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बिहार: गठबंधन से आगे कभी क्यों नहीं निकल पाई BJP? पूरी कहानी

भारतीय जनता पार्टी की 10 से ज्यादा राज्यों में पूर्ण बहुमत की सरकार है। सहयोगी दलों के साथ 21 राज्यों में सरकार है। जब-जब बीजेपी का बिहार में नीतीश कुमार से अनबन हुआ, पार्टी को सत्ता से बाहर जाना पड़ा। आखिर क्यों बीजेपी यहां अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई, समझते हैं।

Bihar Assembly Elections 2025

चिराग पासवान, तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (Photo Credit: PTI)

भारतीय जनता पार्टी कभी बिहार में अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकी। साल 1951 में शुरू हुए बिहार विधानसभा के चुनावी इतिहास में ऐसे कई मौके आए जब कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई लेकिन बीजेपी के हाथ यह उपलब्धि कभी नहीं लग सकी। साल 1980 में बीजेपी पहली बार अस्तित्व में आई थी। बिहार में बीजेपी ने 246 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, 21 सीटों पर जीत हासिल की थी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 135 में से 23 सीटें मिली थीं। 

6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ। बिहार में इसी साल चुनाव हुए। बीजेपी ने 246 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। पहले ही चुनाव में 21 सीटों पर जीत हासिल की। CPI 23 और कांग्रेस ने 169 सीटों पर जीत हासिल की। 1980 में भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई। बिहार में बीजेपी ने 246 सीटों पर प्रत्याशी उतारे 21 सीटें जीत लीं। सीपीआई को 135 में 23 सीटें मिलीं, कांग्रेस 169 सीटों पर काबिज थी। यह वही दौर था जब बिहार में कांग्रेस का दबदबा था। साल 1990 के दशक की शुरुआत हुई और एनडीए गठबंधन की ओर बीजेपी बढ़ी तो जनाधार बढ़ा।  

बिहार में कैसा था BJP का शुरुआती सफर?

साल 1980 में जनसंघ का रूप बदला। बीजेपी, संघ के पुनर्जन्म के तौर पर जानी गई। राष्ट्रीय स्वंय सेवक और जनसंघ की मेहनत का लाभ बीजेपी को मिला और नई नवेली पार्टी को बिहार में 21 सीटें मिल गईं। बिहार की राजनीति में कांग्रेस और समाजवादी-वामपंथी विचारधारा वाली पार्टियां मजबूत थीं। साल 1985 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दमखम से चुनाव लड़ा। बीजेपी की विचारधारा हिंदुत्व तय हो चुकी थी। बिहार में राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन 1984 से ही शुरू हो चुका था। बिहार के हिंदू मतदाताओं में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ने लगी। सवर्ण और मध्यम वर्ग के हिंदू बीजेपी से जुड़ने लगे। बीजेपी को इस चुनाव में 16 सीटें मिलीं। 

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कैसे बिहार में उभरी बीजेपी?

साल 1980 के दशक के मध्य में बीजेपी हिंदुत्व को लेकर बेहद मुखर हो गई। बीजेपी को पार्टी ने विपक्षी एकता का लाभ मिली। वीपी सिंह की जनता दल की लहर थी। बीजेपी को फायदा भी मिला। साल 1990 से 1995 तक, बीजेपी बिहार की लोकप्रिय पार्टी बन गई थी। व्यापक जनाधार तैयार हुआ। लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। बिहार के हिंदू वोटर एक हुए। ओबीसी और सवर्ण समुदाय के लोगों का बीजेपी को समर्थन मिला। चुनाव हुए तो 1990 में बीजेपी ने 39 सीटों पर जीत हासिल की। यह अब तक की सबसे बड़ी सफलता थी। लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में इसी साल जनता दल ने सत्ता हासिल की। बीजेपी विपक्ष में मजबूत स्थिति में थी।


गठबंधन की राह पर कैसे बढ़ी बीजेपी?

बीजेपी ने बिहार में गैर कांग्रेसी और गैर जनता दलों को एकजुट किया। 1990 के दशक तक, जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के सहारे बीजेपी ने आगे बढ़ने का फैसला किया। बीजेपी की पहुंच, गैर यादव और मुसलमान मतदाताओं तक पहुंचने लगा। साल 1995 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने समता पार्टी के साथ गठबंधन में कुल 41 सीटें हासिल कर लीं। यह गठबंधन लालू यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ मजबूत विकल्प था। बीजेपी ने सवर्ण, ओबीसी, और शहरी मतदाताओं का मजबूत समर्थन हासिल किया। साल 2000 के विधानसभा चुनाव तक, बीजेपी ने पूरे बिहार में पांव पसार लिया था। आरजेडी सत्ता में रही, बीजेपी-समता गठबंधन ने 67 सीटें हासिल कीं लेकिन बीजेपी को 39 सीटें मिलीं। यह गठबंधन अब तक बिहार में मजबूत विपक्षी ताकत बन चुका था।

 

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सत्ता में कैसे पहुंची बीजेपी?

साल 2005 में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी और जेडीयू गठबंधन ने दशकों के शासन को बदल दिया।  बीजेपी ने 55 सीटें जीतीं, नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने सरकार बनाई। बीजेपी ने पहली बार तब सत्ता का स्वाद चखा। अखबारों में खबर छपी कि बीजेपी और एनडीए गठबंधन ने 'जंगलराज' खत्म कर दिया। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकारों के खिलाफ जनता का आक्रोश था। नीतीश कुमार सुशासन के नाम पर चमके थे। बिहार में अपहरण, हत्या, लूट और नरसंहार की खबरें आम हो गई थीं। ए़डीए गठबंधन को इसी का लाभ मिला। सुशासन और लालू यादव के खिलाफ 'जंगलराज' के नारे ने बीजेपी के लिए तस्वीर बदल दी। बीजेपी हिंदुत्व के पिच पर आगे बढ़ती रही। 2 दशकों से बिहार की सत्ता में बीजेपी बनी हुई है। 

बीजेपी को बिहार में कब कितनी सीटें मिलीं?

  • 2005 विधानसभा चुनाव: 55 सीटें
  • 2010 विधानसभा चुनाव: 91 सीटें
  • 2015 विधानसभा चुनाव:  53 सीटें
  • 2020 विधानसभा चुनाव: 74 सीटें 


क्यों गठबंधन से बाहर नहीं निकल पाई?

'सुशासन' बाबू की पकड़: बिहार में नीतीश कुमार  

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में लालू यादव और राबड़ी देवी के दौर से नीतीश कुमार के दौर तक बहुत कुछ बदल गया था। नीतीश कुमार ने अपने शुरुआती कार्यकाल में बिहार में कई क्रांतिकारी कदम उठाए। कानून व्यवस्था, सुरक्षा, अस्पताल और स्कूलों को सुधारने के लिए काम किया। कुछ हद तक उस दौर से चीजें बेहतर हुईं। नीतीश कुमार की छवि ऐसी बन गई कि वह बिहार के सबसे जरूरी फैक्टर बन गए। उनका अपना जनाधार बना, जिसके बिना न तो आजेडी सत्ता में आ सकती है, न बीजेपी। जिस गठबंधन में वह रहते है, वही दल सत्ता में रहता है। 

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'जाति फैक्टर' के आगे कमजोर हिंदुत्व फैक्टर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के चुनाव में जातीय फैक्टर सबसे अहम होते हैं। बीजेपी को बिहार में सवर्णों की पार्टी का टैग मिल गया। ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, भूमिहार और श्रीवास्तव जैसी जातियां तो बीजेपी के साथ जुड़ी रहीं लेकिन हर तबके में बीजेपी पैठ नहीं बना पाई। गैर यादव ओबीसी दलों को साधने के लिए बीजेपी ने गठबंधन धर्म का सहारा लिया। वजह यह है कि आरजेडी की पकड़ यादव और मुस्लिम वर्ग पर बनी रही। जनता दल यूनाइटेड के पास कुर्मी, कोइरी, और गैर यादव ओबीसी पर मजबूत पकड़ है। अकेले बीजेपी को सभी वर्गों का समर्थन जुटाना मुश्किल है।
 

BJP ही नहीं, सबकी मजबूरी है गठबंधन

जानकारों का कहना है कि बिहार में कोई भी दल अकेले बहुमत हासिल करने की स्थिति में नहीं है। बीजेपी 1990 के दशक से बिहार में सहयोगियों के साथ चुनाव में उतरने का फैसला किया। 2005 और 2010 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी-JDU गठबंधन को सफलता मिली। अकेले अपने दम पर राष्ट्रीय जनता दल भी सत्ता नहीं हासिल कर पाई। यह तब है, जब बिहार में 17.70 प्रतिशत मुसलमान और करीब 14 प्रतिशत यादव हैं। आरजेडी पर मुस्लिम-यादव फैक्टर का टैग भी लगाया जाता है। ऐसे में बीजेपी या किसी दल के लिए अकेले हासिल कर पाना मुश्किल है। 

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बिहार में हर दल का एक जाति फैक्टर है। राष्ट्रीय जनता दल को मुस्लिम-यादवों की पार्टी बताया जाता है। लोक जनशक्ति (रामविलास) को दलित और पासवानों की पार्टी होने का ठप्पा लगा है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, महादलित और मुसहर समुदाय की राजनीति करती है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को कोइरी-कुशवाहा समुदाय की पार्टी कहते हैं। विकासशील इंसान पार्टी को मल्लाह और सहनी समुदाय की राजनीति करती है।  इतने अलग-अलग दलों में बंटी जातियां और इनकी जटिल सोशल इंजीनियरिंग ही बिहार के गठबंधन धर्म की मजबूरी हैं। 

बिहार में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी है 

बिहार में जाति आधारित जनगणना 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की कुल आबादी करीब 13 करोड़ है।

  • अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC): 36.01%
  • पिछड़ा वर्ग (OBC): 27.12%
  • अनुसूचित जाति (SC): 19.65%
  • सामान्य वर्ग: 15.52%
  • अनुसूचित जनजाति (ST): 1.68% 


बिहार में दबदबे वाली जातियां कौन हैं?

  • यादव: 14.26%
  • दुसाध/धारी/धरही: 5.31%
  • मोची/चमार/रविदास: 5.26%
  • कुशवाहा (कोइरी): 4.21%
  • शेख (मुस्लिम): 3.82%
  • ब्राह्मण: 3.66%
  • मोमिन (मुस्लिम): 3.55%
  • राजपूत: 3.45%
  • मुसहर: 3.09%
  • कुर्मी: 2.87%
  • भूमिहार: 2.86%
  • तेली: 2.81%
  • मल्लाह: 2.61%
  • बनिया: 2.32%
  • धानुक: 2.14%
  • कायस्थ: 0.60%

बिहार की धार्मिक आबादी क्या है? 

  • धार्मिक आधार पर: हिन्दू: 81.99%
  • मुस्लिम: 17.71%
  • ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि: 1% से कम

 

एक नजर बिहार के चुनावों पर- 

बिहार में 1951 में पहली बार विधानसभा चुनाव आयोजित कराए गए थे। अब तक 2020 तक बिहार में अब तक 17 चुनाव कराए जा चुके हैं। कांग्रेस, दशकों पहले अकेले अपने दम पर कई बार सत्ता में आई लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नाम यह मुकाम कभी हासिल नहीं हुआ। बिहार में 1951 में कांग्रेस पार्टी पहली बार सत्ता में आई। 312 में से 210 सीटें बीजेपी के पास आईं। 1962 के चुनाव में कांग्रेस को 318 में से 185 सीटें मिलीं। कांग्रेस के नेता कृष्ण सिन्हा बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने। 

साल 1967 में कांग्रेस ने 318 सीटों में 128 सीटों पर जीत हासिल की थी। एएसपी को 1999 में से 68 सीटें हासिल हुई थीं, जन क्रांति दल को 60 में से 13 सीटें हासिल हुई थीं। तब भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में नहीं थी, जनसंघ ने 271 सीटों पर चुनाव लड़ा था, 26 सीटें हासिल हुई थीं। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहे जाते हैं।

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चुनाव साल 1969 से कांग्रेस का असर कम हुआ। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन पूर्ण बहुमत से दूर। 318 सीटें थीं, जनसंघ ने 303 सीटों पर चुनाव लड़कर 34 सीटें हासिल की। चुनाव में एसएसपी को 191 में से 52 और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 162 सीटें मिलीं। यह वही दौर था, जब दरोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, भोला पासवान शास्त्री सीएम बने। साल 1972 में कांग्रेस जीती। 

1977 में जनता पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा, 214 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस को इन चुनावों में 286 सीटों में 57 सीटें ही मिलीं। CPI को 73 में 21 सीटें हासिल हुईं। बिहार में जनता पार्टी सत्ता में आई। 1977 के चुनावों में जनता पार्टी सत्ता में आई। साल 1977 में जनसंघ पार्टी 26 सीटें जीत पाई। साल 1980 में 21, 1985 में 16, 1990 में 39, 1995 में 41, 2000 में 55, और 2005 में 55 सीटें हासिल कीं। साल 2010 से लेकर अब तक, बीजेपी बिहार में एनडीए के साथ सत्ता में है। 

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