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पंजाब: लैंड पूलिंग पॉलिसी वापस लेने के लिए मजबूर क्यों हुई AAP सरकार?

पंजाब सरकार शहरी विकास के लिए हजारों एकड़ जमीनों का अधिग्रहण करने वाली थी। किसान संगठनों ने इसका विरोध किया था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस फैसले पर स्टे लगा दिया था। अब सरकार ने यह फैसला वापस लिया।

Bhagwant Mann

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान। (Photo Credit: BhagwantMann/X)

पंजाब सरकार ने विवादित लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 वापस ले ली है। पंजाब सरकार की इस नीति के खिलाफ किसान संगठन भड़के हुए थे। राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन की तैयारी चल रही थी। ठीक एक दिन पहले, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार के इस फैसले पर स्टे लगा दिया था। भगवंत मान सरकार, किसानों की हजारों एकड़ जमीनों का अधिग्रहण करने वाली थी। सरकार, शहरी विकास को बढ़ावा देने के लिए यह योजना तैयार कर रही थी। सरकार की इस योजना के खिलाफ पंजाब के किसानों में गुस्सा था। 

सरकार ने वादा किया था कि किसानों की जमीन लेकर, उन्हें रहने के लिए आवासीय घर दिए जाएंगे। सरकार ने कॉमर्शियल प्लॉट भी देने का वादा किया था। पंजाब सरकार की इस नीति को स्थानीय लोगों ने किसान विरोधी कहा था। पंजाब की एक बड़ी आबादी किसान है और आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। 

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हाई कोर्ट का फैसला बना वजह?

9 अगस्त को हाई कोर्ट ने कहा कि पंजाब सरकार ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया है। इस फैसले से पहले न तो स्थानीय हितों पर अध्ययन किया गया, न ही सामाजित स्तर पर जानकारियां जुटाई गईं। इस योजना के पर्यावरणीय पहलू पर भी गौर नहीं किया गया। सरकार, हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन का इस्तेमाल विकास योजनाओं के लिए करने वाली थी। 

पंजाब सरकार ने अब क्या फैसला लिया है?

पंजाब सरकार के आवासीय और शहरी विकास विभाग ने, लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 को वापस लेने से जुड़ी अधिसूचना को सार्वजनिक किया है। विभाग की तरफ से कहा गया, 'सरकार, 14.5.2025 को घोषित लैंड पूलिंग पॉलिसी वापस ले रही है। इससे जुड़े संशोधन भी वापस लिए जा रहे हैं। नतीजतन, जो भी दस्तावेज जारी किए गए हैं, रजिस्ट्री हुई है या कोई और काम हुआ है, उन्हें रद्द किया जा रहा है।'

किसानों के साथ बात करते मुख्यमंत्री भगवंत मान। (Photo Credit: Bhagwant Mann)



हाई कोर्ट के आदेश की बारीकियां क्या थीं?

7 अगस्त को जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा ने लुधियाना के एक किसान से जुड़ी याचिका के संबंध में  फैसला सुनाया था। एक परिवार पाकिस्तान से विस्थापित होकर आया था, उसके करीब 6 एकड़ जमीन आवंटित हुई थी। सरकार ने उसका अधिग्रहण किया था। परिवार को 50 हजार प्रति एकड़ हर साल देने का प्रस्ताव सरकार ने दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद कम है। हाई कोर्ट ने बेतरतीब तरीके से फैसला लेने के लिए पंजाब सरकार की आलोचना की थी। 

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लैंड पूलिंग पॉलिसी क्या थी?

पंजाब सरकार लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 के तहत 65,533 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने वाली थी। ज्यादातर जमीनें कृषि योग्य थीं। सरकार इस योजना के तहत अधिग्रहीत जमीनों पर व्यवसायिक इमारतें, उद्योगों और आवासीय परिसरों का निर्माण कराने वाली थी। सरकार ने तय किया था कि जमीन मालिकों को मुआवजा के बदले उनकी जमीनों के अनुपात में उसी इलाके में कॉमर्शियल और रिहायशी प्लाट में हिस्सेदारी दी जाएगी। 

मुख्यमंत्री भगवंत मान। (Photo Credit: Bhagwant Mann)


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क्यों विपक्षी नेताओं और किसानों ने इसका विरोध किया?

  • अस्पष्ट स्थिति: सरकार ने 65524 एकड़ जमीन का अधग्रहण तो कर लिया लेकिन यह ही नहीं बता पाई कि प्रस्तावित योजना कब, कैसे और कहां पूरी होगी, समयावधि क्या होगी।

  • अस्पष्ट सर्वे: हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार की आलोचना में कहा था कि जिन जमीनों के अधिग्रहण की बात कही गई थी, उन पर सर्वे भी नहीं कराया गया। जमीन के बदले 50 हजार रुपये सालाना भत्ता देना तय किया गया था, जबकि वहां जमीनों सालाना रेंट 80 हजार से ज्यादा है।

  • कृषि संकट: किसान नेताओं का कहना था कि जिन जमीनों का अधिग्रहण होना था, उनमें ज्यादातर कृषि योग्य जमीनें थीं। पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। ऐसे में यह फैसला किसानों की आजीविका पर ग्रहण लगाने वाला था। किसानों ने इसकी तुलना 2020  

  • अधिग्रहण कम कब्जा ज्यादा: किसान, सामाजिक संगठन और विपक्षी दलों ने कहा कि सरकार की यह नीति जबरन अधिग्रहण जैसी है। मकान निर्माण या लोन लेने तक पर पाबंदी लगाई गई। किसान इससे संतुष्ट नहीं थे। 

मुख्यमंत्री भगवंत मान। (Photo Credit: Bhagwant Mann)

सरकार अपने फैसले से पलटी क्यों?

सरकार किसानों को यह समझाने में असफल रही कि यह नीति उनके लिए बेहतर है। किसान अपनी जमीनों से भावनात्मक रूप से जुड़े थे, जमीनों के अधिग्रहण के बदले उन्हें सही मुआवजा नहीं मिलता। सरकार ने वादा किया कि जमीनों के बदले 1 लाख तक सालाना भत्ता और 10 प्रतिशत तक इजाफा भी तय समय पर दिया जाएगा लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं हुए। पंजाब में सिर्फ 115 किसानों ने इस योजना पर सहमति जताई। लुधियाना में 15 किसान तैयार हुए तो मोहाली में 100 किसानों ने हामी भरी। विरोध करने वाले किसानों की संख्या सिर्फ लुधियाना में 2 हजार से ज्यादा थी। 

हाई कोर्ट ने कहा कि यह नीति जल्दबाजी में बनाई गई थी। हाई कोर्ट का कहना था कि यह उपजाऊ कृषि योग्य जमीन को प्रभावित करेगी, यह पंजाब के सामाजिक ताने-बाने पर असर डाल सकता है। कोर्ट ने यह भी बताया कि नीति में कोई समयसीमा तय की गई है। शिकायतों के लिए कोई शिकायत समिति तक नहीं है। भूमिहीन मजदूरों और कारीगरों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार ने विकास के लिए बजट या संसाधनों का भी कोई साफ जिक्र नहीं किया है। चौतरफा विरोध के बाद भगवंत मान सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया है। 

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