• SRINAGAR 03 Jun 2025, (अपडेटेड 03 Jun 2025, 1:55 PM IST)
खीर भवानी मेला का आयोजन, हर साल ज्येष्ठ अष्टमी को होता है। जम्मू और कश्मीर के 5 अलग-अलग मंदिरों में कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग 'रागन्या देवी' की आराधना करते हैं। पढ़ें इस मेले से जुड़ी हर बात।
खीर भवानी मंदिर, गंदेरबल के तुलमुल गांव मे है। (Photo Credit: Social Media)
जम्मू और कश्मीर में खीर भवानी मेले की शुरुआत हो चुकी है। श्रीनगर के पास तुलमुल गांव में स्थित इस मंदिर के दर्शन करे हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंच रहे हैं। जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला भी मेले में पहुंचे और उन्होंने कहा कि यह मेला, सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी पहुंचे और उन्होंने वहां मंदिर में पूजा-अर्चना की। कश्मीरी पंडितों के लिए यह मेला, उनकी पहचान से जुड़ा है।
जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल ने मंगलवार को कहा, 'मैं सभी श्रद्धालुओं का खीर भवानी मंदिर में स्वागत करता हूं। प्रशासन ने अच्छा इंतजाम किया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आए हैं। कश्मीरी पंडितों का समुदाय भी यहां पहुंचा है। लोग मेले में हिस्सा ले रहे हैं। मैंने खीर भवानी देवी से कश्मीर की शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना की है।'
खीर भवानी मेला खास क्यों है? खीर भवानी मेला कश्मीर घाटी से विस्थापित 60 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों के मिलने-मिलाने का अहम अवसर है। यह मंदिर श्रीनगर के तुलमुल गांव में है। यह मंदिर देवी रागन्या को अर्पित है, उनका एक नाम खीर भवानी भी है। जून के महीने में ज्येष्ठ अष्टमी को इस मेले का आयोजन होता है। भक्त मंदिर में खीर और दूध चढ़ाते हैं।
खीर भवन मंदिर में उमड़े श्रद्धालु। (Photo Credit: PTI)
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि मंदिर में विराजमान भगवती, भक्तों पर खीर चढ़ाने से प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। रागन्या देवी भी, देवी दुर्गा का एक रूप मानी जाती हैं। खीर भवानी मेले के दौरान कश्मीरी पंडित कुल 5 मंदिरों में जुटते हैं। श्रद्धालु गंदेरबल के तुलमुल, कुलगाम के मंजगम और देवसर, अनंतनाग के लोगरीपोरा और कुपवाड़ा के टिक्कर मंदिरों का दर्शन करते हैं। इस दौरान मंदिर में हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
कब लगता है खीर भवानी का मेला? हर साल ज्येष्ठ अष्टमी को इस मेले का आयोजन होता है।
खीर भवानी उत्सव का इतिहास क्या है? तुलमुल गांव में खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडित समुदाय का अहम तीर्थ स्थल माना जाता है। 19वीं सदी में महाराजा रणबीर सिंह ने इसका पुनर्निमाण कराया था। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि रागन्या देवी ने यहां खीर के रूप में अवतार लिया था। मंदिर के झरने में उनके अवतार की मान्यता मानी जाता है। ऐसी किवदंति है कि मंदिर का पानी चमत्कारी है, खीर भवानी मेले के दौरान पानी का रंग बदल जाता है।
खीर भवानी मंदिर। (Photo Credit: Social Media)
पानी के रंग से क्या संकेत मिलता है? स्थानीय लोगों की मान्यत है कि खेर भवानी मंदिर के झरने के पानी का रंग काला और लाल हो जाता है। अगर पानी साफ है तो इसका मतलब है कि शांति रहेगी। अगर पानी काला है तो संकट की स्थिति है और अगर लाल है तो युद्ध के आसार बन सकते हैं।|
मेले के दौरान क्या होता है? मेले में आरती और हवन जैसे अनुष्ठान होते हैं। सुबह की आरती में भक्त दीप जलाकर रागन्या देवी की उपासना करते हैं। हवन में देवी मां को घी, जड़ी-बूटियां और पवित्र लकड़ियों से यज्ञ होता है। मान्यता है कि देवी इससे प्रसन्न होती हैं।
खीर भवानी मंदिर। (Photo Credit: Social Media)
मेले में क्या-क्या होता है? यह मेला कश्मीरी संस्कृति की झलक भी दिखाता है। स्थानीय कलाकार यहां संतूर, सितार और तबला की धुनों पर नाचते हैं। यहां कश्मीर का पारंपरिक नृत्य होता है। मेले के आसपास कश्मीरी व्यंजनों का लुत्फ लेने भी लोग आते हैं। कश्मीर में व्यापार के नजरिए से भी यह बेहद असम है। स्थानीय लोग पश्मीना शॉल, कालीन और स्थानीय कलाकृतियों को बेचते हैं।
खीर भवानी में पूजा-अर्चना के लिए जाती महिला। (Photo Credit: PTI)
कश्मीरी पंडितों के लिए यह मेला 'महाकुंभ' क्यों है? कश्मीर पंडित समुदाय के लिए यह मेला उनकी पहचान से जुड़ा है। 1990 के दशक में जब कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था, बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अपनी पहचान खोई थी, उन्हें घर छोड़कर भागना पड़ा है। कश्मीरी पंडित समुदाय इस मेले को अपनी पहचान से जोड़कर देखता है।