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संपूर्ण क्रांति के धुरंधर, जो आज भी तय करते हैं बिहार की सियासत

साल 1974 में बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन से कई नेता तैयार हुए। दोषमुक्त राजनीति के मकसद से शुरू हुआ यह आंदोलन, बिहार में नई सामाजिक क्रांति लेकर आया था।

Bihar Assembly Elections 2025

नीतीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी। (Photo Credit: Sora)

5 जून 1974। पटना के गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति की घोषणा हुई। संपूर्ण क्रांति का एक अहम हिस्सा सामाजिक क्रांति भी थी। क्रांति का मकसद था कि पूरी तरह से परिवर्तन आए और नए सिरे से राजनीतिक और सामाजिक बदलाव हों। कुछ बदलाव हुए भी। बिहार में पहले से मौजूद जाति प्रथा कमजोर पड़ी, कई सामाजिक बदलाव हुए, बिहार को कई नेता मिले, जिन्होंने अगले आने वाले दशकों में भी बिहार की सियासी दिशा तय की। जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में शुरू हुए इस आंदोलन ने देश को लालू यादव, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान जैसे नेता दिए। सबकी नीति, जनवादी रही लेकिन इस क्रांति से आगे बढ़े सबसे विवादित नेता लालू यादव रहे।

लालू यादव पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे। चारा घोटाला मामले में उन्हें सजा भी मिली। जिस वक्त यह आंदोलन शुरू हुआ था, बिहार में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कुशासन जैसे मुद्दे छाए हुए थे। बिहार कई सामाजिक बुराइयों से जूझ रहा था। आंदोलन का मकसद राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव लाना था लेकिन बिहार पर इस आंदोलन का असर सबसे ज्यादा नजर आया। कई नेता ऐसे तैयार हुए, जो आज भी बिहार की सियासत तय कर रहे हैं। 

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क्यों शुरू हुआ था आंदोलन?

राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म करना, समाजिक बदलाव लाना और भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करना इस आंदोलन का मकसद था। देश में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षिक और आध्यात्मिक बदलाव लाने के मकसद से यह आंदोलन शुरू हुआ था। इसे संपूर्ण क्रांति का नाम मिला। जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि यह आंदोलन सिर्फ सरकार बदलने के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति और समाज को बेहतर बनाने के लिए है। भ्रष्टाचार खत्म करना, बेरोजगारी दूर करना, और शिक्षा में सुधार लाना इस आंदोलन का अहम मकसद था। 

किसके नेतृत्व में शुरू हुआ आंदोलन?

जय प्रकाश नारायण इन आंदोलनों की अगुवाई कर रहे थे। उन्हें जनता से लोकनायक की उपाधि मिली। साल 1974 के इस आदंलोन में कई छात्र कूद पड़े। जेपी की वजह से यह आंदोलन राष्ट्र स्तर पर पहुंच गया। उनकी अगुवाई में पटना के गांधी मैदान में लाखों लोग जुटे। आंदोलन का असर ऐसा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार हिल गई थी।  

बिहार में कितने नेता निकले? 

जेपी आंदोलन से बिहार में कई नेता तैयार हुए। लालू प्रसाद यादव, इन्हीं आंदोलन की उपज थे। नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी जैसे कई नाम सामने आए। ये नेता छात्र राजनीति से सीधे आंदोलन में उतरे थे। सभी नेता जेपी के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़े थे। ये युवा किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं थे। इन छात्र नेताओं ने सामाजिक क्रांति के हक में आवाजें बुलंद कीं।  

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लालू प्रसाद यादव

साल 1970 में ही पटना में विश्वविद्याल छात्र संघ का चुनाव हुआ। लालू यादव महासचिव चुने गए थे। 1973 में वह अध्यक्ष पद तक पहुंचे। साल 1974 में शुरू हुए जेपी आंदोलन में लालू यादव छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष के तौर पर आंदोलन से जुड़े। पटना विश्वविद्यालय समिति ने इसी समिति का गठन किया था। लालू यादव नेतृत्व कर रहे थे। वह अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को लेकर मुखर रहे। सामाजिक न्याय के नए चेहरे के तौर पर लालू यादव स्थापित होते गए। साल 1977 के लोकसभा चुनाव में टिकट मिला, वह चुनाव जीतने में कामयाब भी हो गए। साल 1979 तक पार्टी में अंदरुनी कलह की शुरुआत हो गई थी। सरकार गिर गई। संसद भंग हुआ, 1980 में फिर चुनाव हुए। वह राज नारायण के नेतृत्व वाली जनता पार्टी (एस) में शामिल हुए लेकिन चुनाव हार गए। साल 1990 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे। वह जय प्रकाश नारायण के शुरुआती शिष्यों में से एक थे। उन्होंने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल की नींव रखी।

नीतीश कुमार 

नीतीश कुमार भी इस आंदोलन से निकले नेताओं में शुमार हैं। जब जेपी आंदोलन चल रहा था, तब नीतीश कुमार छात्र आंदोलन में शामिल हुए थे। उन्होंने संपूर्ण क्रांति के नारे को अपनाया और बिहार में तत्कालीन अब्दुल गफूर सरकार के खिलाफ आंदोलन में उतर आए। वह शुरुआती दिनों में समाजवादी विचारधारा से प्रभावित रहे। जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और सत्येंद्र नारायण के कदमों पर चले। आंदोलन के बाद वह जनता पार्टी से जुड़े और 1985 में पहली बार विधायक बने। लालू यादव, शरद यादव और सुशील कुमार मोदी के साथ नीतिश कुमार चर्चा में रहे। साल 1994 तक, उनकी राहें लालू यादव से अलग हो गई थीं। वह जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर नई पार्टी बना चुके थे। पार्टी का नाम समता पार्टी था। बाद में यही पार्टी जनता दल यूनाइटेड के नाम से जानी गई। 3 अक्तूबर को 2003 तक पार्टी को नया निशान तीर मिल गया था। पहले नीतीश कुमार 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक, महज 7 दिनों के सीएम बने। 24 नवंबर 2005 को उन्होंने सीएम पद की दूसरी बार शपथ ली, तब से लेकर अब तक वह मुख्यमंत्री ही हैं। उन्होंने बिहार में कई क्रांतिकारी बदलाव किए। लालू यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल पर जिस कुशासन का आरोप लगा, उसे बदलकर, नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू की छवि बनाई। उन्होंने कानून व्यवस्था और शिक्षा की दिशा में कई काम किए। बीते एक साल से उनकी सरकार में बढ़ते अपराध को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है। 

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राम विलास पासवान 

राम विलास पासवान भी 1974 के आंदोलन में शामिल रहे। वह भी आंदोलन का अहम हिस्सा थे। राम विलास पासवान सामाजिक क्रांति की लड़ाई लड़ रहे थे। वह बिहार में दलित वर्ग की सबसे मजबूत आवाज बन गए थे। उन्होंने साल 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बिहार विधानसभा में एंट्री ली थी। साल 1974 में लोकदल में उन्हें बिहार शाखा का महासचिव बनाया गया। जेपी आंदोलन में उनकी भूमिका यहीं से बड़ी हुई। वह राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा के करीबी नेताओं में शुमार हुए। साल 1975 में वह भी गिरफ्तार हुए, आपातकालीन के दौरान जेल में रहे। जब वह बाहर आए तो युवा समाजवाद के अहम चेहरा बन चुके थे। साल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर उन्हें जीत मिली थी। करीब 4.24 लाख वोट उनके खाते में जुटे थे। वह दलित वर्ग में बेहद लोकप्रिय हो गए थे। साल 2000 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली, लोक जनशक्ति पार्टी। उन्हें लोगों ने मौसम वैज्ञानिक कहना शुरू किया, क्योंकि जिस दल की सत्ता होती, वह केंद्रीय मंत्री जरूर होते। केंद्र की 7 सरकारों में वह केंद्रीय मंत्री रहे। उनके बेटे चिराग पासवान बिहार की राजनीति संभाल रहे हैं। उनका निधन 8 अक्तूबर 2008 को हुआ।  

सुशील कुमार मोदी

बिहार में सुशील कुमार मोदी, एक अरसे तक नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम रहे। वह भी जेपी आंदोलन से ही निकले थे। साल 1971 में अपने राजनीति की शुरुआत की थी। पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ से जुड़े थे। 1973 तक वह महामंत्री बन गए थे। तब अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव थे। संयुक्त सचिव रविशंकर थे। जेपी आंदोलन से जुड़े तो पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। इमरजेंसी के दौरान करीब 19 महीने जेल में रहे। जब बाहर आए तो 1977 से लेकर 1986 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के शीर्ष नेतृत्व में शुमार रहे। 1900 तक वह बिहार विधानसभा पहुंच गए थे। पटना केंद्रीय विधानसभा उनकी सीट थी। साल 2005 में वह नीतीश सरकार में मुख्यमंत्री बने। 2005 से 2013, 2017 से 20 तक वह उपमुख्यमंत्री रहे। 13 मई 2023 को उनका निधन हो गया। वह बिहार में बीजेपी के अहम चेहरा रहे। 

कैसे जेपी आंदोलन से प्रभावित रहा बिहार? 

जेपी जाति विहीन समाज चाहते थे। जहां समता हो, भेदभाव न हो। जेपी आंदोलन के दौरान कई नेताओं ने अपने उपनाम हटा दिए थे। बिहार में कई साल तक जेपी आंदोलन का असर दिखा। कई राजनीतिक पार्टियां जन्मीं। लालू यादव देखते ही देखते पिछड़े वर्ग के बड़े नेता बने। राम विलास पासवान दलितों के नेता बनकर उभरे। नीतीश कुमार ने जाति आधारित राजनीति नहीं की लेकिन बराबरी और समाजवादी विचारधारा पर आगे बढ़े। बिहार में कोइरी, कुर्मी और यादव जैसी जातियों के नेता उभरे। जिस सामाजिक बराबरी का दर्जा वे चाहते थे, उसे पूरा करने के लिए कई नेताओं का साथ मिला। बिहार में नई सामाजिक चेतना पैदा हुई।


बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव, जेपी से प्रभावित नेता रहे हैं। जेपी का जिक्र आज भी चुनावी जनसभाओं में होता है। जिस सामाजिक बदलाव की वह बात करते थे, बिहार को अब भी उन्हीं बदलावों की जरूरत है। जेपी की विरासत बिहार की राजनीति और सामाजिक चेतना में आज भी जिंदा है। सियासी दल, अब भी उनके नाम का जिक्र करते हैं, चुनावों का एजेंडा उसी आधार पर तय किया जाता है। 

 

जय प्रकाश नारायण: स्वतंत्रता सेनानी से लोकनायक तक का सफर

जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण में हुआ था। वह आजादी की लड़ाई में शामिल रहे। वह स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने आजादी के बाद भी आजादी की लड़ाई लड़ी। वह खांटी समाजवादी नेता थे। साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई तो संपूर्ण क्रांति में भी। साल 1974 में उन्होंने भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान किया। इसे आपातकाल के खिलाफ जनआंदोलन के तौर पर लोग याद करते हैं।  
 

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