नेपाल: राजशाही खत्म होती है, लौटती नहीं है, इतिहास गवाह है
दुनिया
• KATHMANDU 01 Apr 2025, (अपडेटेड 01 Apr 2025, 11:45 AM IST)
नेपाल में राजशाही की मांग को लेकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं। क्या नेपाल में राजशाही का लौटना आसान है, समझिए।

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह। (Photo Credit: Social Media)
को उनके विरोध प्रदर्शन के दौरान देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़की, बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए। सोमवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली को संसद में कहना पड़ा कि ज्ञानेंद्र शाह को हिंसा के लिए कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। नेपाल में राजाशाही के लिए आंदोलन राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेतृत्व में हो रहा है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह इस पार्टी को समर्थन दे रहे हैं। देश में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और नेपाली कांग्रेस ने कहा है कि यह हिंसा ज्ञानेंद्र शाह के निर्देश पर ही हुई है।
नेपाल में सत्तारूढ़ दलों के समर्थक चाहते हैं ज्ञानेंद्र शाह को गिरफ्तार कर लिया जाए। लोकतंत्र समर्थक दल चाहते हैं कि राजा ज्ञानेंद्र शाह के आंदोलनों को खतम कर दिया जाए। नेपाल काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी ने ज्ञानेंद्र शाह पर 8 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के चीफ पुष्प कमल दल प्रचंड का कहना है कि हिंसा के लिए जिम्मेदार ज्ञानेंद्र शाह हैं। लगातार उठते सवालों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या नेपाल में राजशाही लौट सकती है? अतीत के किस्से क्या कह रहे हैं?
राजशाही की मांग उठने की वजहें
नेपाल में राजनीतिक पार्टियों का स्थिर भविष्य नहीं रहा है। वहां की राजनीतिक स्थिति में हेरफेर भारत और चीन के साथ रुख पर भी निर्भर करता है। नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही अस्थिर सरकारें रही हैं। साल 2008 में जब राजशाही खत्म हुई, नेपाल की पहली लोकतांत्रिक सरकार बनेगी। नेपाल में 2008 से अब तक 14 सरकारें आ चुकी हैं। साल 2023 में ही केपी शर्मा ओली की पार्टी ने पुष्प कमल प्रचंड की पार्टी के साथ गठबंधन तोड़कर नेपाली कांग्रेस के साथ आ गई थी। प्रचंड बहुतम साबित नहीं कर पाए। केपी ओली तीसरी बार पीएम बने। नेपाल की राजनीति में भारत और चीन इस कदर हावी हैं कि विपक्षी पार्टियां भी अस्थिरता के लिए दोनों देशों को जिम्मेदार ठहराती हैं।
नेपाल में राजशाही की राह मुश्किल क्यों है?
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) विद्या शर्मा बताती हैं, नेपाल का संविधान साल 2015 में तैयार हुआ। नेपाल का शासन 20 सितंबर 2015 को लागू हुए संविधान के अनुसार चलता है। इस संविधान ने साल 2007 के अंतरिम संविधान की जगह ली है। नेपाल का संविधान 35 भागों, 308 अनुच्छेदों और 9 अनुसूचियों में विभाजित है। नेपाल में संघीय सरकार है। नेपाल के संविधान में राजशाही की कोई जगह नहीं है।
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क्या संविधान संशोधन से राह निकल सकती है?
नेपाली कम्युनिस्ट नेता विद्या शर्मा बताती हैं, 'नेपाल में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी जैसे राजशाही समर्थक दलों के पास 12 से 14 सीटें हैं। कुल सीटों की तुलना में यह सिर्फ 5 प्रतिशत है। राजशाही के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा, जिसके के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत अनिवार्य होगा। अभी प्रजातंत्र पार्टी, इससे कोसों दूर है। नेपाल में अगर जन विद्रोह हो तो शायद राह निकल सकती है, राजनीतिक तौर पर अभी मुश्किल लग रहा है।'
विद्या शर्मा ने कहा, 'नेपाल की प्रतिनिधि सभा में कुल 275 सीटें हैं। इनमें से 165 सीटें प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए और 110 सीटें समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत भरी जाती हैं। 2022 के आम चुनावों के बाद, RPP के पास प्रतिनिधि सभा में 14 सीटें हैं। यह कुल 275 सीटों का लगभग 5% है। इनमें से 7 सीटें प्रत्यक्ष निर्वाचन से और 7 सीटें समानुपातिक कोटे से मिलीं हैं।'
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विद्या शर्मा ने कहा, 'प्रजातंत्र पार्टी छोटा दल है लेकिन नेपाल में इस दल की चर्चा खूब होती है। यह पार्टी लगातार राजशाही की मांग करती है। यह पार्टी नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की भी लड़ाई लड़ रही है। प्रजातंत्र पार्टी अगर नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है, राजशाही वापस चाहती है तो उसे कम से कम संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। 14 पार्टी पर सिमटी पार्टी को कम से कम 183 सीटें चाहिए। ऐसा होता अभी नजर नहीं आ रहा है।'
राजशाही न लौटने की दूसरी वजहें
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली कई बार कह चुके हैं कि नेपाल को स्वाधीनता 2006 के जन आंदोलन के बाद मिली है। नेपाल में लोकतंत्र आया है। अब नेपाल में राजशाही की वापसी असंभव है, यह लोकतंत्र के खिलाफ साजिश है। केपी शर्मा ओली से इतर कम्युनिस्ट पार्टियां, कांग्रेस और कुछ दूसरे दल कभी नहीं चाहते हैं कि राजशाही लौटे।

नेपाली प्रजातंत्र पार्टी के ही नेता राहुल मिश्रा ने कहा, 'नेपाल में राजशाही की अगुवाई कौन कर रहा है, अधिकांश प्रदर्शनकारियों को यह ही नहीं पता है। नेपाल में राजशाही समर्थक एकजुट नहीं हैं और कम संख्या में हैं। प्रदर्शनकारी कुछ क्षेत्र विशेष में ही सक्रिय हैं। प्रदर्शन चलाने के लिए धन चाहिए, जो कहीं से नहीं आ रहा है। नेपाली सरकार के खिलाफ इतना जनाक्रोश नहीं फैला है कि लोग बढ़-चढ़कर राजशाही के समर्थन में वापस आएं। प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, नेपाल की सरकार के पास जनशक्ति भी है। ऐसे में नेपाल में हर जगह प्रदर्शनकारियों की आवाजें दबाई जा रही हैं। यह प्रदर्शन ज्यादा दिन चल नहीं सकता।'
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नेपाल इतिहासकार प्रेम कुमार बताते हैं, 'नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन गया है। भारत भी नेपाली गणराज्य को समर्थन दे रहा है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर भाई के परिवार को खत्म कराने के भी आरोप लगे। वह साल 2005 में नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र को खत्म कर चुके हैं। जब 2001 में शाही नरसंहार हुआ था, तब से उनकी छवि धूमिल हुई थी। भले ही वह निर्दोष कहे जा रहे हों लेकिन ज्यादातर लोगों को लगता है कि उनकी भी उस घटना में संलिप्तता थी, तभी वह नेपाल के राजमहल में नहीं थे।
ज्ञानेंद्र शाह का अतीत दागदार है
इतिहासकार प्रेम कुमार बताते हैं, 'नेपाल में राजशाही नहीं लौटेगी। सीमित जनसमर्थन, भावनात्मक अपील के बाद भी बहुसंख्यक लोग नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था से खुश हैं। दुनिया लोकतंत्र की तरफ जा रही है, नेपाल राजशाही की तरफ कैसे लौट सकता है।'
प्रेम कुमार ने कहा, 'नेपाल की त्रासदी बस यह रही कि नेपाल ने 17 साल में 13 से ज्यादासरकारों का बनना-गिरना देखा है। नेपाल राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। राजा इतने भी भरोसेमंद नहीं हैं कि उनके लिए जनता मौजूदा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। नेपाल में अगर आंदोलन उग्र होता है तो यह विदेश को मौका देगा। ऐसे उदाहरण कम हैं, जब कोई देश, राजशाही से लोकतंत्र और लोकतंत्र से राजशाही में लौटा हो।'
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लोकतंत्र से राजशाही की ओर क्या देश लौट पाते हैं?
इंग्लैंड
यह दुर्लभ है लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, कई लोकतांत्रिक देशों में राजशाही कायम है। इंग्लैंड का प्रधानमंत्री तो कोई भी बन सकता है लेकिन राजा, एक ही रहेगा। साल 1649 में राजा चार्ल्स प्रथम की फांसी के बाद इंग्लैंड गणतंत्र बना। इंग्लैंड का नाम कॉमनवेल्थ ऑफ इंग्लैंड बन गया। इंग्लैंड में तब ओलिवर क्रॉमवेल सत्ता में आया, वह काफी हद तक तानाशाह रहा। साल 1660 में उसकी मौत हुई तो उसका बेटा रिचर्ड सत्ता में आया। इंग्लैंड के कुलीन वर्ग ने राजशाही की बहाली की मांग दोहराई। चार्ल्स द्वितीय को सिंहासन पर बैठा दिया गया। इसे 'रेस्टोरेशन' कहा गया। इंग्लैंड में संवैधानिक राजशाही की नींव पड़ गई। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ सेकेंड की मौत के बाद चार्ल्स III राजा बने।
फ्रांस
फ्रांस में 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के बाद लुई XVI को हटाकर लोकतंत्र की स्थापना हुई थी। साल 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने ऐलान किया वह सम्राट है। फ्रांस में संवैधानिक राजशाही लौटी लेकिन नेपोलियन निरंकुश था। 1815 में नेपोलियन बुरी तरह हारा। बोर्बोन राजशाही बहाल हुई और 1815 से लेकर 1830 तक चली। संविधान तब भी प्राथमिकथा। साल 1848 में वहां गणतंत्र की बहाली हुई और 1852 में नेपोलियन तृतिय ने दूसरा साम्राज्य बना लिया। ऐसे बदलाव वहां कई बार हुए।
स्पेन
स्पेन में 1931 में राजशाही खत्म हो गई थी, गणतंत्र स्थापित हुआ था। 1936 से 1939 तक चले गृहयुद्ध के बाद और फ्रांसिस्को की तानाशाही के बाद 1975 में फ्रैंको की मौत पर राजशाही बहाल हो गई। जुआन कार्लोस राजा बने। यह राजशाही भी संविधान के दायरे में थी। स्पेन के राजा फिलिप VI हैं। राजा हैं, यह देश गणतंत्र नहीं है लेकिन लोकतंत्र यहां है।
कंबोडिया
साल 1970 में किंग नोरोडम के हटने के बाद कंबोडिया में लोकतंत्र आया। साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र की दखल और लंबी मध्यस्थता के बाद फिर से नोरोडम को राजा बनाया गया। वहां संवैधानिक राजशाही रही। कंबोडिया के राजा नोरोडोम सिहमोनी हैं।
नेपाल में राजशाही कैसी थी?
नेपाल के इतिहासकार प्रेम कुमार ने कहा, 'नेपाल की संवैधानिक लोकशाही 1951 से 2008 तक चली। 1951 में अंतरिम संविधान ने राजा को संवैधानिक प्रमुख बनाया और बहुदलीय लोकतंत्र शुरू हुआ। 1959 में राजा महेंद्र ने संसदीय संविधान लागू किया, लेकिन 1960 में तख्तापलट कर पंचायत व्यवस्था शुरू की, जो 1990 तक चली।'
प्रेम कुमार ने कहा, '1990 के जन आंदोलन के बाद राजा बीरेंद्र बीर शाह बिक्रम ने लोकतांत्रिक संविधान बहाल किया, जो 2005 तक चला। 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने निरंकुश शासन थोपा, लेकिन 2006 के जन आंदोलन ने उन्हें हटाया। 2008 में संविधान सभा ने राजशाही खत्म कर गणतंत्र घोषित किया। यह व्यवस्था अस्थिर रही, जिसमें राजा और लोकतंत्र के बीच संघर्ष की कड़वी यादें ज्यादा रहीं।'
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