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बिहार में वोटबंदी, चुनाव आयोग पर इंडिया ब्लॉक के भड़कने की पूरी कहानी

इंडिया ब्लॉक का संयुक्त रूप से कहना है कि बिहार में स्पेशल इंटेसिव रिवीजन नहीं होना चाहिए। यह लाखों लोगों को उनके मताधिकार से वंचित कर देगा।

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बिहार में इंडिया ब्लॉक की बैठक। (Photo Credit: PTI)

बिहार में चुनाव आयोग पर इंडिया ब्लॉक ने वोटबंदी का आरोप लगाया है। इंडिया ब्लॉक की पार्टियों के दिग्गज नेताओं ने चुनाव आयोग से मुलकात की है और अपनी चिंताओं के बारे में विस्तार से बताया है। इंडिया ब्लॉक का कहना है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग जिन प्रक्रियाओं को करा रहा है, उसकी वजह से राज्य के करीब 2 करोड़ वोटर, अपना वोट डालने का अधिकार तक खो सकते हैं। कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया, अब बिहार में चुनाव आयोग की वोटबंदी भारत के लोकतंत्र को तहस-नहस कर देगी।


कांग्रेस, समाजवादी पार्टी(SP), राष्ट्रीय जनता दल(RJD), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और दलों के नेताओं ने चुनाव आयुक्तों के साथ मुलाकात की। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले किए जा रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर आपत्ति जताई। इंडिा गठबंधन में शामिल दल विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया या स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) मुखर होकर विरोध कर रहे हैं। बिहार में यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। इसे असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी लागू किया जाना है, जहां अगले साल चुनाव होने हैं।

क्यों डरा हुआ है इंडिया ब्लॉक?

कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा है कि विपक्ष की चिंता है कि करोड़ों लोग वोटिंग से ही बाहर हो जाएंगे। बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं में से कई लोग, जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, प्रवासी और गरीब लोग, इतने कम समय में अपने और माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र चुनाव अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं होंगे। उन्होंने यह दावा भी किया कि वे लोग मतदाता सूची से अपने नाम हटाए जाने को चुनौती नहीं दे पाएंगे, क्योंकि तब तक चुनाव शुरू हो जाएंगे और जब चुनाव जारी हों तो अदालतें चुनौतियों पर सुनवाई नहीं करतीं।

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'नोटबंदी के बाद वोटबंदी', विपक्ष के डरने की वजह समझिए

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी इसे लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री की नोटबंदी ने हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया। एसआईआर को देखकर लग रहा है कि बिहार और अन्य राज्यों में निर्वाचन आयोग की 'वोट बंदी' हमारे लोकतंत्र को नष्ट कर देगी। हमने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिरी बार संशोधन 2003 में हुआ था और 22 वर्षों में 4-5 चुनाव हो चुके हैं, क्या वे सभी चुनाव त्रुटिपूर्ण थे। 2003 में एसआईआर आम चुनावों से एक वर्ष पहले और विधानसभा चुनावों से दो वर्ष पहले आयोजित किया गया था।'

बिहार में एकजुट इंडिया ब्लॉक ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाए हैं। (Photo Credit: PTI)

 



जयराम रमेश, कांग्रेस महासचिव:-
अधिकतम एक या दो महीने की अवधि में, आयोग भारत के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य बिहार में चुनावी पुनरीक्षण अभियान चला रहा है, जहां लगभग आठ करोड़ मतदाता हैं। इस तरह मताधिकार से वंचित करना और अधिकारहीन करना संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। भारत में 1950 में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार दिया गया, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे तथाकथित उन्नत देशों को यह 1924 और 1928 में ही मिल गया था। आज, हर वोट मायने रखता है। आप गलत तरीके से किसी मतदाता को हटा दें या गलत तरीके से जोड़ दें, इससे समान अवसर नहीं मिलेंगे। इससे चुनाव प्रभावित होते हैं, इससे लोकतंत्र प्रभावित होता है। चुनाव और लोकतंत्र संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं, और ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी संविधान संशोधन से मूल ढांचा प्रभावित होता है तो वह संशोधन भी असंवैधानिक है।


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किन बातों पर जोर दे रहा है विपक्ष?

अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'पहली बार, हमें आयोग में प्रवेश के लिए नियम बताए गए। पहली बार हमें बताया गया कि केवल पार्टी प्रमुख ही आयोग जा सकते हैं। इस तरह के प्रतिबंध का मतलब है कि राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग के बीच जरूरी संवाद नहीं हो सकता।' हमने एक सूची दी थी, किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को अनुमति नहीं दी गई थी। पार्टियों को केवल दो लोगों को अधिकृत करने के लिए मजबूर करना दुर्भाग्यपूर्ण है।'

 


अभिषेक सिंघवी, कांग्रेस नेता:-
आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि बिहार की बहुत ही विविध मतदाता आबादी, पिछड़े, बाढ़ प्रभावित, गरीब, एससी, एसटी, वंचित या यहां तक ​​कि प्रवासी अगले दो महीने दर-दर भटककर अपने और अपने पिता/माता का जन्म प्रमाण पत्र हासिल कर सकते हैं। पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता रहा है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि आपको वोटर नहीं माना जाएगा, अगर आपके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा। एक श्रेणी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज होना चाहिए, जिनका जन्म 1987-2012 के बीच हुआ होगा। ऐसे में प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग होंगे, जिन्हें इन कागजात को जुटाने के लिए महीनों की भागदौड़ करनी होगी।

 

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बिहार कांग्रेस की चिंता क्या है?

भाषा की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश कुमार ने आरोप लगाया कि पुनरीक्षण का फैसला आयोग का तुगलकी फरमान है। उन्होंने कहा, 'हमें हैरानी हो रही है कि चुनाव आयोग, हमारी बात सुनने को तैयार नहीं था। चर्चा के दौरान आयोग सिर्फ अपनी बातें कहने में व्यस्त रहा और हमें पुनरीक्षण की प्रक्रिया समझाता रहा।' उन्होंने बिहार से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के लिए बाहर होने का उल्लेख किया और दावा किया कि आयोग ठान बैठा है कि वह बिहार में 20 प्रतिशत वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करके रहेगा।

RJD की चिंता क्या है?

RJD नेता मनोज झा ने सवाल किया कि क्या यह कवायद लोगों को मताधिकार से वंचित करने के बारे में है? उन्होंने कहा, 'क्या आप बिहार में संदिग्ध मतदाताओं को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं?

 

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लेफ्ट की चिंता क्या है?

सीपीआई (माले) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, 'बिहार में 20 प्रतिशत लोग काम के लिए राज्य से बाहर जाते हैं। चुनाव आयोग कहता है कि आपको सामान्य निवासी बनना होगा। इसलिए वे प्रवासी श्रमिक बिहार में मतदाता नहीं हैं।'  बिहार में चुनाव आयोग पर वहां की सियासी पार्टियां ही भड़क गई हैं। 

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