तेज प्रताप यादव से रोहिणी तक, सबके लिए जयचंद क्यों हैं संजय यादव?
लालू यादव का सियासी कुनबा चर्चा में है। पहले तेज प्रताप को पार्टी से निकाला गया, अब रोहिणी आचार्य ने कुछ ऐसा लिखा कि बिहार की सियासत में खलबली मच गई। दोनों पार्टी के एक 'जयचंद' से नाराज हैं।

बिहार में लालू कुनबे में मची है कलह। (AI इमेज। Photo Credit: Sora)
1990 से लेकर 2005 तक, बिहार की सत्ता पर जिस एक परिवार का दबदबा रहा, उस परिवार में फूट पड़ गई है। राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के अपने घर में सियासी जंग छिड़ी है। लालू यादव के करीबी दबे पांव जिक्र कर रहे हैं कि जंग की वजह लालू कुनबे के भीतर घुसा एक 'जयचंद' है। तेज प्रताप यादव हों या रोहिणी आचार्य, उस एक चेहरे से सबको दिक्कत है। तेज प्रताप तो अपने निष्कासन के पीछे भी उसी शख्स को जिम्मेदार मानते हैं। वह बार-बार, सार्वजनिक मंचों से कहते हैं कि पार्टी के भीतर घुसे जयचंद, पार्टी को हाइजैक करना चाहते हैं, लोग चाहते हैं कि दूसरा लालू यादव न तैयार हो, इसलिए मुझे पार्टी से ही बाहर निकाल दिया।
तेज प्रताप यादव के निशाने पर, जो नेता हैं, उस पर तेजस्वी यादव को आंख मूंदकर भरोसा है। यह बात रोहिणी आचार्य को भी खटकती है, तेज प्रताप यादव को भी। दोनों नहीं चाहते कि जिस पार्टी को उनके पिता ने सींचा है, उसी में विभाजन की एक लकीर खिंच रही है, जिसका सूत्रधार एक शख्स है, जिसकी हर सलाह तेजस्वी यादव मान रहे हैं।
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बिहार की सियासत में दोनों नेताओं को खटकने वाला आखिर वह शख्स है कौन, क्यों उसके नाम से सबको दिक्कत है, बिहार से उसका नाता क्या है, तेज प्रताप और रोहिणी आचार्य को वह पसंद क्यों नहीं आता, आपके मन में जितने भी सवाल हैं, आइए जानते हैं उनका जवाब क्या है?
तेज प्रताप यादव, निष्कासित RJD नेता:-
मैं तेजस्वी को कहना चाहता हूं अभी भी समय है। अपने आस पास के जयचंदो से सावधान हो जाओ नहीं तो चुनाव में बहुत बुरा परिणाम देखने को मिलेगा। अब आप कितने समझदार हैं यह चुनाव परिणाम तय कर देगा।
हंगामा क्यों बरपा है?
तेज प्रताप, पार्टी के भीतर मौजूद कई नेताओं को पार्टी विरोधी बताते रहे हैं। रोहिणी आचार्य ने भी अब बता दिया है। आलोक कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा, जिसके बाद हंगामे की शुरुआत हुई।
आलोक कुमार:-
फ्रंट सीट सदैव शीर्ष के नेता और नेतृत्वकर्त्ता के लिए चिन्हित होती है। उनकी अनुपस्थिति में भी किसी को उस सीट पर नहीं बैठना चाहिए। वैसे अगर 'कोई' अपने आप को शीर्ष नेतृत्व से भी ऊपर समझ रहा है, तो अलग बात है। वैसे पूरे बिहार के साथ-साथ हम तमाम लोग फ्रंट सीट पर लालू जी और तेजस्वी यादव को बैठे-बैठते देखने के अभ्यस्त हैं। उनकी जगह पर कोई और बैठे यह हमें तो कतई मंजूर नहीं है। ठाकुरसुहाती करने वालों, जिन्हें एक दोयम दर्जे के व्यक्ति में एक विलक्षण रणनीतिकार, सलाहकार और तारणहार नजर आता है, उनकी की बात अलग है।
आलोक कुमार के इसी फेसबुक पोस्ट को रोहिणी आचार्य ने जस का तस शुक्रवार को शेयर कर दिया। उन्होंने एक और पोस्ट X पर लिखा, जिसमें अपने घर में चल रही सियासी कलह पर अपनी नाराजगी जाहिर की।
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रोहिणी आचार्य:-
जो जान हथेली पर रखते हुए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने का जज्बा रखते हैं, बेखौफी-बेबाकी-खुद्दारी तो उनके लहू में बहती है।
रोहिणी यादव ने इस कैप्शन के साथ साल 2022 की एक तस्वीर शेयर की, जिसमें वह अपने पिता को किडनी दान देने के लिए ऑपरेशन थिएटर में जाती नजर आ रही हैं। बिहार की सियासत में इस तस्वीर पर इसके बाद से ही हंगामा बरप गया। रोहिणी आचार्य का भी इशारा, पार्टी के जयचंदों की ओर ही था।
तेज प्रताप यादव:-
आपने बहुत सारे न्यूज चैनल-अखबारों में देखा होगा कि कौन किसका कुर्सी हथियाना चाहता है। मैं किसी जयंचद का नाम लेना नहीं चाहता हूं। मुर्दा का नाम लेंगे तो जिंदा हो जाएगा। इसलिए यह सोचना आपको है, जयचंद कौन है।

कौन है लालू कुनबे का 'जयचंद'
तेज प्रताप यादव कभी खुलकर उनका नाम नहीं लेते हैं। रोहिणी यादव ने भी नाम नहीं लिया लेकिन बड़ा इशारा कर दिया। बिहार अधिकार यात्रा के दौरान जिस बस में तेजस्वी यादव बैठते हैं, उसी बस को रथ बनाया गया है। तेजस्वी यादव, अर्जुन की भूमिका में रथ की फ्रंट सीट पर बैठते हैं, लोगों से मिलते हैं, हाथ हिलाते हैं, आगे बढ़ते हैं। इसी सीट पर एक दिन राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद संजय यादव बैठ गए। परिवार और पार्टी के समर्थकों को यह तस्वीर रास नहीं आई।
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आरजेडी समर्थक आलोक कुमार ने इस तस्वीर पर सबसे पहले आपत्ति जताई और कहा कि यह सीट, हमेशा से ही सबसे बड़े नेता की है। अगर कोई खुद को शीर्ष नेतृत्व से बड़ा समझता है तो यह गंभीर बात है। तेज प्रताप यादव, संजय यादव को ही इशारों-इशारों में जयचंद बताते हैं, अपनी पार्टी और परिवार के बीच छिड़े कलह के लिए उन्हें ही जिम्मेदार मानते हैं।

रोहिणी आचार्य:-
मैंने एक बेटी और बहन के तौर पर अपना कर्तव्य और धर्म निभाया है। आगे भी निभाती रहूंगी। मुझे किसी पद की लालसा नहीं है, न मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। मेरे लिए आत्म-सम्मान सर्वोपरि है।
रोहिणी का डैमेज कंट्रोल नहीं आया काम, प्राइवेट किया अकाउंट
रोहिणी यादव के मैसेज पर कई टीवी चैनलों पर प्राइम शो हो गए, खबरें बन गईं। शुक्रवार शाम तक उन्होंने एक डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी की लेकिन काम बन नहीं पाया। उन्होंने तेजस्वी यादव गाड़ी की फ्रंट सीट पर बैठे दो नेताओं की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि वंचितों और समाज के आखिरी पायदान पर खड़े वर्ग को आगे लाना ही राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद जी के सामाजिक-आर्थिक न्याय के अभियान का मूल मकसद रहा है। इन तस्वीरों में समाज के इन्हीं तबके से आने वालों को आगे बैठे देखना सुखद अनुभूति है। रोहिणी यादव ने देर कर दी थी, देशभर में चर्चा होने लगी कि लालू कुनबे में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।

तेज प्रताप-रोहिणी को खटकने वाले संजय यादव कौन हैं?
संजय यादव, तेजस्वी यादव के सियासी सलाहकार हैं। वह तेजस्वी यादव के पढ़ाई के दिनों से दोस्त हैं। दोनों की आपस में खूब छनती है। इतनी कि तेज प्रताप यादव, अपने परिवार से निकाले जाने के पीछे उन्हें ही जिम्मेदार मानते हैं। तेजस्वी यादव, बिहार के सियासी महाभारत में लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए 'संजय' बन गए हैं। संजय, महाभारत का वह पात्रा है, जिसने राजा धृतराष्ट्र को महाभारत की आंखों देखी सुनाई थी। धृतराष्ट्र दृष्टिबाधित थे।
आरेजेडी में संजय यादव का अचानक उभरना, किसी को भी रास नहीं आया है। वह पार्टी में मनोज झा से भी ज्यादा अहम पद तक पहुंच गए हैं। साल 2015 से ही तेजस्वी, जिस एक नेता पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं, वह संजय ही हैं। वह राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख राणनीतिकारों में शुमार हैं। लैंड फॉर जॉब स्कैम में उनसे CBI पूछताछ कर चुकी है।
बिहारी नहीं हैं संजय यादव
दिलचस्प बात यह है कि संजय यादव बिहार के नहीं है। बिहार के बाहर के किसी भी नेता की, आरजेडी में वैसी पकड़ नहीं है, जैसी संजय यादव की है। वह हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नंगल सिरोही गांव से आते हैं। पहले क्रिकेटर रहे हैं। संजय यादव, तेजस्वी के दूर के रिश्तेदार भी हैं। संजय यादव पहले किसी मल्टी नेशनल कंपनी में काम करते थे, उन्होंने सियासत की ओर खुद को मोड़ दिया। साल 2013 में जब लालू यादव को जेल हुई और तेजस्वी यादव पटना लौटे तो उन्होंने संजय यादव को भी बुला लिया।
कैसे पार्टी में कद बढ़ा?
संजय यादव कंप्यूटर साइंस और मैनेजमेंट में पढ़े-लिखे हैं। उन्होंने जेडीयू की जातीय राजनीति को समझा और बिहार के सियासी समीकरणों को साधने पर जोर दिया। साल 2015 में सफलता भी मिली। 2020 के चुनाव में उनकी राजनीतिक समझ और बेहतर हुई। सत्ता में नहीं आए लेकिन बिहार की सबसे मजबूत पार्टी का दर्जा जरूर पा गए।
आरजेडी के सोशल मीडिया भी उन्हीं की निगरानी में चलता है। उन्होंने बिहार में लालू यादव पर लगे 'जंगलराज' के टैग को भी काफी हद तक साफ किया, लालू यादव नहीं, तेजस्वी यादव की आरजेडी की छवि गढ़ने में भी कामयाब रहे। उन्हें आरजेडी को कॉलेज कैंपस पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है। वह बिहार के जातीय समीकरणों को बाखूबी समझते हैं। नीतीश कुमार को कथित गुंडाराज पर घेरने वाली राजनीति में उनकी अहम भूमिका है।

तेजस्वी यादव की छवि बदलने के सूत्रधार
तेजस्वी यादव की भाषण शैली 2015 के बाद बहुत तेजी से बदली। उनके भाषणों तक पर संजय यादव की नजर रहती है। संजय दाव की राजनीति से सबसे ज्यादा दुखी उनकी पार्टी के ही लोग हुए। उन्होंने तेजस्वी के मार्गदर्शन मंडल से कई चेहरों की विदाई कर दी। वह लालू यादव के दौर के करीबी नेताओं को हटा चुके हैं।
सबकी नजरों में खटकते क्यों हैं संजय यादव?
तेज प्रताप को एक समय में जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी खटकते थे, धीरे-धीरे उन्हें भी संजय दाव ने नेपथ्य में भेज दिया। तेजस्वी यादव की सेक्युलर राजनेता वाली छवि गढ़ने में भी संजय यादव का नाम सामने आता है। बिहार की राजनीति से जुड़े लोग बताते हैं कि उनकी दखल इस हद तक बढ़ गई है कि तेज प्रताप यादव, कभी भी पहले अपने भाई से मिल लेते थे, उन्हें भी संजय यादव से टाइम लेना पड़ता है।
तेजस्वी यादव के पुराने सलाहकारों की छुट्टी हो गई है, लालू यादव के कई पुराने करीबी उन्हें छोड़कर जा चुके हैं। संजय यादव पर इसी काट-छांट की राजनीति करने का आरोप लगता है। उनकी पार्टी में बढ़ती दखल से पार्टी के पुराने लोग खुश नहीं हैं। लालू यादव के कुनबे में मची कलह के पीछे भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
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