मुद्दे राहुल गांधी के, नाच रहा विपक्ष! 2024 के बाद ऐसा क्या बदल गया?
राजनीति
• NEW DELHI 13 Aug 2025, (अपडेटेड 13 Aug 2025, 7:05 AM IST)
कांग्रेस पूरी तैयारी के साथ सियासी जमीन पर उतर रही है। साल 2014 से अब तक कांग्रेस ने अपनी नीतियों में बड़े बदलाव किए हैं। कांग्रेस अब विपक्ष का एजेंडा तय कर रही है। इस एजेंडे से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को बड़े नुकसान हुए हैं।

विपक्षी दलों का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के खिलाफ प्रदर्शन। (Photo Credit: PTI)
दशकों तक देश की सत्ता में काबिज रही कांग्रेस पार्टी की स्थिति साल 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद चुनाव-दर-चुनाव बदहाल होती गई। नरेंद्र मोदी 'कांग्रेस मुक्त भारत' के संकल्प के साथ चुनावी समर में उतरे थे, जिसमें वह कई साल कामयाब भी रहे। कांग्रेस ने अपना जनाधार खोया, कई राज्यों में सरकारें गंवाई। कांग्रेस का जन समर्थन कम होता गया, वोट शेयर घटा, राहुल गांधी हर तरफ आलोचना के शिकार भी हुए। जहां जीतते, जीत का क्रेडिट स्थानीय नेतृत्व को मिलता, जहां हारते, सारा क्रेडिट उन्हें मिलता। कांग्रेस की तरफ से हर बार राहुल गांधी को विजेता के तौर पर पेश किया गया लेकिन उनके बारे में आम नजरिया बना कि वह असफल राजनेता हैं।
आलोचना और तारीफों के द्वंद्व में जूझते राहुल गांधी के लिए साल 2024 किसी वरदान की तरह साबित हुआ। कांग्रेस पार्टी जीती तो नहीं लेकिन एक बार फिर साबित हुआ कि भारत 'कांग्रेस मुक्त' नहीं, 'कांग्रेस युक्त' ही रहेगा। कभी सत्ता में तो कभी विपक्ष के तौर पर। साल 2024 में किसी भी पार्टी के पास विपक्ष का दर्जा नहीं था क्योंकि भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में थी।
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लगातार 10 साल बाद, पहली बार साल 2024 में कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिला और लोकसभा को नेता विपक्ष मिला। आखिर यह सब कैसे हो पाया, हाशिए पर चली गई कांग्रेस ने कैसे खुद को दोबारा प्रासंगिक बनाया, अब कैसे कांग्रेस विपक्ष का एजेंडा तय कर रही है, धुर विरोधी पार्टियां भी कैसे एकमत होकर साथ दे रही हैं, इसे विस्तार से समझते हैं।
2 दशक में कैसे गिरा-उठा कांग्रेस का ग्राफ देखिए
- 2004 लोकसभा चुनाव: वोट शेयर 26.53%, 145 सीटें
- 2009 लोकसभा चुनाव: वोट शेयर 28.55%, 206 सीटें
- 2014 लोकसभा चुनाव: वोट शेयर 19.52%, 44 सीटें
- 2019 लोकसभा चुनाव: वोट शेयर 19.70%, 52 सीटें
- 2024 लोकसभा चुनाव: वोट शेयर 21.92%, 99 सीटें

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सियासत की अमरबेल कैसे बनी है कांग्रेस?
थॉमस ऐल्वा एडीसन:-
मैं असफल नहीं हुआ, मैंने सिर्फ मैंने सिर्फ 10,000 तरीके खोजे जो काम नहीं करते।
कांग्रेस की राजनीति पर जो लोग नजर साल 2024 से नजर रख रहे हैं, उनका भी यही मानना है। कांग्रेस ने इन 10 वर्षों में कई ऐसे मुद्दे उठाए, जो कारगर साबित नहीं हुए। भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी की छवि चुनावों में 'युवराज' और परिवारवादी वारिस के तौर पर पेश किया, जिसका असर भी जमीन पर दिखा। कांग्रेस लगातार 10 साल से सत्ता में थी। दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के आरोप लगे। तब एक सीएजी रिपोर्ट आई, जिसने खूब सुर्खियां बिटोरी। कांग्रेस की छवि, भ्रष्टाचारी पार्टी के तौर पर एनडीए गठबंधन की पार्टियों ने पेश किया।
यूपीए-2 की सरकार में 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले सामने आए। इन घोटालों का सच आज तक सामने नहीं आ पाया लेकिन कांग्रेस की छवि को तगड़ा नुकसान पहुंचा। राहुल गांधी जनता को लुभा पाने में असफल रहे। उन्हें विपक्ष और कांग्रेस का नेता पेश करने की कोशिश हुई लेकिन यह जनता को रास नहीं आई। साल 2019 में भी यही मुद्दे छाए रहे, जो मुद्दे कांग्रेस उठाती रही, उसे लोग नकारते रहे। 2014 से लेकर 2019 तक, कांग्रेस इन्हीं आरोपों में घिरी रही। इस बीच कांग्रेस के हाथ से कई राज्य फिसले।
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2024 के विधानसभा चुनावों से पहले तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस दोगुनी सीटें हासिल कर लेगी। कांग्रेस ने पूरे चुनाव में संविधान के मुद्दे पर जोर दिया। कांग्रेस ने हर जनसभा में यह कहा कि भारतीय जनता पार्टी संविधान बदलना चाहती है। कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया। बीजेपी ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों से नफरत करने वाली पार्टी के तौर पर पेश की गई। कांग्रेस ने नारा दिया कि बीजेपी संविधान विरोधी है, संविधान को खत्म कर देगी, आपके नागरिक अधिकारों को छीन लेगी। कांग्रेस ने 2019 की ही तर्ज पर 'राफेल घोटाले' का भी नारा दिया। कांग्रेस ने संघ और उग्र हिंदुत्व के मुद्दे पर भी जमकर घेरा। नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों को लेकर भी सवाल खड़े किए।
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राहुल गांधी ने अपने कमजोर पड़े संगठन को मजबूत करने के लिए कई राज्यों का दौरा किया था। भारत जोड़ो यात्रा, न्याय यात्रा, इंडिया गठबंधन के साथ पूरे समर्पण से जुड़ना, संघटनात्मक सुधार और राहुल गांधी का खुद जमीन पर उतरना, कई ऐसे वजहें रहीं जिनकी वजह से कांग्रेस की छवि मजबूत हुई।

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जनता तक उन मुद्दों को पहुंचाने में कामयाब रही, जिन्हें बीजेपी के एक बड़े वर्ग ने नकार दिया था। बीजेपी ने राहुल गांधी के पूरे कैंपेन को हल्के में लिया था, जबकि वह अपनी जनसभाओं को लेकर बेहद आश्वस्त थे। उन्होंने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का मुद्दा उठाया, सामाजिक न्याय और जाति आधारित जनगणना की मांग उठाई, बेरोजगारी और महंगाई, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे उठाए।
राहुल गांधी ने युवाओं के लिए उन्होंने अग्नि पथ योजना का मुखर विरोध किया। उन्होंने चुनाव आयोग को घेरा, वोट चोरी और चुनावी पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े किए। संयोग से देश में ये सारे मुद्दे चल रहे थे और राहुल गांधी की बात से ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने सहमति जताई। जिनके साथ उनका गठबंधन नहीं रहा, वे भी ऐसे ही मुद्दे उठाते रहे। राहुल गांधी का मुद्दा, 'कॉमन मुद्दा' बना और छोटे सियासी दलों ने उन्हें एक छत्र अपना नेता माना। नतीजा यह हुआ कि वह अब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, उनकी कई मांग, सरकार, चाहे-अनचाहे पूरा कर रही है। जातिगत जनगणना, वक्फ, कृषि संशोधन विधेयक से लेकर संविधान तक, राहुल गांधी ने कई मुद्दों पर बीजेपी को घेरा, दबाव में बीजेपी ने अपने स्टैंड से इतर फैसले लिए। यह सिर्फ राहुल गांधी की वजह से नहीं हुआ, जन भावनाएं भी अहम फैक्टर रहीं।
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2024 में कांग्रेस के कैंपेन का असर क्या हुआ?
कांग्रेस पार्टी ने 99 सीटें हासिल कीं। 100 का नंबर भले ही कांग्रेस नहीं छू पाई लेकिन गठबंधन के तौर पर कांग्रेस मजबूत स्थिति में आई। लगातार 10 साल की सत्ता में कई जगह बीजेपी की सीटें कम हो गईं। यूपी में बीजेपी ने दहाई के अंकों में सीटें गंवाई। 2014 में बीजेपी ने 71 सीटों पर जीत हासिल की थी, 2019 में 62 सीटें और 2024 में सिर्फ 33 सीटों पर बीजेपी सिमट गई। इसका असर यह हुआ कि बीजेपी बहुमत से दूर हो गई। लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 270 है, बीजेपी के पास सिर्फ 240 सीटें हैं। जेडीयू और टीडीपी के गठबंधन की वजह से बीजेपी सत्ता में है। बीजेपी के 400 पार का नारा धरा का धरा रह गया, विपक्ष अपने नैरेटिव में कामयाब रहा। कामयाबी का ताज कांग्रेस के नाम रहा।

अब ऐसा क्या हुआ कि राहुल गांधी के मु्द्दों को अपना मुद्दा मान रहा विपक्ष?
- तैयारी के साथ जमीन पर उतर रही कांग्रेस: राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और उनकी टीम पूरी तैयारी के साथ सियासी जमीन में उतर रही है। संसद में कांग्रेस ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन और 'वोट चोरी' वाले मुद्दे पर चुनाव आयोग को ऐसे घेरा है कि चुनाव आयोग के अधिकारियों को सफाई देते नहीं बन रही है। चुनाव आयोग राहुल गांधी के उठाए गए मुद्दों को एक सिरे से नकार रही है लेकिन विपक्षी दल राहुल गांधी के साथ आ गए हैं। राहुल गांधी ने मतदाता सूची में फर्जी नाम और वोट चोरी के आरोप उठाए, जिसे विपक्ष ने लोकतंत्र के लिए खतरा मानकर समर्थन दिया।
- लोकतंत्र और संविधान के रक्षा का एजेंडा: कांग्रेस ने अपने एजेंडे को सार्वजनिक तौर पर ऐसा रखा है, जिसे दूसरे दल काट ही न पाएं। राहुल गांधी बार-बार संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर खतरे का मुद्दा उठा रहे हैं। वह हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हैं। दक्षिण के लिए अलग, पूर्वोत्तर के लिए अलग और पश्चिम के लिए राहुल गांधी ने अलग राजनीति तय की है। विरोधी दल भी कई मुद्दों पर उनसे सहमति जता रहे हैं। राहुल गांधी ने दावा किया कि SIR में धांधली हुई है, कुछ जगहों पर एक ही आदमी के 2 से ज्यादा EPIC नंबर जारी हो गए हैं। इन सब मुद्दों पर विपक्ष राहुल गांधी से एकमत हुआ। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से लोहा लेने वाली तृणमूल कांग्रेस भी, कई मुद्दों पर राहुल गांधी के साथ-साथ नजर आ रही है।
- इंडिया ब्लॉक को एक कर गए राहुल गांधी: राहुल गांधी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में कामयाब हुए हैं। राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट, एनसीपी (शरद गुट) और शिवसेना (यूबीटी) जैसी पार्टियां राहुल गांधी के तय किए गए एजेंडे पर काम कर रही हैं। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची संशोधन में हुए घालमेल के बीच महाराष्ट्र में चुनाव हुए, बीजेपी बेइमानी से जीत गई। अब बिहार में भी ऐसा हो रहा है। राहुल गांधी के इस मुद्दे पर सारी पार्टियां एक मत होकर साथ दे रही हैं।
SIR के खिलाफ प्रोटेस्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ। (Photo Credit: PTI) - जनहित के मुद्दे उठा रही कांग्रेस: कांग्रेस जनहित के मुद्दे उठा रही है। बेरोजगारी, महंगाई, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर राहुल गांधी की सक्रियता ने विपक्ष को जनता के बीच पैठ बनाने में मदद की है। कांग्रेस से किनारा करने वाले लोग भी कांग्रेस से जुड़ने लगे हैं।
- आंदोलन से सत्ता की राह देख रहे राहुल गांधी: आजादी के बाद भी इस देश में आंदोलन हुए हैं। आंदोलनों के बाद के चुनावों पर, आंदोलन का असर नजर आया है। अन्ना आंदोलन के बाद कांग्रेस की छवि धूमिल हुई थी। अब राहुल गांधी हिंसा, आगजनी, विवाद या कोई भी ज्वलंत मुद्दा हो, आंदोलन करने पहुंचते हैं। बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद वह कश्मीर भी पहुंचे थे।
- चुनावी मजबूरी भी है राहुल गांधी का समर्थन: राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं। वह लगातार चुनाव आयोग की वफादारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं। विपक्ष को यह बैठे-बिठाए एक बडा़ मुद्दा मिल गया है। अब विपक्ष पहले की तरह अलग-थलग पड़कर अपने-अपने मुद्दे नहीं उठा रहा है। जो मुद्दे कांग्रेस उठा रही है, बाकी पार्टियां उस पर अपना समर्थन दे रही हैं। चुनाव आयोग में धांधली का डर दिखाकर कांग्रेस, एक बार फिर 2024 वाला एजेंडा सेट करना चाहती है।

क्या राहुल गांधी के हर मुद्दे पर एक है विपक्ष?
नहीं। कांग्रेस जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट और अमेरिका में गौतम अदाणी पर लगे रिश्वतखोरी के आरोपों का जिक्र करके बीजेपी को घेरने की कोशिश की। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गौतम अदाणी ने न्यूयॉर्क में धोखाधड़ी की है, सोलर एनर्जी कॉन्ट्रैक्ट के लिए 2200 करोड़ रुपये की रिश्वत ऑफर की। संसद में राहुल गांधी ने यह मुद्दा उठाया। सपा ने समर्थन दिया। सीपीआई (एम) सांस एलामारम करीम ने राज्यसभा में चर्चा के लिए रूल 267 के तहत नोटिस भी दिया। कई दलों ने समर्थन दिया लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने दूरी बनाई। तृणमूल कांग्रेस ने साफ तौर पर कांग्रेस से कह दिया कि पार्टी, अदाणी मुद्दे पर संसद को ठप करने के लिए कांग्रेस का साथ नहीं देगी। टीएमसी की प्राथमिकता, बंगाल के स्थानीय मुद्दे हैं।
कब-कब राहुल गांधी ने बीजेपी का तगड़ा नुकसान किया?
- 2024 लोकसभा चुनाव: राहुल गांधी और विपक्ष ने संविधान, जाति और हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी के घेरा। दावा किया गया कि बीजेपी अगर तीसरी बार जीती तो संविधान बदलेगी। राफेल को घोटाला बताया, चुनाव आयोग को पक्षपाती बताया, संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जे की बात कही।
नतीजा: बीजेपी को 63 सीटों का नुकसान हुआ, 240 सीटें बचीं, प्रचंड बहुमत और 400 पार का नारा धरा का धरा रह गया। - 2024 झारखंड विधानसभा चुनाव: झारखंड में भी राहुल गांधी के नैरेटिव ने जलवा दिखाया। वह पूरे कैंपेन में हेमंत सोरेन के पीछे-पीछे रहे। वजह यह थी कि वह नहीं चाहते थे कि उन पर भी आदिवासी विरोधी होने का टैग लगे। हेमंत सोरेन आदिवासी नेता हैं। एक तरफ बीजेपी जहां बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे मुद्दों में उलझी थी, इंडिया ब्लॉक ने मैयां सम्मान योजना पर फोकस किया, आदिवासियों पर फोकस किया। राहुल गांधी ने बीजेपी पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाया, हेमंत सोरेन के जेल प्रकरण का मुद्दा उठाया, सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप बीजेपी पर लगाया।
नतीजा: जेएमएम ने 34 सीटें हासिल कीं, कांग्रेस के पास 16 सीटें आईं, आरजेडी ने 4 सीटें जीत लीं, सीपीआई (एमएल) (एल) ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी सिर्फ 21 सीटों पर सिमट गई।
SIR के मुद्दे पर एनसीपी (शरद गुट) की सांसद सुप्रिया सुले के साथ प्रदर्शन करते सांसद। (Photo Credit: PTI) - 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव: भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को मजबूत किया। बीजेपी ने 66 सीटें खोईं, कांग्रेस को 135 सीटें मिलीं। राहुल गांधी ने 5 वादे किए थे। गृह ज्योति, गृह लक्ष्मी, अन्न भाग्य, युवा निधि और शक्ति योजना के वादे ने कांग्रेस को लाभ पहुंचा। उन्होंने तत्कालीन बीजेपी सरकार पर जमकर हमला किया था। उन्हें बीजेपी पर 40 फीसदी रिश्वत लेने का आोरप लगाया, बीजेपी को किसान विरोधी बताया, बेरोजगारी और महंगाई पर घेरा, सामाजिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया।
नतीजा: बीजेपी दक्षिण का इकलौता दुर्ग भी गंवा बैठी। - 2022 हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव: राहुल के स्थानीय मुद्दों पर फोकस से बीजेपी को 15 सीटों का नुकसान हुआ। कांग्रेस को 40 सीटें मिलीं। बीजेपी के पास सिर्फ 25 सीटें हैं। राहुल गांधी ने पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का वादा किया, उन्होंने रोजगार देने का वादा किया। बीजेपी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। बीजेपी की आपसी कलह को भी कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया। हिमाचल प्रदेश में वैसे भी हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज रहा है।
नतीजा: हिमाचल प्रदेश की सत्ता बीजेपी के हाथों से फिसल गई।
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