज
- मुस्लिमों को लुभाने में जुटे प्रशांत किशोर
जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी, मुस्लिमों को 18 फीसदी आरक्षण
बिहार में मुस्लिम आबादी 18 प्रतिशत है। लोकनीति-CSDS सर्वे के मुताबिक, पिछले तीन दशकों में मुस्लिम वोट महागठबंधन को ज्यादा मिले हैं। 2015 में RJD-JDU गठबंधन को 69% मुस्लिम वोट मिले, जबकि NDA को सिर्फ 6%। 2020 में RJD-कांग्रेस को 76% मुस्लिम वोट मिले। विश्लेषकों का मानना है कि NDA को मुस्लिम वोटरों का साथ मिलना मुश्किल है, जिसका फायदा JSP उठा सकती है। वजह वक्फ अधिनियम जैसे कुछ कदम हैं, जिन्हें अल्पसंख्यकों का एक तबका गलत मान रहा है।
RJD ने प्रशांत किशोर पर BJP की 'B-टीम' होने का आरोप भी लगाया है। इन आरोपों के जवाब में प्रशांत किशोर ने दलित नेता मनोज भारती को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। उनका कहना है कि उनकी उम्मीदवार चयन प्रक्रिया गांव, ब्लॉक और डिवीजन स्तर पर फीडबैक के आधार पर हो रही है।
प्रशांत किशोर की संस्था I-PAC जब किसी के चुनाव प्रचार का बेड़ा उठाती है, तब प्रचार का तरीका कुछ ऐसा ही होता है। अब बिहार में भी वही प्लानिंग दोहराई जा सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में होने की संभावना है। प्रशांत किशोर की पार्टी भले ही उपचुनाव में जीत न सकी लेकिन अब चुनावों में उनकी दमदार मौजूदगी को खारिज नहीं किया जा सकता है।
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